लखनऊ, 2 जून 2025, सोमवार: उत्तर प्रदेश की मऊ सदर विधानसभा सीट पर सियासी तूफान मचा हुआ है! अब्बास अंसारी की सदस्यता रद्द होते ही ये सीट खाली हो गई, और अब उपचुनाव का बिगुल बजने को तैयार है। मगर असली रण मचा है NDA के भीतर—क्या इस सीट पर भगवा लहराएगा या सुभासपा का परचम? दोनों खेमे आँखें तरेर रहे हैं, लेकिन आखिरी फैसला दिल्ली की चौखट पर टिका है।
राजभर की हुंकार: “मऊ मेरा गढ़, मेरा हक!”
सुभासपा सुप्रीमो ओमप्रकाश राजभर ने ताल ठोक दी है। उनका कहना है, “मऊ सीट मेरे विधायक अब्बास अंसारी की थी, तो उपचुनाव में प्रत्याशी भी हमारा होगा!” राजभर का दावा है कि गठबंधन में हिस्सेदारी निभाई जाती है, मगर मऊ पर उनका दावा पक्का है। उनकी आवाज़ में जोश है, मगर क्या ये जोश जनता के दिलों में भी उतरेगा?
BJP का दांव: “लोकसभा में मौका दिया, अब हमारी बारी!”
भाजपा का खेमा भी पीछे नहीं हट रहा। उनका तर्क है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में सुभासपा को मऊ की सीट दी गई थी। ओपी राजभर के बेटे अरविंद राजभर को BJP के कमल पर टिकट मिला, मगर सपा के राजीव राय ने उन्हें धूल चटा दी। अब भाजपा कह रही है, “गठबंधन में हिसाब बराबर होना चाहिए। मऊ अब हमारा!” क्या BJP इस बार मऊ को ‘माफिया-मुक्त’ बनाने के अपने मिशन को हकीकत में बदलेगी?
राजभर का गढ़ ढहा या अभी बाकी है जादू?
मऊ और गाजीपुर कभी सुभासपा का अभेद्य किला माने जाते थे, लेकिन 2024 की हार ने राजभर की पकड़ पर सवाल उठा दिए। इससे पहले घोसी उपचुनाव में भी सुभासपा का समर्थन BJP को जीत नहीं दिला पाया। क्या राजभर का जनाधार सचमुच कमजोर पड़ रहा है, या ये सिर्फ एक सियासी तूफान का झोंका है?
अब्बास अंसारी का पलटवार: “कोर्ट में दिखाऊंगा दम!”
हेट स्पीच मामले में 2 साल की सजा पाने वाले अब्बास अंसारी ने हार नहीं मानी। उन्होंने ऐलान किया है कि वह हाईकोर्ट में लड़ाई लड़ेंगे, जैसे उनके ताऊ अफजाल अंसारी को सुप्रीम कोर्ट से राहत मिली थी। मगर यूपी सरकार ने तेजी दिखाते हुए उनकी सदस्यता रद्द कर सीट को खाली घोषित कर दिया। क्या अब्बास को कोर्ट से राहत मिलेगी, या मऊ की सियासत में उनका चैप्टर खत्म?
हेट स्पीच का हंगामा: क्या था वो बयान?
मार्च 2022 में एक चुनावी रैली में अब्बास ने अधिकारियों को धमकाते हुए कहा था, “6 महीने तक कोई तबादला नहीं, सबको हिसाब देना पड़ेगा!” कोर्ट ने इसे मतदाताओं को डराने और चुनाव प्रभावित करने वाला बयान माना और सजा सुना दी। ये बयान अब मऊ की सियासत में आग की तरह फैल रहा है।
अंसारी vs अशोक सिंह: मऊ का पुराना रण!
मऊ की राजनीति में अंसारी परिवार और BJP के अशोक सिंह के बीच सालों से तलवारें खिंचती रही हैं। इस बार अशोक सिंह BJP के संभावित दावेदार हैं, और कार्यकर्ताओं में उनके लिए जबरदस्त उत्साह है। BJP इसे ‘माफिया-मुक्त मऊ’ का सुनहरा मौका मान रही है। क्या अशोक सिंह मऊ के सियासी सम्राट बनेंगे?
सरकार की चाल: तेजी का राज़ क्या?
सियासी गलियारों में चर्चा है कि सरकार ने अब्बास को सजा पर स्टे लेने का मौका नहीं दिया। शनिवार को सजा मिली, और रविवार को ही सदस्यता रद्द कर चुनाव आयोग को सूचना भेज दी गई। क्या ये सरकार की रणनीति थी कि मऊ की सीट जल्दी खाली हो और उपचुनाव का रास्ता साफ हो?
अब आगे क्या? मऊ का ताज किसके सिर?
चुनाव आयोग कभी भी मऊ उपचुनाव की तारीखों का ऐलान कर सकता है। अगर अब्बास को हाईकोर्ट से स्टे मिला, तो खेल पलट सकता है। मगर सवाल वही है—क्या BJP अपने दम पर मैदान मारेगी, या सुभासपा को मौका देगी? और क्या अंसारी परिवार फिर से सियासी शह दे पाएगा?
मऊ का रण: सिर्फ सीट नहीं, पूर्वांचल का भविष्य!
मऊ का ये उपचुनाव सिर्फ एक सीट की जंग नहीं, बल्कि पूरे पूर्वांचल की सियासत का भविष्य तय करने वाला महासमर है। हर नजर दिल्ली पर टिकी है, हर दिल में सवाल—मऊ का अगला सिकंदर कौन? इस रणभूमि में कौन बनेगा मऊ का नया राजा, ये तो वक्त और वोट बताएंगे!