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Monday, August 4, 2025

राजीव गांधी से भारत रत्न वापसी का प्रस्ताव पास करने वाले का साथ कैसे दे कांग्रेस

दिल्ली सरकार को लेकर केंद्र द्वारा लाए गए अध्यादेश के खिलाफ आम आदमी पार्टी के संयोजक एवं दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, विपक्षी दलों का समर्थन मांग रहे हैं। इस बाबत कांग्रेस पार्टी से भी बात हुई है, लेकिन कांग्रेस को वह दिन याद आ गया, जब दिल्ली विधानसभा में केजरीवाल सरकार ने पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी से ‘भारत रत्न’ वापस लेने का प्रस्ताव पास कर दिया था। अब कांग्रेस पार्टी, अध्यादेश के मुद्दे पर केजरीवाल का साथ देने से हिचक रही है। दूसरी ओर, संविधान निर्माता डॉ. बीआर आंबेडकर ने बाकायदा संविधान में ही ऐसी व्यवस्था कर दी थी कि भारत की राजधानी में कोई भी कानून भारत की संसद ही बनाएगी। दिल्ली में चार मुख्यमंत्रियों के साथ काम कर चुके पूर्व विधानसभा सचिव एवं संविधान विशेषज्ञ एसके शर्मा बताते हैं, अब पावर को लेकर जो विवाद शुरू हुआ है, वह सीधे तौर पर डॉ. आंबेडकर की विद्वता पर सवाल है।

असल विवाद की यही जड़ है

एसके शर्मा के मुताबिक, दिल्ली में चुनी हुई सरकार ‘पंजाब, हरियाणा या उत्तर प्रदेश की तर्ज पर शासन करना चाहती है। असल विवाद की यही जड़ है। वे सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर टिप्पणी नहीं करेंगे। सुप्रीम कोर्ट ने बीते दिनों अपने एक फैसले में दिल्ली सरकार को ट्रांसफर पोस्टिंग का अधिकार दे दिया था। इसके बाद जब केजरीवाल ने ताबड़तोड़ ट्रांसफर करने शुरू किए तो केंद्र सरकार द्वारा दिल्ली में तबादलों और नियुक्तियों पर अध्यादेश लाया गया। इससे केजरीवाल सरकार के हाथ में आई ट्रांसफर पोस्टिंग दोबारा से एलजी के पास चली गई। अब केजरीवाल इस मुद्दे पर केंद्र के खिलाफ विपक्षी दलों का समर्थन मांग रहे हैं। मंगलवार को उन्होंने पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी से बातचीत की है। उनके साथ पंजाब के सीएम भगवंत मान भी थे।

डॉ. आंबेडकर की विद्वता पर सवाल उठाना

संविधान विशेषज्ञ एसके शर्मा के मुताबिक, दिल्ली को लेकर कानून बनाने का अधिकार, केंद्र के पास है। दिल्ली में जितने कानून बने हैं, वे सब कानून संसद ने बनाए हैं। संविधान निर्माता डॉ. बीआर आंबेडकर ने संविधान में यह व्यवस्था दी है। दिल्ली को पूर्ण राज्य की मांग करना, डॉ आंबेडकर की विद्वता पर सवाल उठाना है। इससे पहले आम आदमी पार्टी, दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग उठा चुकी है। 1947 में जब स्वतंत्र भारत के लिए संविधान का निर्माण हो रहा था, तो उस वक्त दिल्ली को भी पूर्ण राज्य का दर्जा देने की बात सामने आई थी। संविधान सभा ने इस मामले में पट्टाभि सीतारमैया की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित की। कमेटी की रिपोर्ट में दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने पर सहमति बनी। यह रिपोर्ट जब डॉ. राजेंद्र प्रसाद के जरिए डॉ. आंबेडकर तक पहुंची तो उन्होंने इसे खारिज कर दिया। डॉ. आंबेडकर का कहना था कि भारत की राजधानी पर दिल्ली राज्य का अधिकार नहीं हो सकता है। दिल्ली को लेकर केंद्र सरकार ही कानून पास करेगी। इसमें राज्य का कोई दखल नहीं होगा। 1987 में दिल्ली को पूर्ण राज्य बनाने के लिए बालाकृष्णन कमेटी बनी। कमेटी ने कहा, कानून व्यवस्था में कोई बदलाव दिल्ली के हित में नहीं है। इसके बाद दिल्ली सरकार और अफसरों के बीच हुए टकराव के बाद केंद्र ने संसद के जरिए एनसीटी सरकार (संशोधन) अधिनियम 2021 लागू कर दिया। इसमें चुनी हुई सरकार के ऊपर उपराज्यपाल को प्रधानता दी गई।

