वाराणसी, 11 अक्टूबर 2024, शुक्रवार। एकाएक तबीयत बिगड़ गई, सबको राम- राम। बीएचयू राजनीति विज्ञान विभाग के पूर्व अध्यक्ष और सामाजिक विज्ञान संकाय के पूर्व डीन प्रो. कौशल किशोर मिश्र ने अपने फेसबुक वाल पर 27 सितंबर को जैसे ही इस मैसेज को पोस्ट किया। उनके शुभचिंतकों ने फोन कर कुशलक्षेम पूछना शुरू कर दिया। बृहस्पतिवार की सुबह जब उनके निधन की खबर आई तो लोग स्तब्ध रह गए। वे बीएचयू अस्पताल में इलाजरत थे। नगवा आवास से शवयात्रा निकली। हरिश्चंद्र घाट पर अंत्येष्टि की गई। इसमें प्रबुद्धजन शामिल हुए। बनारसी फक्कड़पन और अक्खड़पन दोनों ही प्रो. कौशल किशोर व्यक्तित्व में समाहित था। जहां बैठते अपने विनोदी स्वभाव से मुरीद करते, जहां किसी के मान सम्मान, राष्ट्र, धर्म, समाज के स्वाभिमान की बात आई, कौशल गुरु को हत्थे से उखड़ते और लड़ते भी सबने देखा है। असि पर पप्पू की अड़ी हो, बीएचयू में विभाग में हों या फिर कहीं भी फुर्सत की घड़ी हो, गंगा घाट से लंका के ठाट तक गुरु की उपस्थिति अलग ही रंगत उत्पन्न करती थी। उनके साथ रोज अड़ियां जमाने वाले अड़ीबाज भी उनकी स्मृतियों को सहेजे दुखी नजर आए।
रामलीला में बनते थे राम: तुलसीघाट पर होने वाली रामलीला में वह प्रभुश्री राम की भूमिका में नजर आते थे। हर साल रामलीला में उनके अतुलनीय योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। रामलीला के दौरान मानस की चौपाइयों का भी वाचन करते थे। इसके अलावा विश्वविद्यालय में रहने और सेवानिवृत्ति के बाद भी वह लोगों को प्रकृति से जुड़े रहने के लिए प्रेरित किया करते थे। राजनीतिक विशेषज्ञ होने के साथ ही समाजिक, धार्मिक कार्यों में भी बढ़ चढ़कर भागीदारी करते थे।
सूनी हो गई पप्पू की अड़ी : भाजपा प्रदेश प्रवक्ता अशोक पांडेय ने कहा कि हम 25-30 लोग रोज पप्पू की अड़ी पर बैठते थे। कौशल गुरु का सानिध्य मिलता, सबको खूब हंसाते, चाय पिलाते, किसी को दुलारते तो मीठी झाड़ लगाते। पार्टी हो या संगठन, विचारधारा के विपरीत कहीं कुछ होता देखते तो बर्दाश्त न करते। बनारसीपन इतना कूट-कूट कर भरा था कि कभी-कभी भूल जाते कि वह एक प्रोफेसर भी हैं। उनका असमय जाना सबको रुला गया। अब उनकी यादें ही शेष है, पप्पू की दुकान पर उनकी अनुपस्थिति हमेशा खलेगी। बहुत याद आएंगे कौशल गुरु।
सवसे आगे मिलते थे : बीएचयू पत्रकारिता विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डा. ज्ञानप्रकाश मिश्र कहते हैं प्रो. कौशल किशोर के फक्कड़ स्वभाव से बीएचयू ही नहीं बल्कि बनारस का बौद्धिक वर्ग सुपरिचित था। वर्ष 2000 में फिल्म ‘वाटर’ की शूटिंग का उन्होंने विरोध किया। हिंदी, हिंदू और हिंदुस्तान की बात होती इंटरनेट मीडिया से सड़क तक साथ देते। बीएचयू ने वर्ष 2005 में संघ के कार्यक्रम में जाने पर चार प्रोफेसरों को नोटिस दी तो सबसे पहले कौशल गुरु ने आवाज उठाई थी।
सोशल मीडिया बनारसी अंदाज में दी श्रद्धांजलि: कौशल गुरु के निधन पर इंटरनेट मीडिया पर लोगों ने बनारसी अंदाज में ही श्रद्धांजलि दी। एमएलसी धर्मेंद्र राय ने लिखा-तो साहब आज शाम श्मशान पर लग गई अड़ी। अस्सी की अड़ी के प्रमुख स्तंभ कौशल गुरु देह त्याग श्मशान पहुंचे तो सब के सब अड़ीबाज भी पीछे-पीछे। डा. गया सिंह शुरू से अंत तक आज की खास अड़ी की अध्यक्षता करते हुए घाट पहुंचे। एक जनाब ने शोक के भाव में कहा, गुरु का मरना…। आवाज आई-चुप बे! उ मरल कहां हौ। गुरुआ कब्बौ मरी। ऊ कभी बूढ़ भइबै नाहि कयल त मरत कइसे। ऊ अपने अमर रहेकऽ सब जुगाड खुदै बना डलेल रहल। जब फेसबुक देखब कौशल गुरु वइसैं जीवंत देखइहन। उधर, चिता और इधर डा. गया सिंह का परिचित उद्बोधन, का बताई। कवन कवन किस्सा। कानें में मुंह डाल दे अऊर फूंक दे राष्ट्रीय संबोधन। अरविंद योगी जी राज खोल रहे हैं। तुलसीघाट की नाग नथैया में कान्हा का रोल किए भए थे। कालिया नाग के फन पर नृत्य करते बचपन की फोटू रखे पडे. थे और वह ताजिंदगी कान्हा ही बने रहे। अशोक पांडेय, डा. रामजी राय को वहीं से फोन लगाया, ए राम जी भाई। गुरुआ तो धोखा दे निकल लिया। अडी से जुडे डा. राजेन्द्र सिंह हों या बाबू, सब कौशल गुरु जैसी शख्सियत को खो देने के गम में तो थे पर निष्कर्ष यही कि गुरु मरे कदापि नहीं। वह जिंदा थे, हैं और रहेंगे।