हसमुख उवाच
कशमीर के पहलगाम में धर्म पूंछकर निर्दोषों की हत्याएं कर दी गयीं .ये हत्याएं करने वाले राक्षस कुल के हैं,इन्हीं राक्षसकुल की दूसरी श्रेणी भी है जो भारत में फल-फूल रही है वह ऐसी अमानवीय घटनाओं पर बड़े सयानेपनन से बयान देतीं हैं क्योंकि मुफ्त के चंदन को कैसे घिसा जाता है वह जानतीं हैं, कुछ बेचारे बड़े भोलेपन से कहते हैं कि भटके हुए नौजवान हैं इनके हालातों ने इन्हें आतंकवादी बना दिया या फिर ये कि आंतकवाद का कोई धर्म नहीं होता, आदि आदि, और फिर मुफ्त के चंदन घिसने की प्रक्रिया शुरु होती है भटके हुए नौजवानो के मुकदमे लडने वालो की टीम मुफ्त का चंदन घिसने लगती है, मुफ्त का चंदन घिसने में काहे की शरम, शरम प्रधान नहीं है, करम प्रधान है, करम भी ऐसा करो जिससे हमें नहीं मानवता को शर्म आए, साथ ही देश धर्म तो एक नरेटिव है जिसे मीडिया या सत्तारुढ दल ने खड़ा किया है, मुफ्त का चंदन घिसने वाले आदर्शो पर टिकाऊ नहीं होते वरन खालिस बिकाउ होते है
चालाक और समझदार लोग इन बिकाउ आईटम और मुफ्त का चंदन घिसने में रुचि रखने वालों को आसानी से पहचान लेते हैं, पहलगाम में राक्षसकुल वालों ने लेफ्टिनेंट विनय को गोलियों से भूना, उनके पिता ने उनकी अस्थियों को जब प्रवाहित किया तो वह फूट फूट कर रो पड़े, उनकी वीडियो देखकर कयी लोग रो पड़े, लेकिन मुफ्त का चंदन घिसने वालों पर कोई असर नही पड़ा, पहलगाम में मोटी मोटी महिलाएं जो अपनी बुरी सूरत लेकर वहां होटलों में ठहरी हुई थी वो होटल में मस्ती से डांस करते हुए कह रही थी यहां सब ठीक है , छोटी मोटी बातें तो हो ही जाती हैं, वह यह सब इसलिए बोल रही थी कि वहां होटल वालों ने उन्हें होटल में मुफ्त रहने और खाने का आफर कर दिया था, होटल का वह मालिक चालक भी था और समझदार भी था, उसने उन मोटी मोटी डांस करने वाली महिलाओं की वीडियो बना कर डाल दी ताकि लोग घूमने के लिये आना बंद न कर दें
मुफ्त का चंदन घिसना हरामखोरी का वंदन है और यह वंदन पहले दिल्ली में भी हुआ, मुफ्त की बिजली मुफ्त का पानी मुफ्त यात्रा का चुग्गा वोटरों ने ऐसा निगला कि कथित ईमानदार की वल्ले वलले हो गई, जनता ने भी मुफ्त का चंदन घिसा और नेताओं ने भी मुफ्त का चंदन घिसा, मुफ्त का चंदन घिसने से बेवड़े यानि दारूप्रेमी भी वंचित नहीं रहे, एक के बदले दो मुफ्त का आफर ऐसा कारगर आफर था कि जिसने बेवडों को वोट बैंक में बदल दिया यह दृश्य देख कर महात्मा गाँधी और मोरारजी देसाई की आत्मा जहां कही भी होगी उसने अवश्य आंसू बहाए होंगे, मुफ्त का चंदन इतना मादक सिध्द हुआ था कि उन दोनों महापुरुषों की नशाबंदी वाली कामना का जनाजा ही उठ गया, जो भी सही ,परंतु बेवडों की आत्मा ने दिल्ली के ईमानदार नेता को दिल से दुआएं दी होंगी।
