डिज्नी स्टूडियोज की फिल्म हो। एनीमेशन में हो तो बात चलते ही इसे देखने की इच्छा अपने आप हिलोरें मारने लगती हैं। डिज्नी की एनीमेशन फिल्में वैसे तो बच्चों और किशोरों की मानसिकता को ध्यान में रखकर ही अधिकतर बनती हैं, लेकिन जैसा कि इस कंपनी का सौ साल का इतिहास रहा है, इसकी एनीमेशन फिल्में बड़े भी चाव से देखते हैं। फिल्म ‘विश’ में एक किरदार भी अपना सौवां जन्मदिन मना रहा है। एक तरह से ये फिल्म डिज्नी की सौ साल की यात्रा को सलामी देती फिल्म है और इसीलिए फिल्म में डिज्नी के शुरुआती दौर की वाटर कलर से बनी पृष्ठभूमि है और इसके किरदार नई थ्री डी तकनीक से बने हैं। टू डी और थ्रीडी का ये अनोखा प्रयोग डिज्नी ने इस फिल्म में किया है। हो सकता है इसकी प्रेरणा उन्हें ‘स्पाइडरवर्स’ की हाल फिलहाल में खूब हिट हुईं एनीमेशन फिल्मों से मिली हो, लेकिन ये प्रयोग है बहुत ही प्रभावशाली।
छोटी छोटी इच्छाओं की बड़ी कहानी
फिल्म ‘विश’ एक साधारण घरेलू लड़की की कहानी है। पिता उसके बचपन में गुजर गए। मां और अपने बाबा के साथ वह रहती है। बाबा के सौवें जन्मदिन के दिन वह निकलती है उस समारोह के लिए गाना गाते बजाते, जो उसी रोज होना है और जिसमें वहां का राजा किसी एक की इच्छा पूरी करने वाला है। विश यानी इंसान की वह इच्छा जिसे वह अपने सीने से लगाए रखता है। ये राजा उस राज्य का है जो एक समंदर के बीच बसा है और जिसमें किसी भी जाति, संप्रदाय या पहचान के लोग बेखटक आकर रह सकते हैं। बस शर्त ये है कि उन्हें अपनी सबसे प्रिय इच्छा 18 साल का होते ही राजा को दे देनी होती है और उसे हमेशा के लिए भूल जाना होता है। राजा का वादा है कि वह अपनी प्रजा की इच्छाओं की रक्षा करेगा और इच्छापूर्ति समारोहों में किसी एक की इच्छा पूरी भी कर देगा। राजा जादू जानता है। उसके पास काला जादू जैसी भी एक किताब है। इस किताब में शैतानी शक्तियां हैं। और, वही साधारण घरेलू लड़की जब राजा के पास उसकी सहायक बनने के लिए इंटरव्यू देने आती है तो कहानी की हर सिलवट, हर तुरपाई धीरे धीरे उधड़ना शुरू होती है।
सौ साल का जश्न मनाती फिल्म
कोई कंपनी अपने सौ साल के जश्न को मनाने के लिए ऐसी ही फिल्म बनाना चाहेगी जो उसकी असल पहचान है। एक साधारण सी कहानी, उसके जाने पहचाने से किरदार और वातावरण भी ऐसा जो डिज्नी की तमाम फिल्मों में इसके प्रशंसक पहले देख चुके हैं। तो इस फिल्म ‘विश’ में अगर सिंड्रेला की झलक है तो अलादीन के जफर की भी परछाई दिखती है। बोलते पशु पक्षियों को देखते हुए डिज्नी के तमाम और भी किरदार दर्शकों को याद आते रहते हैं। जाहिर सी बात है कि इतनी साधारण फिल्म अब असाधारण फिल्मों के दौर में दर्शकों को शायद ज्यादा सुहाती नहीं है। और, उस पर से अगर ये फिल्म बच्चों की बजाय बड़े देख रहे हों, तो फिल्म की चुनौती और बढ़ जाती है।
संगीत लहरियों पर डोलती फिल्म
फिल्म ‘विश’ की कहानी साधारण है। फिल्म ‘फ्रोजेन’ बनाने वाली टीम यहां इसकी रचनात्मक टीम का मुख्य हिस्सा है। क्रिस बक और जेनिफर ली दोनों को इस मामले में अपनी जिम्मेदारी भी पता है और तभी वे एक दंतकथा जैसी कहानी में संगीत के जरिये बालसुलभ इच्छाओं और संवेदनाओं का रस घोलने की कोशिश करते हैं। इस संगीतमयी बालकथा में एक गाना वह भी है जो डिज्नी की फिल्म ‘पिनाचिओ’ के लिए पहले पहल बना और डिज्नी की पहचान भी। लेकिन, ऐसी कहानियों को अगर भारतीय परिवेश में देखा जाए तो इसका संगीत ही इसकी जान बन सकता है बशर्ते कोई ‘जंगल जंगल बात चली है, पता चला है..’ जैसा लिखने वाला हो और वैसा ही संगीत बनाने वाला।
सियासी अंतर्धारा की चतुर चाल
फिल्म की अपनी एक अंतर्धारा भी है और वह बहुत ही सामयिक है। अगर राजा अपनी प्रजा की इच्छाओं को इकट्ठा ही करता रहे और उनमें से गाहे बेगाहे एकाध को पूरा कर बाकी सबको भुला देने के जतन में लगा रहे तो कभी न कभी, कहीं न कहीं से तो असंतोष की आवाज आएगी ही। और, ऐसी एक भी आवाज को सामूहिक क्रांतिगान बनने में देर नहीं लगती है। फिल्म है तो बच्चों की लेकिन, बड़ों की दुनिया की ये बड़ी बात भी बहुत सरलता से कह जाती है। एरियाना डिबोस और क्रिस पाइन की आवाज की दुनिया में अपनी अपनी अलग पहचान है और उसके बूते भी ये फिल्म मजबूत कदम बढ़ाने की कोशिश करती ही है। डिज्नी जैसी कंपनी को लोग, जब ये शुरू हुई थी, तब भी बहुत चाहते थे, आज भी चाहते हैं और अगर रचनात्मक तौर पर इसकी फिल्में समय के साथ चलती रहीं तो इसे आगे भी चाहते ही रहेंगे। सौ साल पहले हमें तुमसे प्यार था, आज भी है और कल भी रहेगा…!