नई दिल्ली, 5 मई 2025, सोमवार। भारतीय राजनीति में समय-समय पर विवादों का दौर आता रहा है, और कांग्रेस के दिग्गज नेता राहुल गांधी भी इससे अछूते नहीं रहे हैं। हाल ही में, उनकी कथित दोहरी नागरिकता को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में एक जनहित याचिका दायर की गई थी, जिसने राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी। लेकिन, 5 मई 2025 को कोर्ट ने इस याचिका को खारिज कर दिया, जिससे इस मामले में एक अहम मोड़ आया।
याचिका का आधार और दावे
यह याचिका कर्नाटक के सामाजिक कार्यकर्ता और बीजेपी सदस्य एस. विग्नेश शिशिर ने दायर की थी। याचिका में दावा किया गया कि राहुल गांधी, जो लोकसभा में विपक्ष के नेता और रायबरेली से सांसद हैं, भारत के साथ-साथ ब्रिटेन के भी नागरिक हैं। याचिकाकर्ता ने ब्रिटेन की एक कंपनी, बेकोप्स लिमिटेड, के दस्तावेजों का हवाला देते हुए कहा कि राहुल गांधी ने 2003 से 2009 तक इस कंपनी में डायरेक्टर के रूप में काम किया और अपने को ब्रिटिश नागरिक घोषित किया था। इसके आधार पर, शिशिर ने तर्क दिया कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 84(ए) के तहत, जो संसद सदस्यता के लिए भारतीय नागरिकता को अनिवार्य बनाता है, राहुल गांधी लोकसभा चुनाव लड़ने के अयोग्य हैं।
याचिका में यह भी मांग की गई थी कि राहुल गांधी की भारतीय नागरिकता रद्द की जाए, उनकी लोकसभा सदस्यता समाप्त की जाए, और भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) तथा पासपोर्ट एक्ट के उल्लंघन के लिए सीबीआई जांच शुरू की जाए। याचिकाकर्ता ने दावा किया कि उनके पास ब्रिटिश सरकार के कुछ ईमेल और दस्तावेज हैं, जो उनके आरोपों को पुख्ता करते हैं।
कोर्ट की सुनवाई और केंद्र का रुख
इस मामले की सुनवाई इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में कई महीनों तक चली। कोर्ट ने केंद्र सरकार से बार-बार राहुल गांधी की नागरिकता के संबंध में स्पष्ट जवाब और स्टेटस रिपोर्ट मांगी। केंद्र सरकार ने कोर्ट को बताया कि गृह मंत्रालय ने इस मामले में ब्रिटिश सरकार से जानकारी मांगी है, लेकिन जवाब में देरी के कारण अंतिम निर्णय लेने के लिए और समय चाहिए। 21 अप्रैल 2025 को हुई सुनवाई में, कोर्ट ने केंद्र को 10 दिनों के भीतर अंतिम रिपोर्ट दाखिल करने का सख्त निर्देश दिया, यह कहते हुए कि यह मामला “राष्ट्रीय महत्व” का है और इसमें देरी बर्दाश्त नहीं की जाएगी।
हालांकि, 5 मई 2025 को हुई सुनवाई में, कोर्ट ने याचिका को खारिज कर दिया। कोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि वह याचिकाकर्ता के आवेदन पर अंतिम निर्णय ले और याचिकाकर्ता को सूचित करे। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि याचिकाकर्ता केंद्र के निर्णय से संतुष्ट नहीं है, तो वह वैकल्पिक कानूनी रास्तों का सहारा ले सकता है।
पहले भी उठ चुके हैं ऐसे सवाल
यह पहली बार नहीं है जब राहुल गांधी की नागरिकता पर सवाल उठाए गए हैं। 2019 में, सुप्रीम कोर्ट ने एक समान याचिका को खारिज कर दिया था, जिसमें राहुल गांधी पर ब्रिटिश नागरिक होने का आरोप लगाया गया था। तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने टिप्पणी की थी, “क्या किसी कंपनी के दस्तावेज में ब्रिटिश नागरिक लिख देने से कोई ब्रिटिश नागरिक हो जाता है?” कोर्ट ने याचिका को आधारहीन करार देते हुए खारिज कर दिया था।
इसी तरह, दिल्ली हाईकोर्ट में भी बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी द्वारा दायर एक याचिका लंबित है, जो राहुल गांधी की नागरिकता की जांच की मांग करती है। हालांकि, दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि वह इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के बाद ही इस मामले पर विचार करेगा।
कांग्रेस का जवाब और राजनीतिक कोण
कांग्रेस पार्टी ने इस पूरे मामले को “राजनीतिक साजिश” करार दिया है। पार्टी का कहना है कि यह विपक्ष को कमजोर करने और राहुल गांधी की छवि को धूमिल करने की कोशिश है। कांग्रेस ने हमेशा इस बात पर जोर दिया है कि राहुल गांधी भारतीय नागरिक हैं और इस तरह के आरोप निराधार हैं।
दूसरी ओर, बीजेपी और अन्य विपक्षी दलों ने इस मुद्दे को भुनाने की कोशिश की। सोशल मीडिया, खासकर X पर, इस मामले ने खूब सुर्खियां बटोरीं। कुछ यूजर्स ने इसे राहुल गांधी की साख पर सवाल उठाने का मौका माना, तो कुछ ने इसे राजनीतिक बदले की कार्रवाई बताया।
इस फैसले के मायने
इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस फैसले ने राहुल गांधी को तात्कालिक राहत तो दी है, लेकिन इसने नागरिकता विवाद को पूरी तरह खत्म नहीं किया। कोर्ट ने याचिकाकर्ता को वैकल्पिक कानूनी रास्ते अपनाने की छूट दी है, जिसका मतलब है कि यह मामला भविष्य में फिर से उठ सकता है। साथ ही, केंद्र सरकार का अंतिम निर्णय इस मामले में महत्वपूर्ण होगा।