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Friday, August 1, 2025

उत्तर प्रदेश में कांवड़ यात्रा पर सियासी संग्राम: अखिलेश बनाम केशव मौर्य

लखनऊ, 8 जुलाई 2025: उत्तर प्रदेश में कांवड़ यात्रा की तैयारियों के बीच सियासी पारा चढ़ गया है। हर साल भगवान शिव के भक्तों की इस पवित्र यात्रा को लेकर उत्साह और श्रद्धा का माहौल होता है, लेकिन इस बार श्रद्धा से ज्यादा सियासत सुर्खियों में है। समाजवादी पार्टी (सपा) के मुखिया अखिलेश यादव और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के दिग्गज नेता व उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के बीच तीखी बयानबाजी ने यूपी की राजनीति में हलचल मचा दी है। कांवड़ यात्रा के लिए कॉरिडोर बनाने को लेकर शुरू हुआ यह विवाद अब धर्म, सुशासन और सत्ता की लड़ाई का रूप ले चुका है।

अखिलेश का हमला: “भाजपा ने कांवड़ियों को धोखा दिया”

अखिलेश यादव ने योगी सरकार पर कांवड़ यात्रा के लिए समुचित व्यवस्था न करने का आरोप लगाते हुए तीखा हमला बोला। उन्होंने कहा कि अगर उनकी सरकार सत्ता में आती है, तो कांवड़ियों के लिए एक भव्य कॉरिडोर बनाया जाएगा, जिसमें यात्रियों को बेहतर रास्ते, भोजन, विश्राम स्थल और अन्य सभी सुविधाएं मिलेंगी। अखिलेश ने योगी सरकार पर निशाना साधते हुए कहा, “भाजपा हर साल कांवड़ियों के नाम पर सिर्फ दिखावा करती है। 11 साल की केंद्र सरकार और 9 साल की यूपी सरकार, कुल 20 साल में एक कॉरिडोर तक नहीं बना पाए।”

उन्होंने भाजपा पर समाज में नफरत फैलाने का भी आरोप लगाया। अखिलेश ने कहा, “भाजपा हर साल दुकानों की चेकिंग के नाम पर कांवड़ियों को परेशान करती है। यह जानबूझकर नफरत का माहौल बनाती है।” उन्होंने सनातन धर्म की बात करते हुए कहा, “सच्चा रास्ता ही धर्म का रास्ता है। भेदभाव और नफरत फैलाने वाले सनातनी नहीं हो सकते। कपड़े पहनने से कोई योगी नहीं बन जाता।”

केशव मौर्य का पलटवार: “सपा की नौटंकी अब नहीं चलेगी”

अखिलेश के बयान पर उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने करारा जवाब दिया। उन्होंने सपा पर हिंदू विरोधी नीतियों का आरोप लगाते हुए कहा, “जब सपा की सत्ता थी, तब रामभक्तों पर गोलियां चलाई गईं, शिवभक्तों पर लाठियां बरसाई गईं। कांवड़ियों को भजन तक गाने की इजाजत नहीं थी। नवरात्रि और दीपावली में अंधेरा किया गया। बाबा साहब अंबेडकर का नाम मेडिकल कॉलेज से हटाया गया, कब्रिस्तानों की बाउंड्री बनाई गई, लेकिन हिंदुओं के अंत्येष्टि स्थलों का ध्यान नहीं रखा।”

केशव मौर्य ने अखिलेश के कॉरिडोर बनाने के वादे को “नौटंकी” करार देते हुए कहा, “अब धर्मनिष्ठा का दिखावा करने से काम नहीं चलेगा। सपा और उनके INDI गठबंधन के लिए 2047 तक सत्ता के दरवाजे बंद हैं।” उन्होंने अखिलेश पर तुष्टिकरण की राजनीति करने का भी आरोप लगाया और कहा कि सपा ने श्रीराम जन्मभूमि मंदिर का विरोध किया और अब मथुरा-वृंदावन धाम के निर्माण का भी विरोध कर रही है।

सियासत का असली मकसद क्या?

कांवड़ यात्रा जैसे धार्मिक आयोजन पर छिड़ी इस सियासी जंग के पीछे 2027 के विधानसभा चुनाव की तैयारियां साफ दिख रही हैं। अखिलेश यादव अपनी PDA (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) रणनीति को मजबूत करने के साथ-साथ हिंदू मतदाताओं को भी साधने की कोशिश कर रहे हैं। वहीं, भाजपा कांवड़ यात्रा और सनातन धर्म के मुद्दे को उठाकर अपने कोर वोट बैंक को एकजुट रखना चाहती है। दोनों ही पक्ष एक-दूसरे पर धार्मिक भावनाओं का दुरुपयोग करने का आरोप लगा रहे हैं, लेकिन असल में यह वोट बैंक की सियासत का हिस्सा है।

कांवड़ यात्रा का महत्व

कांवड़ यात्रा उत्तर भारत में विशेषकर उत्तर प्रदेश में श्रावण मास का एक प्रमुख धार्मिक आयोजन है। लाखों शिवभक्त गंगा नदी से जल लेकर अपने स्थानीय शिव मंदिरों में जलाभिषेक करते हैं। यह यात्रा श्रद्धा, भक्ति और सामाजिक एकता का प्रतीक है। लेकिन पिछले कुछ सालों में यह सियासी विवादों का केंद्र भी बनती जा रही है। कांवड़ियों की सुविधा और सुरक्षा को लेकर हर साल सवाल उठते हैं, और इस बार अखिलेश और केशव मौर्य के बीच की तीखी बयानबाजी ने इस मुद्दे को और गरमा दिया है।

आगे क्या?

जैसे-जैसे कांवड़ यात्रा नजदीक आ रही है, सियासी बयानबाजी और तेज होने की संभावना है। सवाल यह है कि क्या यह विवाद कांवड़ियों की सुविधा और सम्मान को बढ़ाने की दिशा में कोई ठोस कदम उठाएगा, या सिर्फ वोट की राजनीति तक सीमित रह जाएगा? फिलहाल, यूपी की सियासत में यह जंग धार्मिक श्रद्धा और सत्ता की महत्वाकांक्षा के बीच एक रोचक मोड़ ले चुकी है।

आप क्या सोचते हैं? क्या कांवड़ यात्रा जैसे पवित्र आयोजन को राजनीति से दूर रखना चाहिए, या यह सियासत का हिस्सा बनना ही था?

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