संविधान की बंदिशों को तोड़ने का प्रयास

बतौर एसके शर्मा, केजरीवाल सरकार उन बंदिशों से बाहर निकलने का प्रयास करते रहे, जिनका उल्लेख भारतीय संविधान में देखने को मिलता है। शक्तियों के मसले पर कई बार हुई टकराहट के बाद केंद्र ने वह कानून लागू कर दिया, जिसके तहत दिल्ली सरकार का मतलब ‘उपराज्यपाल’ होगा। दरअसल, दिल्ली सरकार अन्य प्रदेशों की तर्ज पर आगे बढ़ना चाहती है। अतीत को देखें तो दिल्ली एक केंद्र शासित प्रदेश रहा है। जिस तरह पुडुचेरी में यह मांग आई कि जनता के चुने हुए प्रतिनिधि भी सरकार में होने चाहिए, वैसे ही दिल्ली में एक सिस्टम बना दिया गया। विधानसभा का गठन कर एलजी की सलाह से शासन करने की प्रथा शुरू हो गई। हालांकि केजरीवाल सरकार, पंजाब, हरियाणा या उत्तर प्रदेश की तर्ज पर काम करना चाहती थी। दिल्ली की सरकार को अब कोई भी कार्यकारी फैसला लेने से पहले उपराज्यपाल की अनुमति लेनी होगी। आप सरकार से पहले जब विधानसभा में कोई बिल पेश होता था, तो 239ए के अंतर्गत वहां एलजी का नाम आता था। दिल्ली सरकार ने विधान सभा कार्यवाही के इस हिस्से से उपराज्यपाल शब्द ही हटा दिया। इससे तकरार बढ़ती चली गई। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के साथ उपराज्यपाल लिखा जाने लगा। जब पर सवाल उठे तो सरकार का अर्थ ‘राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की मंत्री परिषद’ लिखना प्रारंभ कर दिया गया।

क्या फर्क है अनुच्छेद 239 और 239AA में

एसके शर्मा बताते हैं कि संविधान के अनुच्छेद 239 और 239AA की व्याख्या को लेकर दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार के बीच शुरू से मतभेद रहा है। अनुच्छेद 239 केंद्र शासित प्रदेशों के लिए है। इसमें उनके अधिकार एवं सीमाएं वर्णित हैं। दिल्ली के लिए विशेष तौर पर 239AA जोड़ा गया है। इसके अनुसार, 239AA के प्रावधानों की व्याख्या उपराज्यपाल अपनी समझ के अनुसार करेंगे। केजरीवाल सरकार इसे अपने तरीके से समझती रही। साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था, अनुच्छेद-239AA आखिर एक लोकतांत्रिक प्रयोग था। इसकी व्याख्या से ही तय होगा कि ये सफल रहा या नहीं। इसकी व्याख्या क्या है। इसमें दिल्ली को अन्य केंद्रशासित राज्यों से अलग दर्जा मिला है। इसमें यह भी लिखा है कि इसके तहत दिल्ली में चुनी हुई सरकार होगी, जो जनता के लिए जवाबदेह होगी। उच्चतम न्यायालय ने इनको रेखांकित कर दिया है। दिल्ली के उपराज्यपाल संविधान के अनुच्छेद 239AA के प्रावधानों को छोड़कर अन्य मुद्दों पर निर्वाचित सरकार की सलाह पर काम करें।

दिल्ली में ऐसा प्रावधान रहा है

नियमों में यह बात कही गई है कि जमीन, पुलिस, कानून व्यवस्था और सर्विसेज यानी सेवा, इन चार विषयों में विधानसभा का कोई दखल नहीं होगा। लिहाजा, केंद्र शासित प्रदेश की अपनी कोई सेवा नहीं होती, इसलिए राजनिवास से इन चारों विषयों का संचालन होगा। इन पर विधानसभा, उपराज्यपाल को राय नहीं देगी, भले ही वह मानें या न मानें। बाकी विषयों के लिए एडवांस में केंद्र की अनुमति लेनी होगी। बतौर एसके शर्मा, बाकी विषयों पर दिल्ली विधानसभा कानून बना सकती है। राज्य या समवर्ती सूची वाले विषयों पर भी कानून बनाने का अधिकार है। इसके लिए एडवांस में केंद्र की अनुमति लेनी होती है। ‘आप’ सरकार से पहले दिल्ली में जो सरकारें रही हैं, वे कानून बनाने से पहले केंद्र की अनुमति लेती थीं, इसलिए उनका केंद्र के साथ विवाद नहीं हुआ। कई मसलों पर केंद्र, एलजी और राष्ट्रपति तक का अपमान हुआ। लोकपाल के बिल को लेकर जो कुछ हुआ, वह सभी ने देखा था।

दुनिया के कई देशों में लागू है यह व्यवस्था

सुप्रीम कोर्ट ने 11 मई को दिए अपने एक फैसले में राष्ट्रीय राजधानी में पुलिस, कानून-व्यवस्था और भूमि को छोड़कर अन्य सभी सेवाओं का नियंत्रण, दिल्ली सरकार को सौंप दिया था। अब केंद्र सरकार ने संविधान पीठ के फैसले की समीक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। इसके अलावा केंद्र सरकार, राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण बनाने के लिए एक अध्यादेश ले आई। इसके जरिए ट्रांसफर और पोस्टिंग का अधिकार, दोबारा से उपराज्यपाल के पास चला गया है। केंद्र सरकार के सूत्रों का कहना है कि ऐसी व्यवस्था दुनिया के कई देशों में लागू है। अमेरिका की राजधानी वाशिंगटन डीसी, जर्मनी की राजधानी बर्लिन और फ्रांस की राजधानी पेरिस में भी दिल्ली जैसी व्यवस्था बताई गई है। दिल्ली बड़ी संख्या में राजनयिक मिशनों और अंतरराष्ट्रीय संगठनों की मेजबानी करती है। ऐसे में केंद्र सरकार का नियंत्रण, विदेशी सरकारों के साथ प्रभावी समन्वय सुनिश्चित करता है। इन राजनयिक संस्थाओं के सुचारू संचालन की सुविधा भी प्रदान करता है।

newsaddaindia6
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Anita Choudhary is a freelance journalist. Writing articles for many organizations both in Hindi and English on different political and social issues

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