मुफ्त का चंदन घिसने की विधा का हमारे देश में ऐसा विकास देखकर दूर दूर रहने वाले रोहिंग्या घुसपैठिए भी बहुत प्रभावित हुए, मुफ्त का चंदन घिसने काआंनद ही कुछ और है इस क्षेत्र में मिलने वाली सुविधाओं का भी जवाब नहीं है इसलिए घुसपैठियों ने बडी सुविधा के साथ बार्डर पार कर लिया, सर्विस सेंटर से उन्हें आधार कार्ड से लेकर सभी दस्तावेज सुविधा पूर्वक मिल गये और दिल्ली तथा देश के अन्य भागो में मुफ्त का चंदन घिसने का सुअवसर प्राप्त हो गया, सरकार के वक्फ कानून के खिलाफ जो लोग वीर रस की मुद्रा में हैं वो लोग मुफ्त का चंदन घिसने कामहत्व जानते हैं, मुफ्त का चंदन घिसना उनकी आन, बान, शान है, वक्फ के जरिए उन्होंने ब बहुत मात्रा में मुफ्त का चंदन घिसा है, भले हीं वह चंदन न लगाते हो परंत मुफ्त का चंदन घिसना तो वह सीख ही गये हैं, हमारे देश में बडी संख्या में ऐसे लोग हैं जो मुफ्त का चंदन घिसते रहे हैं, इसलिए उन्हें इस मुफ्त की विधा से प्यार हो गया है और वो लोग मुफ्त का चंदन घिसने की इस विधा पर जरा सी भी आंच नहीं आने देना चाहते, इसके लिए वे सिर पर कफन बांध कर सडको पर निकलने के लिए तैयार है।
भारत की इस मुफ्त का चंदन वाली विकसित विधा को देखकर हमारा पडोसी पाकिस्तान भी जलता है, वह यही सोच सोच कर छाती पीटता है पाकिस्तान में तो एक कट्टे आटे के लिए छीना झपटी होती है परंतु भारत में मुफ्त में ही अनाज बांटा जाता है, महाकुंभ में तो लाखों लोगों को मुफ्त में भोजन की सुविधा मिलती है मगर क्या मजाल कि भारत की अर्थ व्यवस्था पर कोई असर पड़े, विश्व की पांचवी अर्थ व्यवस्था से वह विश्व की चौथी अर्थ व्यवस्था बनने की तैयारी में है,भाई, कितना बड़ा चमत्कार है यही सोच सोच कर वो जिन्ना को भी कोसने लगे हैं, नरेन्द्र मोदी जी की तारीफों के पुल बांध रहे हैं इस बात से पाकिस्तान के हुक्मरान ऐसी खुन्नस में आ गये कि उन्होंने पहलगाम में मासूम और निर्दोषों की हत्याएं कर दी ।
दर असल पाकिस्तान के लोग मुफ्त का महत्व और सलीका ही नहीं समझ पाये, मुफ्त का चंदन घिसना उन्हें हिंदुस्तान के लोगों, खासतोर से आंदोलन जीवियों से ही सीख लेना चाहिए था, हिंदुस्तान में धरना मुफ्त में होता है, मुफ्त में आंदोलन होता है, क्योंकि धरना स्थल पर रसोईघर भी बनाए जाते हैं, वहां आंदोलन कारी मुफ्त की चाय, मुफ्त का भाषण सुनता है दो कौड़ी का, फिर रास्ता रोककर मुफ्त का नाश्ता करता है पकोड़ी का सडक पर चलने वाला आदमी भले हीं पिसता है लेकिन हमारे यहां आंदोलन करने वाला भी मुफ्त का चंदन घिसता है, वह अपनी अगली पीढ़ी को भी यही संदेश देता है कि मुफ्त का चंदन घिस मेरे नंदन समझने वाली बात सिर्फ यही है कि भले हीं हम कितना हीं मुफ्त का चंदन घिसें लेकिन अपने देश की आजादी को मुफ्त में मिली आजादी न समझें, इसके लिए बलिदान देने वाले जो लोग थे उन्होंने अपना बलिदान मुफ्त में नहीं, पूरी तरह नकद में दिया था।