नई दिल्ली, 21 अप्रैल 2025, सोमवार। 21 अप्रैल 2025 को वेटिकन सिटी के कासा सांता मार्टा में एक युग का अंत हुआ। ईसाई समुदाय के सर्वोच्च धर्मगुरु और विश्व शांति के प्रतीक, पोप फ्रांसिस ने 88 वर्ष की आयु में अपनी अंतिम सांस ली। लंबे समय से फेफड़ों और किडनी की गंभीर बीमारियों से जूझ रहे पोप फ्रांसिस का निधन न केवल 1.4 अरब कैथोलिकों के लिए, बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक अपूरणीय क्षति है। उनके निधन की घोषणा वेटिकन के कैमरलेन्गो, कार्डिनल केविन फेरेल ने की, जिन्होंने कहा, “रोम के बिशप, पोप फ्रांसिस आज सुबह 7:35 बजे प्रभु के घर लौट गए। उनका जीवन यीशु और चर्च की सेवा में समर्पित रहा।”
एक साधारण शुरुआत से वेटिकन तक
पोप फ्रांसिस, जिनका असली नाम जॉर्ज मारियो बर्गोग्लियो था, का जन्म 17 दिसंबर 1936 को अर्जेंटीना के ब्यूनस आयर्स में हुआ। एक केमिकल टेक्निशियन के रूप में अपने करियर की शुरुआत करने वाले बर्गोग्लियो ने 21 साल की उम्र में निमोनिया के कारण अपने फेफड़े का एक हिस्सा खो दिया। इसके बावजूद, उनका झुकाव धर्म की ओर बढ़ा और 1958 में वे जेसुइट परंपरा से जुड़े। 1969 में पादरी बनने के बाद, उन्होंने 1992 में ब्यूनस आयर्स के ऑक्सीलरी बिशप, 1998 में आर्कबिशप और 2001 में कार्डिनल का पद संभाला। 13 मार्च 2013 को, वे रोमन कैथोलिक चर्च के 266वें पोप चुने गए, जो 1300 वर्षों में पहले गैर-यूरोपीय और लैटिन अमेरिकी पोप थे।
सुधारों का प्रतीक
पोप फ्रांसिस का 12 साल का कार्यकाल सुधारों, समावेशिता और करुणा का पर्याय रहा। उन्होंने वेटिकन की नौकरशाही को पुनर्गठित किया, पारदर्शिता को बढ़ावा दिया और चर्च को आधुनिक चुनौतियों के अनुरूप ढाला। उनकी सबसे क्रांतिकारी पहलों में समलैंगिक जोड़ों को आशीर्वाद देने की अनुमति, महिलाओं को वेटिकन में अहम पदों पर नियुक्त करना और बच्चों के यौन शोषण के खिलाफ कड़ा रुख शामिल है। 2014 में, उन्होंने चर्च में बच्चों के यौन शोषण को स्वीकार करते हुए सार्वजनिक माफी मांगी, जो उस समय तक अभूतपूर्व था।
पोप फ्रांसिस ने सामाजिक न्याय, पर्यावरण संरक्षण, शरणार्थियों के अधिकार और धार्मिक सहिष्णुता जैसे मुद्दों पर खुलकर आवाज उठाई। उनके चार प्रमुख धार्मिक दस्तावेज और 65 देशों की यात्राएं उनके वैश्विक प्रभाव को दर्शाती हैं। उनकी सादगी—विलासिता से दूरी, साधारण कपड़े और कासा सांता मार्टा में रहने का फैसला—ने उन्हें जनता का प्रिय बनाया।
अंतिम दिन और स्वास्थ्य संघर्ष
पोप फ्रांसिस लंबे समय से स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे थे। युवावस्था में फेफड़े का एक हिस्सा निकाले जाने के बाद, वे ब्रोंकाइटिस, डबल निमोनिया और किडनी की बीमारियों से पीड़ित रहे। 14 फरवरी 2025 को सांस लेने में तकलीफ के कारण उन्हें रोम के जेमेली अस्पताल में भर्ती किया गया, जहां वे 38 दिन तक रहे। डबल निमोनिया और एनीमिया ने उनकी स्थिति को और जटिल बनाया। 23 मार्च को अस्पताल से छुट्टी मिलने के बावजूद, डॉक्टरों ने उन्हें दो महीने के आराम की सलाह दी थी।
इसके बावजूद, पोप फ्रांसिस ने हार नहीं मानी। ईस्टर संडे, 20 अप्रैल 2025 को, उन्होंने सेंट पीटर्स स्क्वायर में 35,000 लोगों को आशीर्वाद दिया और अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस से मुलाकात की। उनकी आवाज में पहले से अधिक शक्ति दिखी, लेकिन अगले दिन, ईस्टर सोमवार को, उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया।
वैश्विक शोक और अगला कदम
पोप फ्रांसिस के निधन ने विश्व भर में शोक की लहर पैदा की। सेंट पीटर्स स्क्वायर में लोग उनकी स्मृति में एकत्र होने लगे। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, जिन्होंने 2021 और 2024 में पोप से मुलाकात की थी, ने भी उनके निधन पर शोक व्यक्त किया।
अब वेटिकन में नए पोप के चयन की प्रक्रिया शुरू होगी। 252 कार्डिनलों में से 138, जिनकी उम्र 80 वर्ष से कम है, सिस्टीन चैपल में गुप्त मतदान करेंगे। जब तक दो-तिहाई बहुमत से नया पोप नहीं चुना जाता, चिमनी से काला धुआं निकलेगा; चयन के बाद सफेद धुआं इसकी घोषणा करेगा। कार्डिनल पिएत्रो पारोलिन और मातेओ ज़ुप्पी जैसे नाम दावेदारों में शामिल हैं, लेकिन क्या इस बार एशिया या अफ्रीका से कोई पोप चुना जाएगा, यह समय बताएगा।
एक अविस्मरणीय विरासत
पोप फ्रांसिस सिर्फ एक धर्मगुरु नहीं, बल्कि वैश्विक शांति, करुणा और मानवता के प्रतीक थे। उनकी शिक्षाएं—सादगी, प्रेम और गरीबों के प्रति समर्पण—लंबे समय तक प्रेरणा देती रहेंगी। जैसा कि कार्डिनल फेरेल ने कहा, “उन्होंने हमें साहस और सार्वभौमिक प्रेम के साथ जीना सिखाया।”
वेटिकन सिटी में उनकी अंतिम यात्रा और अंतिम संस्कार की तैयारियां शुरू हो चुकी हैं, जिसमें विश्व भर से लोग शामिल होंगे। पोप फ्रांसिस भले ही हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी विरासत हमेशा जीवित रहेगी।