वाराणसी, 14 जून 2025: काशी की पवित्र धरती पर मशहूर कथावाचक मोरारी बापू के खिलाफ गुस्सा भड़क उठा है। दरअसल, दो दिन पहले उनकी पत्नी का निधन हुआ, जिसके बाद सनातन धर्म के रीति-रिवाजों के मुताबिक सूतक का पालन होना चाहिए। इस दौरान न पूजा, न दर्शन, न ही कथा का विधान है। लेकिन मोरारी बापू न केवल काशी में राम कथा कहने पहुंचे, बल्कि बाबा विश्वनाथ के मंदिर में दर्शन भी किए। इस बात से नाराज स्थानीय सनातनियों ने गोदौलिया चौराहे पर उनका पुतला जलाकर विरोध जताया।
मोरारी बापू का जवाब: भजन में सुकून, विवाद क्यों?
विरोध के बीच मोरारी बापू ने अपनी बात रखी। उन्होंने कहा, “हम वैष्णव परंपरा के हैं। भगवान का भजन करना, कथा कहना हमारे लिए सुकून है, सूतक नहीं। इस पर विवाद खड़ा करना ठीक नहीं।” उनके इस बयान ने विवाद को और हवा दी।
काशी विश्वनाथ में 30 मिनट का विशेष दर्शन
शनिवार को मोरारी बापू ने बाबा विश्वनाथ मंदिर में जलाभिषेक किया और करीब 30 मिनट तक मंदिर परिसर में रहे। मंदिर प्रबंधन ने उनका भव्य स्वागत किया, उन्हें अंगवस्त्र और प्रसाद भेंट किया गया। इसके बाद बापू रुद्राक्ष कन्वेंशन सेंटर पहुंचे, जहां उन्होंने ऑपरेशन सिंदूर से प्रेरित थीम पर आधारित अपनी 958वीं राम कथा शुरू की। यह कथा 22 जून तक सिगरा के कन्वेंशन सेंटर में चलेगी, जहां 3 हजार श्रोताओं के लिए खास इंतजाम किए गए हैं।
संत जितेंद्रानंद का तीखा हमला: धर्म को धंधा न बनाएं
अखिल भारतीय संत समिति के राष्ट्रीय महामंत्री स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती ने मोरारी बापू की कड़ी आलोचना की। उन्होंने कहा, “सूतक काल में कथा कहना घोर निंदनीय है। यह धर्म को धंधे में बदलने की कोशिश है। मोरारी बापू को बताना चाहिए कि वे ब्रह्मनिष्ठ, ब्रह्मचारी या राजा में से किस श्रेणी में आते हैं, जिन्हें सूतक नहीं लगता।” उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि बापू ने पहले भी विवादास्पद कदम उठाए हैं, जैसे चिता की अग्नि के सामने फेरे करवाना और व्यास पीठ से अल्लाह-मौला का जिक्र करना। जितेंद्रानंद ने चेतावनी दी, “धर्म को धोखा न दें, समाज को गुमराह न करें।”
विवाद की आग में काशी: क्या है सही, क्या गलत?
यह विवाद काशी की गलियों में चर्चा का केंद्र बन गया है। एक तरफ मोरारी बापू के समर्थक उनके भक्ति और वैष्णव परंपरा के तर्क का समर्थन कर रहे हैं, तो दूसरी तरफ सनातनी उनकी हरकत को धर्म के खिलाफ बता रहे हैं। क्या मोरारी बापू का कथा कहना सनातन परंपराओं का उल्लंघन है या भक्ति का नया रूप? यह सवाल अब काशी की हवा में तैर रहा है।