संघ प्रमुख मोहन भागवत बोले: भारत अखंड है, आक्रांताओं के नाम पर नहीं होने चाहिए शहरों के नाम

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नई दिल्ली, 28 अगस्त 2025: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि भारत की अखंडता एक अटल सत्य है और इसे न मानने वालों का हाल सबके सामने है। उन्होंने देशभक्ति को बढ़ावा देने और आक्रांताओं के नाम पर शहरों व सड़कों के नामकरण को समाप्त करने की वकालत की। भागवत ने स्पष्ट किया कि इसका धर्म से कोई लेना-देना नहीं है। उन्होंने वीर अब्दुल हमीद और डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम जैसे देशभक्तों के नाम पर स्थान नामकरण की बात कही।

मथुरा-काशी आंदोलन में स्वयंसेवकों की भागीदारी संभव

भागवत ने कहा कि संघ स्वयं मथुरा और काशी जैसे मंदिर आंदोलनों में शामिल नहीं होगा, लेकिन स्वयंसेवक व्यक्तिगत रूप से इनमें भाग ले सकते हैं। उन्होंने हिंदू समाज की भावनाओं का सम्मान करने की अपील की।

आत्मनिर्भरता और उद्यमशीलता पर जोर

विकसित भारत के लिए भागवत ने आत्मनिर्भरता और मुक्त व्यापार को बढ़ावा देने की बात कही। उन्होंने कहा कि राष्ट्र के लिए जीने और मरने का जज्बा होना चाहिए। साथ ही, उन्होंने संघ में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित करते हुए कहा कि पुरुष और महिला शाखाएं अलग होने के बावजूद परस्पर पूरक हैं। कई संघ प्रेरित संगठनों का नेतृत्व महिलाएं कर रही हैं।

बीजेपी-संघ में मतभेद नहीं

बीजेपी और संघ के बीच मतभेद के सवाल पर भागवत ने कहा कि मतभेद हो सकते हैं, लेकिन मनभेद नहीं। उन्होंने स्पष्ट किया कि संघ सरकार के फैसलों को तय नहीं करता। उन्होंने कहा, “हम सलाह दे सकते हैं, लेकिन फैसला उनका है। अगर हम तय करते तो इतना समय लगता क्या?”

जनसंख्या नियंत्रण पर सुझाव

जनसंख्या नियंत्रण पर भागवत ने कहा कि जन्म दर 3 से कम होने पर समाज धीरे-धीरे लुप्त हो जाता है। उन्होंने सुझाव दिया कि प्रत्येक सनातनी परिवार में तीन संतानें होनी चाहिए, क्योंकि इससे माता-पिता और बच्चों का स्वास्थ्य बेहतर रहता है।

जातिगत आरक्षण को समर्थन

जातिगत आरक्षण पर भागवत ने कहा कि संवेदना के साथ इस पर विचार होना चाहिए। उन्होंने पंडित दीनदयाल उपाध्याय के दृष्टिकोण का जिक्र करते हुए कहा कि जो नीचे हैं, उन्हें ऊपर उठाने के लिए समाज के ऊपरी तबके को हाथ बढ़ाना चाहिए। संघ संविधान सम्मत आरक्षण का समर्थन करता है।

भाषा विवाद पर सलाह

भागवत ने कहा कि भारत की सभी भाषाएं राष्ट्रीय भाषाएं हैं, लेकिन एक व्यवहारिक भाषा भी होनी चाहिए, जिसे आपसी सहमति से तय किया जाए। उन्होंने विदेशी भाषा को नहीं अपनाने और भाषा पर विवाद से बचने की सलाह दी।

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