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Tuesday, June 24, 2025

वाराणसी की सियासी आग: अखिलेश-अंबेडकर पोस्टर विवाद ने बढ़ाई सपा-भाजपा की तल्खी

वाराणसी, 30 अप्रैल 2025, बुधवार। वाराणसी की सड़कों पर सियासी पारा चढ़ा हुआ है। समाजवादी पार्टी (सपा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव और संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर की तस्वीर को जोड़कर बनाए गए एक पोस्टर ने उत्तर प्रदेश की राजनीति में नया बवंडर खड़ा कर दिया है। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने इस पोस्टर को ‘अंबेडकर का अपमान’ करार देते हुए वाराणसी में जोरदार विरोध प्रदर्शन किया। ‘अंबेडकर का अपमान नहीं सहेंगे’ के नारे गूंजे, तो सपा और भाजपा के बीच तल्खी एक बार फिर सड़कों पर उतर आई।

भाजपा का हंगामा, सपा पर हमला

वाराणसी के अंबेडकर चौराहे पर भाजपा कार्यकर्ताओं ने महानगर अध्यक्ष प्रदीप अग्रहरि के नेतृत्व में धरना दिया। कार्यकर्ताओं के हाथों में तख्तियां थीं, जिन पर लिखा था- “दलित विरोधी जिसकी पहचान, समाजवादी पार्टी उसका नाम। जिसने दिया देश को संविधान, सपा कर रही उसका अपमान।” ‘अखिलेश यादव मुर्दाबाद’ के नारों के बीच शहर के पार्षद, मंडल-बूथ अध्यक्ष और संगठन के पदाधिकारी एकजुट हुए। प्रदीप अग्रहरि, मधुकर चित्रांश, साधना वेदांती, डॉ. रचना अग्रवाल जैसे नेताओं ने प्रदर्शन को धार दी।

भाजपा का आरोप है कि सपा ने अखिलेश और अंबेडकर के चेहरे को जोड़कर दलित समाज की भावनाओं को ठेस पहुंचाई है। यह विवाद तब और गहरा गया, जब बसपा सुप्रीमो मायावती ने भी इस पोस्टर पर नाराजगी जताई। दलित समाज में सपा के खिलाफ गुस्सा भड़क उठा, और भाजपा को सपा को घेरने का सुनहरा मौका मिल गया।

सपा का पलटवार, पहले भी हुआ था प्रदर्शन

यह सियासी ड्रामा नया नहीं है। एक दिन पहले ही सपा ने वाराणसी के कलेक्ट्रेट परिसर में योगी सरकार के खिलाफ हंगामा मचाया था। सपा सांसद राम जी लाल सुमन पर आगरा में हुए हमले को मुद्दा बनाकर सपा कार्यकर्ताओं ने योगी-मोदी विरोधी नारे लगाए और राष्ट्रपति को संबोधित एक पत्र मजिस्ट्रेट को सौंपा, जिसमें यूपी सरकार को बर्खास्त करने की मांग की गई। सपा का यह प्रदर्शन भी कम चर्चा में नहीं रहा।

पुराना है सपा-भाजपा का टकराव

सपा और भाजपा के बीच तल्खी कोई नई बात नहीं। कुछ दिन पहले अखिलेश यादव के ‘गोबर से दुर्गंध’ वाले बयान पर भाजपा ने उन्हें मानसिक अस्पताल भेजने की सलाह तक दे डाली थी। भाजपा के मंत्री रविंद्र जायसवाल के इस तंज से सपा कार्यकर्ता भड़क उठे और विरोध प्रदर्शन किए। सपा ने भी जवाब में भाजपा को ‘दलित विरोधी’ करार देने की कोशिश की, लेकिन अंबेडकर-अखिलेश पोस्टर ने सपा को बैकफुट पर ला दिया।

करणी सेना ने और बढ़ाया विवाद

इस बीच, करणी सेना ने भी सपा के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। सपा सांसद राम जी लाल सुमन के राणा सांगा पर दिए विवादित बयान ने करणी सेना को सड़कों पर उतार दिया। वाराणसी में सपा सांसद की प्रतीकात्मक शव यात्रा निकाली गई। सपा नेता हरीश मिश्र ने इस विवाद में कूदकर करणी सेना के कार्यकर्ताओं से मारपीट की, जिसके बाद उन्हें जेल की हवा खानी पड़ी। सपा ने करणी सेना को ‘भाजपा की बी-टीम’ करार दिया, तो करणी सेना ने सपा पर पलटवार तेज कर दिया।

पोस्टर ने सपा को फंसाया

सपा की मुश्किलें तब और बढ़ गईं, जब उनके मुख्यालय पर लगा वह पोस्टर सामने आया, जिसमें अखिलेश और अंबेडकर का आधा-आधा चेहरा जोड़कर एक चेहरा बनाया गया था। सपा ने इसे अखिलेश को ‘अंबेडकर का चेहरा’ दिखाने की कोशिश माना, लेकिन यह दांव उल्टा पड़ गया। दलित समाज ने इसे अपमान के तौर पर लिया। मायावती ने भी इस पर सख्त आपत्ति जताई। सपा की पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) रणनीति को मजबूत करने की कोशिश में यह पोस्टर भारी पड़ गया।

आगे क्या?

वाराणसी की सड़कों पर सपा और भाजपा का यह सियासी संग्राम थमने का नाम नहीं ले रहा। अखिलेश यादव की रणनीति जहां पीडीए को एकजुट करने पर टिकी है, वहीं भाजपा हर मौके को भुनाकर सपा को दलित विरोधी साबित करने में जुटी है। करणी सेना जैसे संगठनों की एंट्री ने इस जंग को और रोचक बना दिया है। आने वाले दिन उत्तर प्रदेश की सियासत के लिए और बड़े ट्विस्ट ला सकते हैं।

यह सियासी ड्रामा न केवल वाराणसी, बल्कि पूरे प्रदेश की राजनीति में हलचल मचाए हुए है। सवाल यह है कि क्या सपा इस विवाद से उबर पाएगी, या भाजपा इसे और भुनाएगी? समय बताएगा।

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