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Saturday, April 19, 2025

पाकिस्तान के थारपारकर में उभरता राम मंदिर: आस्था की नई मिसाल

नई दिल्ली, 14 अप्रैल 2025, सोमवार। पाकिस्तान के सिंध प्रांत के थारपारकर जिले में बसे मेघवाल बाड़ा गांव में एक ऐसी कहानी लिखी जा रही है, जो सीमाओं को लांघकर आस्था और भक्ति का संदेश दे रही है। यह कहानी है एक भव्य राम मंदिर की, जो न तो किसी सरकारी योजना का हिस्सा है, न ही किसी राजनीतिक समर्थन की छाया में पनप रहा है। यह मंदिर केवल और केवल हिंदू समुदाय की श्रद्धा, विश्वास और मेहनत की नींव पर खड़ा हो रहा है। इस मंदिर के निर्माण में सबसे अहम भूमिका निभा रहे हैं पुजारी थारूराम, जिनके दिल में भगवान राम के प्रति अगाध प्रेम और भारत से लाए गए गंगाजल की पवित्रता समाई है।

अयोध्या से प्रेरणा, थारपारकर में संकल्प

22 जनवरी 2024 को अयोध्या में राम मंदिर के उद्घाटन ने विश्वभर के हिंदुओं में एक नया उत्साह जगाया। अयोध्या की पावन धरती पर रामलला के दर्शन के लिए लोग दुनिया के कोने-कोने से पहुंच रहे हैं। लेकिन पाकिस्तान में रहने वाले हिंदुओं के लिए यह यात्रा इतनी आसान नहीं। भारत और पाकिस्तान के बीच तनावपूर्ण रिश्तों ने उनके अयोध्या पहुंचने के सपने को मुश्किल बना दिया है। लेकिन कहते हैं न, जहां चाह होती है, वहां राह निकल ही आती है। मेघवाल बाड़ा के हिंदू समुदाय ने इसी कहावत को सच कर दिखाया। उन्होंने फैसला किया कि अगर अयोध्या नहीं जा सकते, तो अपनी धरती पर ही राम मंदिर बनाएंगे।

थारपारकर के इस छोटे से गांव में राम मंदिर का निर्माण कार्य जोरों पर है। मंदिर का मुख्य ढांचा लगभग तैयार हो चुका है, और अब परिसर में सत्संग मंच, बाउंड्री वॉल और अन्य सुविधाओं का काम चल रहा है। इस मंदिर की नींव में न केवल पत्थर और सीमेंट है, बल्कि समुदाय की एकजुटता, श्रद्धा और भगवान राम के प्रति अटूट विश्वास भी है।

पुजारी थारूराम: गंगाजल से सनी आस्था

इस मंदिर के निर्माण की आत्मा हैं पुजारी थारूराम। उनकी कहानी किसी प्रेरणा से कम नहीं। थारूराम ने बताया कि उन्होंने भारत की यात्रा की थी, जहां उन्होंने अयोध्या में रामलला के दर्शन किए। उस पवित्र क्षण में, जब वे मां गंगा के तट पर खड़े थे, उनके मन में केवल एक ही इच्छा थी—अपने गांव में भगवान राम का मंदिर बनाना। “मैंने मां गंगा से कुछ नहीं मांगा, न धन, न दौलत। मैंने बस एक राम मंदिर मांगा,” थारूराम की ये बातें उनकी सादगी और आस्था की गहराई को दर्शाती हैं।

थारूराम भारत से गंगाजल लेकर लौटे, जिसे वे मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा के लिए उपयोग करेंगे। यह गंगाजल केवल जल नहीं, बल्कि भारत और पाकिस्तान के हिंदुओं के बीच एक आध्यात्मिक सेतु है। थारूराम कहते हैं, “यह मंदिर हमारी श्रद्धा का प्रतीक है। यह कोई सरकारी योजना नहीं, न ही किसी राजनीतिक दल का एजेंडा। यह जनता की आस्था से बन रहा है।”

समुदाय की एकजुटता और सांप्रदायिक सौहार्द

मेघवाल बाड़ा गांव में बन रहा यह राम मंदिर केवल हिंदुओं की आस्था का ही प्रतीक नहीं, बल्कि सांप्रदायिक सौहार्द का भी उदाहरण है। स्थानीय मुस्लिम समुदाय ने न केवल इस निर्माण में किसी तरह की आपत्ति नहीं जताई, बल्कि कई लोग इसमें सहयोग भी कर रहे हैं। यह दृश्य उस सच्चाई को रेखांकित करता है कि आस्था और मानवता की कोई सीमा नहीं होती। पाकिस्तान के अलग-अलग हिस्सों से लोग इस मंदिर के लिए योगदान दे रहे हैं, चाहे वह आर्थिक मदद हो या श्रमदान।
पाकिस्तानी व्लॉगर माखन राम ने अपने व्लॉग में इस मंदिर की कहानी को दुनिया तक पहुंचाया। उन्होंने बताया कि जब वे मंदिर परिसर में पहुंचे, तो वहां सत्संग के लिए एक मंच बन रहा था। थारूराम ने उन्हें मंदिर के निर्माण की प्रेरणा और गंगाजल की कहानी सुनाई, जिसने न केवल स्थानीय लोगों, बल्कि सोशल मीडिया पर भी इस पहल की खूब सराहना की।

एक नया इतिहास रचता थारपारकर

थारपारकर का यह राम मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि आस्था, एकजुटता और सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है। यह मंदिर उन लोगों के लिए एक जवाब है, जो मानते हैं कि सीमाएं आस्था को बांध सकती हैं। अयोध्या के राम मंदिर ने जहां विश्वभर के हिंदुओं को एकजुट किया, वहीं थारपारकर का यह मंदिर पाकिस्तान के हिंदू समुदाय को उनकी जड़ों से जोड़ रहा है।

यह मंदिर भविष्य में न केवल धार्मिक पर्यटन का केंद्र बन सकता है, बल्कि हिंदू-मुस्लिम एकता और धार्मिक सहिष्णुता का भी प्रतीक बनेगा। थारूराम और मेघवाल बाड़ा के लोगों ने साबित कर दिया कि जब आस्था और संकल्प एक हो जाते हैं, तो कोई भी बाधा उसे रोक नहीं सकती।

पाकिस्तान में राम का आशियाना: मेघवाल बाड़ा का अनोखा मंदिर

मेघवाल बाड़ा का राम मंदिर केवल पत्थरों का ढांचा नहीं, बल्कि एक जीवंत कहानी है—श्रद्धा, समर्पण और सांप्रदायिक सौहार्द की कहानी। पुजारी थारूराम का गंगाजल और उनकी सादगी इस मंदिर को और भी पवित्र बनाती है। यह मंदिर न केवल पाकिस्तान के हिंदुओं के लिए एक आध्यात्मिक आश्रय है, बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक संदेश है कि आस्था की कोई सीमा नहीं होती।

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