N/A
Total Visitor
33.3 C
Delhi
Monday, July 7, 2025

वाराणसी में औरंगजेब के नाम पर सियासत: क्या है नाम बदलने की मांग का सच?

वाराणसी, 21 मार्च 2025, शुक्रवार। भारत की सांस्कृतिक राजधानी कहे जाने वाले वाराणसी में एक बार फिर इतिहास और सियासत का संगम देखने को मिल रहा है। इस बार विवाद का केंद्र है शहर का एक मोहल्ला – औरंगाबाद। हिंदू संगठनों ने इस मोहल्ले का नाम बदलने की मांग उठाई है, जिसके पीछे उनकी दलील है कि मुगल शासक औरंगजेब का नाम गुलामी का प्रतीक है और इसे हिंदू धर्मस्थलों के नाम से नहीं जोड़ा जाना चाहिए। यह मांग कोई नई नहीं है, बल्कि काशी में लंबे समय से इस मुद्दे पर चर्चा होती रही है। लेकिन अब यह मांग फिर से सुर्खियों में है, जब विश्व वैदिक सनातन न्यास ने वाराणसी के मेयर को पत्र लिखकर इस पर कार्रवाई की गुहार लगाई है।
औरंगाबाद मोहल्ले का इतिहास
औरंगाबाद मोहल्ले की स्थापना मुगल शासक औरंगजेब के शासनकाल में हुई थी। इतिहास के पन्नों में औरंगजेब का नाम विवादों से भरा रहा है। खासकर काशी में, जहां उन्हें कई प्राचीन मंदिरों और धर्मस्थलों को तोड़ने का जिम्मेदार माना जाता है। हिंदू संगठनों का तर्क है कि औरंगजेब का शासनकाल धार्मिक असहिष्णुता और सांस्कृतिक विनाश का पर्याय था। ऐसे में उनके नाम पर किसी मोहल्ले का नामकरण न केवल अपमानजनक है, बल्कि यह उस दौर की याद भी दिलाता है, जिसे वे भुलाना चाहते हैं।
मांग के पीछे की भावना
विश्व वैदिक सनातन न्यास के अध्यक्ष संतोष सिंह ने इस मुद्दे को जोरदार तरीके से उठाया है। उनका कहना है, “गुलामी के प्रतीक चिन्हों और नामों को क्यों ढोया जाए? हमारा देश अब आजाद है और हमें अपनी सांस्कृतिक पहचान को पुनर्जनन देना चाहिए।” उनकी यह बात उन लोगों के दिलों को छूती है, जो मानते हैं कि औपनिवेशिक और मुगलकालीन नामों को बदलकर भारत अपनी खोई हुई गरिमा को वापस पा सकता है। इस मांग के तहत सुझाव दिया गया है कि औरंगाबाद का नाम किसी हिंदू धर्मस्थल या संत के नाम पर रखा जाए, जो काशी की सनातन परंपरा को प्रतिबिंबित करे।
सियासत का रंग
हालांकि, यह मांग केवल भावनाओं तक सीमित नहीं है। इसमें सियासत का रंग भी साफ दिखाई देता है। वाराणसी, जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र है, हमेशा से ही सांस्कृतिक और धार्मिक मुद्दों को लेकर संवेदनशील रहा है। नाम बदलने की मांग को कुछ लोग राजनीतिक लाभ से जोड़कर भी देख रहे हैं। पिछले कुछ वर्षों में देश भर में कई शहरों और सड़कों के नाम बदले गए हैं – इलाहाबाद से प्रयागराज, फैजाबाद से अयोध्या तक। ऐसे में औरंगाबाद का नाम बदलना भी उसी कड़ी का हिस्सा माना जा सकता है।
स्थानीय लोगों की राय
इस मुद्दे पर स्थानीय लोगों के बीच भी मतभेद देखने को मिलते हैं। कुछ का (खास तौर पर अल्पसंख्यक समुदाय) मानना है कि नाम बदलने से इतिहास मिटाया नहीं जा सकता और यह केवल अनावश्यक विवाद को जन्म देगा। वहीं, दूसरी ओर कई लोग इसे सांस्कृतिक गौरव की बहाली के रूप में देखते हैं। एक स्थानीय निवासी ने कहा, “औरंगजेब ने हमारे मंदिर तोड़े, फिर उनके नाम पर मोहल्ला क्यों?” यह सवाल उस भावना को दर्शाता है, जो इस मांग को हवा दे रही है।
आगे क्या?
विश्व वैदिक सनातन न्यास का पत्र मेयर के पास पहुंच चुका है, लेकिन इस पर कोई आधिकारिक फैसला अभी तक नहीं लिया गया है। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या प्रशासन इस मांग को स्वीकार करता है या इसे एक और सियासी मुद्दे के रूप में छोड़ देता है। अगर यह मांग पूरी होती है, तो यह वाराणसी के इतिहास में एक और अध्याय जोड़ देगा।
औरंगाबाद मोहल्ले का नाम बदलने की मांग: इतिहास, पहचान और सांस्कृतिक गौरव का सवाल
औरंगाबाद मोहल्ले का नाम बदलने की मांग सिर्फ एक नाम से कहीं ज्यादा है। यह इतिहास, पहचान और सांस्कृतिक गौरव का सवाल है। एक तरफ जहां यह मांग काशी की सनातन परंपरा को मजबूत करने की कोशिश है, वहीं दूसरी ओर यह सवाल भी उठता है कि क्या नाम बदलने से अतीत के दाग धुल जाएंगे? यह बहस अभी जारी है, और इसका जवाब समय ही देगा। लेकिन इतना तय है कि वाराणसी में औरंगजेब के नाम पर सियासत अभी थमने वाली नहीं है।

Advertisement

spot_img

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

2,300FansLike
9,694FollowersFollow
19,500SubscribersSubscribe

Advertisement Section

- Advertisement -spot_imgspot_imgspot_img

Latest Articles

Translate »