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Monday, June 23, 2025

यूक्रेन को फिर से सप्लाई कर रहा हथियार,क्या युद्ध खत्म होने नहीं देना चाहता अमेरिका

क्या अमेरिका रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध खत्म होने नहीं देना चाहता है? क्या राष्ट्रपति बाइडन यूक्रेन के कंधे का सहारा लेकर पुतिन के वर्चस्व को खत्म करना चाहते हैं? ऐसा इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि खेरसॉन से रूसी सैनिकों की वापसी के एलान के बावजूद अमेरिका ने यूक्रेन को 40 करोड़ अमेरिकी डॉलर सैन्य सहायता भेजने का एलान किया है। इससे यह साफ पता चलता है कि अमेरिका की मंशा यूक्रेन को मजबूत कर रूस की आर्थिक स्थिति कमजोर करने की है। अमेरिका ने यह सहायता कांग्रेस (संसद) पर रिपब्लिकन का नियंत्रण होने पर रूस के खिलाफ युद्ध के लिए दी जाने वाली वित्तीय सहायता में कमी किए जाने की आशंका के बीच घोषित की है।

सैन्य सहायता में डिफेंस सिस्टम, हथियार और रॉकेट सिस्टम भेजे जा रहे

पेंटागन के अनुसार, इस सैन्य सहायता पैकेज में भारी मात्रा में हथियार और पहली बार चार अत्यंत सचल एवेंजर एयर डिफेंस सिस्टम भेजे जाएंगे। इस पैकेज में ‘हाई मोबिलिटी आर्टिलरी रॉकेट सिस्टम’ HIMARS भी शामिल होगा। बता दें कि यूक्रेन रूस के खिलाफ युद्ध में इसका सफलतापूर्वक उपयोग कर रहा है। अधिकारी के अनुसार, पैकेज में जमीन से हवा में मार करने वाले एंटी-एयरक्राफ्ट प्रणाली हॉक के स्टिंगर मिसाइलें, 10,000 मोर्टार गोले, होवित्जर तोपों के हजारों गोले, 400 ग्रेनेड लांचर, 100 हम्वीज, सर्दियों के लिए सेना की वर्दी, बंदूकों और राइफलों के लिए दो करोड़ गोलियां शामिल होंगी।

यूरोपीय संघ ने भी की मदद

यूरोपीय आयोग ने बुधवार को यूक्रेन के लिए 2023 के लिए EUR18 बिलियन तक के अभूतपूर्व समर्थन पैकेज का प्रस्ताव रखा। यह अत्यधिक रियायती ऋण के रूप में आएगा, जो 2023 तक नियमित किश्तों में वितरित किया जाएगा।

पुतिन ने खेरसॉन को आजाद देश घोषित किया था, लेकिन अब लगा झटका

बता दें कि खेरसॉन वही इलाका है, जिसे दो महीने पहले रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने आजाद देश घोषित किया था। अब रूस ने अपनी सेना को वहां से लौटने का आदेश दे दिया है। ऐसे में इसे रूस के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है। वहीं रूस के नरम पड़ते ही अमेरिका सक्रिय हो गया है। अमेरिका हर हाल पुतिन पर दबाव बनाना चाहता है ताकि वह खुद सरेंडर करें।

newsaddaindia6
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Anita Choudhary is a freelance journalist. Writing articles for many organizations both in Hindi and English on different political and social issues

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