नई दिल्ली, 17 मई 2025, शनिवार। भारत के सुप्रीम कोर्ट में एक अनोखी घटना ने सबका ध्यान खींचा है। जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी, जिन्होंने अपने बेदाग करियर और सख्त अनुशासन से न्यायपालिका में एक अमिट छाप छोड़ी, अपने अंतिम कार्यदिवस पर उस विदाई समारोह से वंचित रह गईं, जो सुप्रीम कोर्ट की वर्षों पुरानी परंपरा का हिस्सा है। यह पहली बार नहीं है कि कोई परंपरा चर्चा में आई हो, लेकिन इस बार यह टूटना न केवल आश्चर्यजनक है, बल्कि कई सवाल भी खड़े करता है।
कौन हैं जस्टिस बेला त्रिवेदी?
10 जून, 1960 को उत्तरी गुजरात के पाटन में जन्मीं जस्टिस बेला त्रिवेदी ने अपने करियर की शुरुआत एक वकील के रूप में की। लगभग एक दशक तक गुजरात हाई कोर्ट में प्रैक्टिस करने के बाद, 1995 में उन्हें अहमदाबाद में ट्रायल कोर्ट की जज नियुक्त किया गया। गुजरात हाई कोर्ट में रजिस्ट्रार (विजिलेंस) और विधि सचिव जैसे महत्वपूर्ण पदों पर काम करने के बाद, 2011 में वे गुजरात हाई कोर्ट की जज बनीं। बाद में राजस्थान हाई कोर्ट में स्थानांतरित हुईं और 2016 में वापस गुजरात लौटीं।
31 अगस्त, 2021 को जस्टिस त्रिवेदी को सुप्रीम कोर्ट की जज के रूप में पदोन्नत किया गया, जब रिकॉर्ड नौ नए जजों को शपथ दिलाई गई, जिनमें तीन महिलाएं शामिल थीं। उनके नेतृत्व में कई ऐतिहासिक फैसले आए, जिनमें नवंबर 2022 में आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (EWS) के लिए 10% आरक्षण को बरकरार रखने वाला फैसला प्रमुख है।
सुप्रीम कोर्ट की परंपरा और उसका टूटना
सुप्रीम कोर्ट में रिटायर होने वाले जजों को सम्मान देने की दो प्रमुख परंपराएं हैं। पहली, सेरेमोनियल बेंच का आयोजन, जिसमें चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) रिटायर होने वाले जज को अपने साथ बेंच पर बिठाते हैं। इस दौरान वरिष्ठ वकील और बार एसोसिएशन के पदाधिकारी जज की उपलब्धियों की सराहना करते हैं। दूसरी परंपरा है फेयरवेल समारोह, जिसे सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (SCBA) आयोजित करता है। इस समारोह में जज, उनके परिवार, और बार के सदस्य शामिल होते हैं, जहां सभी अपने अनुभव साझा करते हैं।
जस्टिस बेला त्रिवेदी के लिए सेरेमोनियल बेंच का आयोजन तो हुआ, जिसमें CJI जस्टिस बी.आर. गवई और जस्टिस ए.जी. मसीह उनके साथ बैठे। CJI ने जस्टिस त्रिवेदी को एक “शानदार जज” बताया, जिन्होंने बिना किसी भय के फैसले दिए और सुप्रीम कोर्ट की एकता व अखंडता को मजबूत किया। अटॉर्नी जनरल और सॉलिसिटर जनरल ने भी उनकी प्रशंसा की। लेकिन, सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन ने फेयरवेल समारोह आयोजित नहीं किया, जिसे लेकर CJI और जस्टिस मसीह ने खुलकर नाराजगी जताई।
CJI की आपत्ति: “यह गलत है”
CJI जस्टिस गवई ने कहा, “जस्टिस त्रिवेदी ने स्पष्टता और मेहनत के साथ अपने कर्तव्यों का निर्वहन किया। बार एसोसिएशन का यह रवैया सही नहीं है। मैं खुलकर कहता हूं कि यह गलत है।” उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि बेंच के सामने भारी संख्या में वकीलों की मौजूदगी इस बात का प्रमाण है कि जस्टिस त्रिवेदी का काम सराहनीय रहा। जस्टिस मसीह ने भी कहा कि बार एसोसिएशन को उन्हें विदाई देनी चाहिए थी और उनके स्नेहपूर्ण व्यवहार की प्रशंसा की।
बार एसोसिएशन ने क्यों नहीं किया फेयरवेल?
जस्टिस त्रिवेदी के फेयरवेल न होने के पीछे कई कारण बताए जा रहे हैं, जिनमें उनकी सख्ती और नियमों के प्रति कठोर रवैया प्रमुख है। कोर्ट में अनुशासन की पाबंद जस्टिस त्रिवेदी सुनवाई के दौरान एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड की मौजूदगी पर जोर देती थीं। वे केवल उन वकीलों का नाम अपने आदेशों में शामिल करती थीं, जो वास्तव में बहस में हिस्सा लेते थे, जिससे कई वकील असहज थे।
इसके अलावा, एक फर्जी केस से जुड़ा मामला भी विवाद का कारण बना। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के कुछ वकीलों की मिलीभगत की आशंका थी। बार एसोसिएशन चाहता था कि इसे आंतरिक जांच के जरिए सुलझा लिया जाए, लेकिन जस्टिस त्रिवेदी ने सीबीआई जांच का आदेश दिया। इस फैसले ने बार के कुछ सदस्यों को नाराज कर दिया।
एक परंपरा का टूटना, कई सवाल
जस्टिस बेला त्रिवेदी के फेयरवेल न होने से सुप्रीम कोर्ट की एक ऐतिहासिक परंपरा टूटी है। यह घटना न केवल जजों और वकीलों के बीच तनाव को उजागर करती है, बल्कि भविष्य के लिए भी एक मिसाल कायम करती है। क्या आने वाले समय में अन्य रिटायर होने वाले जज भी इस परंपरा से वंचित रहेंगे? क्या बार एसोसिएशन का यह रवैया सुप्रीम कोर्ट की एकता को प्रभावित करेगा?
जस्टिस त्रिवेदी ने अपने करियर में निष्पक्षता, मेहनत, और साहस का परिचय दिया। उनकी विदाई को लेकर यह विवाद भले ही चर्चा में हो, लेकिन उनकी उपलब्धियां और योगदान हमेशा प्रेरणा देते रहेंगे। सुप्रीम कोर्ट की यह परंपरा भले ही एक बार टूटी हो, लेकिन यह उम्मीद की जानी चाहिए कि भविष्य में ऐसी परंपराएं फिर से जीवंत होंगी, जो सम्मान और एकजुटता का प्रतीक हैं।