वाराणसी, 22 अक्टूबर 2024, मंगलवार। दिवाली से पहले काशी के सांसद व देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने लोकसभा संसदीय क्षेत्र वाराणसी को करोड़ों की सौगातें दी। उन्हीं सौगातों में काशी में खेल प्रेमियों को नेशनल सेंटर ऑफ एक्सीलेंस स्टेडियम का तोहफा दिया। वहीं, स्वतंत्रता सेनानी और यूपी के दूसरे मुख्यमंत्री रहे बाबू संपूर्णानंद के नाम को लेकर वाराणसी में सियासत तेज हो गई है। यूपी कांग्रेस के अध्यक्ष और पूर्व मंत्री अजय राय ने कहा है कि बनारस में पुराने प्रतिष्ठित स्टेडियम के आधुनिक निर्माण के उद्घाटन के साथ, स्टेडियम से जुड़ा बाबू सम्पूर्णानंद का नाम हटा देना आपत्तिजनक और शर्मनाक ही नहीं, काशी और उसकी गौरवशाली विरासत का अपमान भी है। सपा एमएलसी आशुतोष सिन्हा ने कहा कि डॉ. संपूर्णानंद काशी के शिक्षा जगत के एक महत्वपूर्ण व्यक्ति थे, उन्होंने हिंदी भाषा के उत्थान के लिए बड़ा योगदान दिया। उनका नाम हटाने से बनारस के सभी शिक्षित और बुद्धिजीवी वर्ग को गहरा आघात लगा है।
विपक्ष के आरोपों को बीजेपी ने किया सिरे से ख़ारिज
उत्तर प्रदेश के स्टांप एवं न्यायालय पंजीयन शुल्क राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) रविंद्र जायसवाल ने सिगरा स्थित डॉ. संपूर्णानंद स्पोर्ट्स स्टेडियम का नाम बदलने पर स्थिति स्पष्ट की। उन्होंने बताया कि संपूर्णानंद स्पोर्ट्स स्टेडियम का नाम नहीं बदला गया है। किसी भी बड़े संस्थान के नाम बदलने की एक प्रक्रिया होती है। मेयर अशोक कुमार तिवारी ने कहा कि डॉ. संपूर्णानंद के नाम पर ही सिगरा स्टेडियम का नाम है। इस प्रकार का भ्रम फैलाने वालों को पूरी जानकारी कर लेनी चाहिए।
क्या कहता है प्रशासन
सिगरा स्पोर्ट्स स्टेडियम आज भी डाॅ. संपूर्णानंद के नाम पर ही है। केवल अंदर बनी बिल्डिंग का नाम वाराणसी स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स किया गया है। यह कहना है मंडलायुक्त कौशलराज शर्मा का। उन्होंने कहा कि कुछ लोग काशीवासियों के बीच भ्रम पैदा कर रहे हैं कि सिगरा स्टेडियम का नाम बदल दिया गया है। उन्होंने कहा, आज तक स्पोर्ट्स प्राधिकरण ने नाम बदलने की कोई सिफारिश नहीं की है। साजन तिराहे से सिगरा जाने वाले मार्ग पर सिगरा स्टेडियम का मुख्य द्वार है। यहां पर मुख्य गेट का निर्माण होना बाकी है। जिसपर डॉ. संपूर्णानंद स्पोर्ट्स स्टेडियम सिगरा नाम रहेगा।
कौन थे बाबू संपूर्णानंद
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे डॉ. संपूर्णानंद कभी अपने चुनाव क्षेत्र में अपने लिए वोट मांगने नहीं जाते थे। वे कहते थे कि जनता जानती है कि मैंने पूरे पांच साल कैसा काम किया। उसके आधार पर वे हमें वोट देगी या नहीं देगी। मेरे जाने से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। डॉ. संपूर्णानंद का जन्म 1 जनवरी 1891 को वाराणसी में हुआ था। उनका निधन 10 जनवरी 1969 को हुआ। वाराणसी में उनकी शवयात्रा में इतने अधिक लोग उमड़ पड़े थे कि सड़कों पर तिल रखने की जगह नहीं थी। उनकी अर्थी को जन समुद्र के ऊपर-ऊपर से किसी तरह खिसकाते हुए घाट तक पहुंचाया जा सका था। संपूर्णानंद हिंदी, संस्कृत, खगोलशास्त्र में बहुत रुचि रखते थे। टीका भी लगाते थे। पूजा भी करते थे और लिखते-बोलते भी इन चीजों पर।