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Monday, June 30, 2025

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला, बिना कारण गिरफ्तारी को बताया असंवैधानिक

प्रयागराज, 12 अप्रैल 2025, शनिवार। प्रयागराज के इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गिरफ्तारी के संबंध में एक महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक फैसला सुनाया है, जो न केवल कानूनी दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि नागरिक अधिकारों की रक्षा के लिए भी एक मील का पत्थर साबित हो सकता है। हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि किसी भी व्यक्ति को बिना कारण बताए गिरफ्तार करना असंवैधानिक है और यह संविधान के अनुच्छेद 22(1) का उल्लंघन है। कोर्ट ने पुलिस को निर्देश दिया कि गिरफ्तारी से पहले व्यक्ति को उसके कारण और आधार स्पष्ट रूप से बताए जाएं। इस फैसले ने पुलिस कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए हैं और नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा को मजबूती प्रदान की है।

मामले की पृष्ठभूमि: मंजीत सिंह की याचिका

यह महत्वपूर्ण फैसला रामपुर के मंजीत सिंह की याचिका पर सुनवाई के दौरान आया। मंजीत सिंह के खिलाफ 15 फरवरी, 2024 को भारतीय दंड संहिता (IPC) की विभिन्न धाराओं (420, 467, 468, 469, 406, 504, 506) के तहत एक FIR दर्ज की गई थी। गिरफ्तारी के तुरंत बाद, उन्हें 26 दिसंबर, 2024 को रिमांड मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया गया और एक “मुद्रित रिमांड आदेश” के आधार पर जेल भेज दिया गया। मंजीत सिंह ने अपनी याचिका में दावा किया कि उन्हें गिरफ्तारी के कारणों की जानकारी नहीं दी गई, न ही लिखित में कोई आधार बताया गया, जो संविधान के अनुच्छेद 22(1) और भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की धारा 47 का स्पष्ट उल्लंघन है।

हाईकोर्ट का फैसला: संवैधानिक अधिकारों की रक्षा

जस्टिस महेश चंद्र त्रिपाठी और जस्टिस प्रशांत कुमार की डिविजन बेंच ने इस मामले की सुनवाई करते हुए 9 अप्रैल, 2025 को अपना फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा, “गिरफ्तारी के कारणों की जानकारी देना संविधान के अनुच्छेद 22(1) के तहत अनिवार्य है। इसका उल्लंघन होने पर, भले ही जमानत देने पर वैधानिक प्रतिबंध क्यों न हों, जमानत दी जा सकती है।” कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि गिरफ्तारी के आधार को गिरफ्तार व्यक्ति को उसकी समझ में आने वाली भाषा में स्पष्ट और प्रभावी ढंग से बताया जाए।

हाईकोर्ट ने मंजीत सिंह की गिरफ्तारी को अवैध ठहराते हुए 26 दिसंबर, 2024 के रिमांड आदेश को रद्द कर दिया। कोर्ट ने पाया कि पुलिस ने न तो गिरफ्तारी के समय मंजीत सिंह को कारण बताए और न ही BNSS की धारा 47 के तहत आवश्यक जानकारी प्रदान की। इसके बजाय, उन्हें केवल एक सामान्य गिरफ्तारी मेमो दिया गया, जिसमें कोई विस्तृत जानकारी नहीं थी।

पुलिस को कड़ा संदेश: DGP को सर्कुलर जारी करने का आदेश

हाईकोर्ट ने इस मामले में उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक (DGP) को सख्त निर्देश दिए। कोर्ट ने कहा कि सभी पुलिस अधिकारियों को संविधान के प्रावधानों और BNSS की धारा 47 का पालन सुनिश्चित करना होगा। इसके लिए DGP को आदेश दिया गया कि वे राज्य के सभी जिलों में एक सर्कुलर जारी करें, जिसमें पुलिस अधिकारियों को गिरफ्तारी के समय संवैधानिक और कानूनी प्रक्रियाओं का सख्ती से पालन करने के निर्देश दिए जाएं। यह कदम पुलिस की मनमानी पर अंकुश लगाने और नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करने की दिशा में एक बड़ा प्रयास है।

कानूनी और सामाजिक प्रभाव

यह फैसला न केवल पुलिस कार्यप्रणाली में पारदर्शिता लाने की दिशा में महत्वपूर्ण है, बल्कि यह आम नागरिकों को उनके मौलिक अधिकारों के प्रति जागरूक करने का भी काम करेगा। संविधान का अनुच्छेद 22(1) प्रत्येक व्यक्ति को यह अधिकार देता है कि उसे गिरफ्तारी के कारणों की जानकारी दी जाए और वह अपने वकील से सलाह ले सके। हाईकोर्ट का यह फैसला इस अधिकार को और मजबूत करता है।

साथ ही, BNSS की धारा 47, जो गिरफ्तारी की प्रक्रिया को नियंत्रित करती है, के पालन पर जोर देकर कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि कानून का दुरुपयोग अस्वीकार्य है। यह फैसला उन मामलों में भी मार्गदर्शक सिद्ध होगा, जहां लोग बिना पर्याप्त कारण के गिरफ्तारी का शिकार होते हैं।

सामाजिक प्रतिक्रिया और भविष्य की दिशा

इस फैसले ने कानूनी हलकों से लेकर आम जनता तक में चर्चा को जन्म दिया है। कई लोग इसे नागरिक स्वतंत्रता की जीत के रूप में देख रहे हैं, जबकि कुछ इसे पुलिस सुधार की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम मान रहे हैं। सोशल मीडिया पर लोग हाईकोर्ट के इस फैसले की सराहना कर रहे हैं और इसे “न्याय की जीत” बता रहे हैं। हालांकि, इस फैसले का असली प्रभाव तब देखा जाएगा, जब पुलिस इस सर्कुलर का पालन करेगी और गिरफ्तारी की प्रक्रिया में पारदर्शिता लाएगी। यह फैसला पुलिस को यह भी याद दिलाता है कि उनकी शक्ति असीमित नहीं है और उन्हें कानून के दायरे में रहकर काम करना होगा।

इलाहाबाद हाईकोर्ट का यह फैसला न केवल मंजीत सिंह के लिए, बल्कि देश के हर उस नागरिक के लिए एक राहत है, जो अपने मौलिक अधिकारों की रक्षा चाहता है। जस्टिस एमसी त्रिपाठी और जस्टिस प्रशांत कुमार की बेंच ने अपने इस आदेश से यह स्पष्ट कर दिया कि संविधान से ऊपर कोई नहीं है। DGP को सर्कुलर जारी करने का निर्देश देकर कोर्ट ने पुलिस को जवाबदेह बनाने की दिशा में एक मजबूत कदम उठाया है। यह फैसला निश्चित रूप से भारतीय न्याय प्रणाली में एक नया अध्याय जोड़ेगा और नागरिकों के अधिकारों की रक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।

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