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पुण्यश्लोक अहिल्याबाई: 300 साल पहले की लोकमाता, जिन्होंने रचा इतिहास

नई दिल्ली, 30 मई 2025, शुक्रवार। महारानी अहिल्याबाई होल्कर (31 मई 1725 – 13 अगस्त 1795) भारतीय इतिहास की एक ऐसी शासिका थीं, जिनका जीवन प्रेरणा, साहस और समर्पण का प्रतीक है। उनकी जन्म त्रिशताब्दी के अवसर पर उनकी विरासत को याद करना प्रत्येक भारतीय के लिए गर्व का विषय है। अहिल्याबाई न केवल एक अजेय योद्धा थीं, जिन्होंने कभी युद्ध में हार नहीं मानी, बल्कि धर्म, संस्कृति, और समाज के उत्थान के लिए भी उन्होंने अनुपम योगदान दिया। उनके जीवन की हर पंक्ति पुण्यश्लोक के समान है, जो आज भी हमें प्रेरित करती है।

काशी विश्वनाथ मंदिर और तीर्थों का जीर्णोद्धार

अहिल्याबाई का सबसे उल्लेखनीय योगदान काशी विश्वनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण है। यदि वे नहीं होतीं, तो शायद काशी में मंदिर का यह भव्य स्वरूप आज हम नहीं देख पाते। मणिकर्णिका घाट, हरिद्वार, प्रयाग, अयोध्या में सरयू घाट, सोमनाथ, कांची, रामेश्वरम, भीमाशंकर, और श्रीशैलम जैसे तीर्थस्थलों में उन्होंने मंदिरों, धर्मशालाओं, पीने के पानी और भंडारे की व्यवस्था की। उनके द्वारा स्थापित पूजा व्यवस्था आज भी जीवंत है। सप्तपुरी, चार धाम और द्वादश ज्योतिर्लिंगों सहित 23 तीर्थस्थानों पर उनके कार्य आज भी उनकी दूरदर्शिता का परिचय देते हैं।

महिला सशक्तिकरण की प्रणेता

300 साल पहले, जब महिला सशक्तिकरण की अवधारणा भी स्पष्ट नहीं थी, अहिल्याबाई ने इस दिशा में क्रांतिकारी कदम उठाए। उन्होंने विधवाओं को संपत्ति का अधिकार और गोद लेने की अनुमति दी, जिससे सामाजिक समानता को बढ़ावा मिला। उनकी सहयोगी रेणुका देवी, जो विधवा थीं, उनकी शादी करवाकर उन्होंने सामाजिक रूढ़ियों को तोड़ा। माहेश्वरी साड़ी को विश्व प्रसिद्ध कर हजारों कारीगरों को रोजगार दिया और माहेश्वरी ब्रांड की नींव रखी। उनकी नीतियों में किसानों, महिलाओं और व्यापारियों के कल्याण को प्राथमिकता दी गई।

न्यायपूर्ण और समृद्ध शासन

अहिल्याबाई का शासन केवल सत्ता का प्रतीक नहीं, बल्कि प्रशासनिक कुशलता का उदाहरण था। आठ वर्ष की आयु में विवाह और अल्पायु में पति, ससुर, बेटे, बेटी और दामाद को खोने के बावजूद उन्होंने नर्मदा तट पर महेश्वर को राजधानी बनाकर अपने राज्य को संभाला। उनकी नीति थी कि यदि राज्य ठीक नहीं चला तो प्रजा अनाथ हो जाएगी। उन्होंने बिना कर बढ़ाए राजस्व को 75 लाख से बढ़ाकर सवा करोड़ तक पहुंचाया। भूमिहीनों को जमीन दी और प्रत्येक जमीन पर 12 पेड़ लगाने का नियम बनाया, जिससे पर्यावरण और अर्थव्यवस्था दोनों को लाभ हुआ। उनकी न्याय व्यवस्था ऐसी थी कि सात पेड़ों की उपज किसान की थी, जबकि पांच का हिस्सा राज्य को जाता था।

कृषि, सिंचाई और व्यापार में योगदान

अहिल्याबाई ने सिंचाई, कृषि और व्यापार को बढ़ावा देने के लिए अनेक कार्य किए। इंदौर के पास उनकी बनाई सिंचाई व्यवस्था आज भी चर्चित है। उन्होंने फसलों के विविधीकरण की नींव रखी, जो आज की सरकारें भी लागू कर रही हैं। पड़ोसी राज्यों के साथ उनके मधुर संबंध और ब्रिटिश वायसराय तक ने उनकी प्रशंसा की। उनकी युद्धकुशलता और कूटनीति अतुलनीय थी।

आधुनिक भारत में उनकी विरासत

आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ उसी विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं। महिला सशक्तिकरण, सामाजिक समानता और सांस्कृतिक पुनरुत्थान के क्षेत्र में उनके प्रयास अहिल्याबाई के आदर्शों को प्रतिबिंबित करते हैं। महात्मा गांधी के रामराज्य, विनोबा भावे के सर्वोदय, पं. दीनदयाल उपाध्याय के अंत्योदय और मोदी के “सबका साथ, सबका विकास” की भावना अहिल्याबाई के “सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय” के सिद्धांत से प्रेरित है।

प्रेरणास्रोत के रूप में अहिल्याबाई

अहिल्याबाई होल्कर का जीवन न केवल शासक के रूप में, बल्कि एक लोकमाता, प्रजावत्सला और पुण्यश्लोक के रूप में इतिहास में अमर है। 1767 में पति की मृत्यु के बाद 28 वर्ष तक उन्होंने होल्कर साम्राज्य का कुशल नेतृत्व किया। मुरादाबाद, उत्तराखंड, कर्नाटक जैसे स्थानों में उनकी प्रतिमाएं और 1996 में भारत सरकार द्वारा जारी डाक टिकट उनकी महानता का प्रतीक हैं। उनकी अखिल भारतीय दृष्टि, धार्मिक-सामाजिक सुधार और प्रशासनिक कुशलता आज भी हमें प्रेरित करती है।

अहिल्याबाई होल्कर का जीवन हर भारतीय के लिए एक मिसाल है। उनकी जन्म त्रिशताब्दी पर हमें उनके आदर्शों को अपनाकर समाज और राष्ट्र के लिए कार्य करने की प्रेरणा लेनी चाहिए।

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