नई दिल्ली, 14 जुलाई 2025: राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने चार प्रख्यात हस्तियों को राज्यसभा के लिए मनोनीत कर एक नया इतिहास रचा है। इस बार खास बात यह है कि इनमें दो ऐसे व्यक्तित्व शामिल हैं, जिन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की विचारधारा को अपने कार्यों से मजबूती दी है। ये हैं केरल के कन्नूर के साहसी शिक्षाविद् और समाजसेवी सदानंदन मास्टर और दिल्ली की प्रख्यात इतिहासकार डॉ. मीनाक्षी जैन। उनके साथ मशहूर सरकारी वकील उज्ज्वल निकम और पूर्व विदेश सचिव हर्षवर्धन शृंगला को भी यह सम्मान मिला है। यह मनोनयन न केवल इन व्यक्तियों की उपलब्धियों का उत्सव है, बल्कि एक मजबूत राजनीतिक और वैचारिक संदेश भी देता है।
सदानंदन मास्टर: हौसले की मिसाल, राष्ट्रवाद का प्रतीक
केरल के कन्नूर जिले के सदानंदन मास्टर एक ऐसे योद्धा हैं, जिन्होंने अपने जीवन में असाधारण साहस और समर्पण का परिचय दिया। एक शिक्षक, समाजसेवी और भाजपा नेता के रूप में उनकी पहचान केरल की राजनीतिक हिंसा के खिलाफ एक प्रेरक कहानी है। 1994 में, जब वे मात्र 30 वर्ष के थे, वामपंथी कार्यकर्ताओं ने उनकी राष्ट्रवादी विचारधारा और RSS से जुड़ाव के कारण उन पर क्रूर हमला किया, जिसमें उनके दोनों पैर काट दिए गए। लेकिन सदानंदन ने हार नहीं मानी। कृत्रिम पैरों के सहारे उन्होंने न केवल शिक्षण और समाजसेवा जारी रखी, बल्कि केरल में भाजपा को मजबूत करने और सामाजिक जागरूकता फैलाने में भी अहम भूमिका निभाई।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2021 के केरल विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान उनकी कहानी को गर्व के साथ उजागर किया था। उन्होंने कहा था, “सदानंदन मास्टर का एकमात्र अपराध यह था कि वे भारत माता की जय बोलते थे और गरीबों के लिए काम करना चाहते थे। इसके लिए उनके पैर काट दिए गए, फिर भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी।” 1 मई 1964 को कन्नूर के पेरिनचेरी गांव में जन्मे सदानंदन ने गुवाहाटी विश्वविद्यालय से बी.कॉम और कालीकट विश्वविद्यालय से बी.एड की डिग्री हासिल की। त्रिशूर के एक स्कूल में सामाजिक विज्ञान पढ़ाने के बाद 2020 में रिटायर हुए, लेकिन उनका संघर्ष और सेवा का जज्बा आज भी कायम है।
राजनीतिक योगदान और संदेश:
सदानंदन मास्टर ने 2016 और 2021 में कुथुपरम्बा विधानसभा क्षेत्र से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा, भले ही जीत न मिली, लेकिन उनकी दृढ़ता ने लाखों दिलों को छुआ। उनका राज्यसभा मनोनयन केरल में भाजपा की बढ़ती ताकत का प्रतीक है। हाल ही में गृह मंत्री अमित शाह के केरल दौरे और संगठनात्मक मजबूती के प्रयासों के बाद यह कदम पार्टी के लिए एक रणनीतिक जीत है। यह मनोनयन उन सायलेंट वर्कर्स को सम्मान देता है, जो विपरीत परिस्थितियों में भी राष्ट्रवादी विचारधारा के लिए लड़ते रहे।
डॉ. मीनाक्षी जैन: इतिहास को भारतीय नजरिए से गढ़ने वाली विद्वान
डॉ. मीनाक्षी जैन भारतीय इतिहास को भारतीय दृष्टिकोण से परिभाषित करने वाली एक सशक्त आवाज हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान में पीएचडी और गार्गी कॉलेज में इतिहास की प्रोफेसर रहीं जैन ने भारतीय संस्कृति, मंदिर परंपराओं और इतिहास पर गहन शोध किया है। उनकी किताबें जैसे ‘राम और अयोध्या’, ‘दि बैटल फॉर राम’, ‘सती’, और ‘फ्लाइट ऑफ डीटीज एंड रिबर्थ ऑफ टेम्पल्स’ ने इतिहास लेखन में नए आयाम जोड़े। 2020 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया।
अयोध्या केस में ऐतिहासिक योगदान:
डॉ. जैन ने अयोध्या राम मंदिर विवाद में ऐतिहासिक और पुरातात्विक प्रमाण पेश कर एक निर्णायक भूमिका निभाई। उनकी पुस्तकों ने राम मंदिर की ऐतिहासिकता को साहित्यिक और पुरातात्विक आधार पर स्थापित किया, जिसने वामपंथी इतिहासकारों जैसे रोमिला थापर और इरफान हबीब के दृष्टिकोण को चुनौती दी। उनके शोध ने न केवल अकादमिक जगत में बहस को नया मोड़ दिया, बल्कि आम जनता में ऐतिहासिक चेतना को भी जागृत किया।
विवाद और प्रभाव:
2002 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के दौरान उनकी लिखी NCERT की पाठ्यपुस्तक ‘Medieval India’ विवादों में रही। इसे वैचारिक दृष्टिकोण और धार्मिक संतुलन के मुद्दों पर आलोचना झेलनी पड़ी, और 2004 में यूपीए सरकार ने इसे पाठ्यक्रम से हटा दिया। फिर भी, डॉ. जैन का योगदान भारतीय इतिहास को पुनर्परिभाषित करने में अहम रहा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनके राज्यसभा मनोनयन की सराहना करते हुए कहा, “डॉ. जैन एक प्रख्यात विद्वान और शोधकर्ता हैं। उनका संसद में आना शैक्षणिक और वैचारिक विमर्श को समृद्ध करेगा।”
एक नई शुरुआत
सदानंदन मास्टर और डॉ. मीनाक्षी जैन का राज्यसभा मनोनयन केवल व्यक्तिगत सम्मान नहीं, बल्कि RSS की विचारधारा और राष्ट्रवादी दृष्टिकोण को मुख्यधारा में लाने का एक मजबूत कदम है। यह उन अनगिनत सायलेंट वर्कर्स को समर्पित है, जो बिना किसी स्वार्थ के देश और समाज के लिए कार्यरत हैं। यह मनोनयन न केवल केरल में भाजपा की बढ़ती ताकत को दर्शाता है, बल्कि भारतीय इतिहास और संस्कृति को वैश्विक मंच पर एक नई पहचान देने का संकल्प भी दिखाता है।