नई दिल्ली, 30 मार्च 2025, रविवार। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) इस साल अपने गौरवशाली 100 वर्ष पूरे कर रहा है। यह संयोग ही है कि आज, वर्ष प्रतिपदा यानी हिंदू नववर्ष के पहले दिन, संघ के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार की जयंती भी मनाई जा रही है। इस खास मौके पर सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने संघ के मिशन और उसकी सोच को नए सिरे से रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि यह अवसर केवल उत्सव का नहीं, बल्कि आत्ममंथन और राष्ट्र के प्रति समर्पण को और गहरा करने का है। 100 साल की इस यात्रा को याद करते हुए होसबाले ने इसे विश्व शांति, समृद्धि और एकजुट भारत के संकल्प के रूप में देखा।
डॉ. हेडगेवार: एक जन्मजात देशभक्त की प्रेरणा
डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार का जीवन अपने आप में एक मिसाल है। बचपन से ही उनके भीतर देशभक्ति की ज्वाला धधक रही थी। कोलकाता में मेडिकल की पढ़ाई के दौरान वे स्वतंत्रता संग्राम के हर पहलू—चाहे वह क्रांतिकारी आंदोलन हो या सत्याग्रह—से जुड़ गए थे। लेकिन उनका मानना था कि केवल राजनीतिक आंदोलनों से भारत की गहरी समस्याएं हल नहीं होंगी। इसके लिए समाज के हर व्यक्ति में राष्ट्रहित की भावना जागृत करना जरूरी है। यही सोच उन्हें आरएसएस की स्थापना तक ले गई। सरकार्यवाह होसबाले ने कहा कि डॉ. हेडगेवार की दूरदर्शिता ही थी कि उनके जीवनकाल में ही संघ का प्रभाव देश के कोने-कोने तक फैल गया।
चुनौतीपूर्ण समय में संघ की भूमिका
भारत को जब 1947 में आजादी मिली, तो उसी समय देश का धार्मिक आधार पर विभाजन भी हुआ। इस दुखद दौर में संघ के स्वयंसेवकों ने अपनी जान की परवाह न करते हुए पाकिस्तान में फंसे हिंदुओं को बचाने और उन्हें सम्मानजनक जीवन देने में अहम भूमिका निभाई। होसबाले ने स्वयंसेवक की परिभाषा को स्पष्ट करते हुए कहा कि यह समाज के प्रति कर्तव्य और जिम्मेदारी की भावना है, जो शिक्षा, व्यवसाय और राजनीति जैसे क्षेत्रों में भी अपनी छाप छोड़ रही है।
हिंदुत्व और राष्ट्रवाद की नई व्याख्या
उस दौर में, जब अधिकांश पढ़े-लिखे लोग यूरोपीय राष्ट्रवाद से प्रभावित थे, हिंदुत्व और भारतीय राष्ट्रवाद की अवधारणा को स्थापित करना आसान नहीं था। डॉ. हेडगेवार ने इसे सहजता से समाज तक पहुंचाया। आज समाज में संघ की बढ़ती स्वीकार्यता इस बात का प्रमाण है कि उनकी सोच कितनी सटीक थी। आपातकाल जैसे संकट के समय में भी, जब लोकतंत्र पर हमला हुआ, संघ ने शांतिपूर्ण तरीके से इसके खिलाफ संघर्ष किया और संवैधानिक मूल्यों की रक्षा में योगदान दिया।
सेवा और सुधार की दिशा में कदम
संघ ने अपनी शाखाओं के जरिए न केवल संगठन को मजबूत किया, बल्कि सेवा कार्यों को भी प्राथमिकता दी। पिछले 99 वर्षों में इस दिशा में उल्लेखनीय प्रगति हुई है। हिंदू समाज में सुधार के प्रयासों को तब बल मिला, जब सभी संप्रदायों ने भेदभाव को नकारते हुए एकता का संदेश दिया।
भविष्य का विजन: पंच परिवर्तन
100वें वर्ष में कदम रखते हुए संघ ने ‘पंच परिवर्तन’ को अपने कार्य का आधार बनाया है। इसमें नागरिक कर्तव्यों का निर्वहन, पर्यावरण के प्रति जागरूकता, सामाजिक समरसता, पारिवारिक मूल्यों का संरक्षण और देश को शिखर तक ले जाने का संकल्प शामिल है। होसबाले ने कहा कि शाखाओं का विस्तार करते हुए संघ का लक्ष्य हर व्यक्ति को राष्ट्र निर्माण का हिस्सा बनाना है।
संघ का यह 100 साल का सफर केवल एक संगठन की कहानी नहीं, बल्कि एक विचारधारा का जीवंत प्रमाण है। डॉ. हेडगेवार की जयंती पर यह संकल्प और मजबूत होता है कि भारत को विश्व गुरु बनाने का सपना हर स्वयंसेवक के जरिए साकार होगा। यह यात्रा आत्मचिंतन से शुरू हुई थी और अब यह समाज के हर वर्ग को जोड़ते हुए एक समृद्ध, शांतिपूर्ण और सशक्त भारत की ओर बढ़ रही है।