N/A
Total Visitor
32.7 C
Delhi
Friday, August 1, 2025

पीओजेके और पीओजीबी: उपेक्षा का युद्धक्षेत्र, जम्मू-कश्मीर की प्रगति के विपरीत

मुज़फ़्फ़राबाद/श्रीनगर, 25 जुलाई 2025: नियंत्रण रेखा (एलओसी) के दोनों ओर की तस्वीरें दो अलग-अलग दुनिया की कहानी बयां करती हैं। एक ओर जम्मू-कश्मीर भारत के विकास और समृद्धि के पथ पर अग्रसर है, तो दूसरी ओर पाकिस्तान अधिकृत जम्मू-कश्मीर (पीओजेके) और गिलगित-बाल्टिस्तान (पीओजीबी) उपेक्षा, शोषण और दमन के दलदल में फँसे हुए हैं।

बुनियादी सुविधाओं का अभाव

पीओजेके और पीओजीबी में स्वच्छ पेयजल और बिजली जैसी बुनियादी ज़रूरतें आज भी विलासिता का रूप ले चुकी हैं। 2025 की एक ताज़ा रिपोर्ट के मुताबिक, 40% आबादी को सुरक्षित पेयजल नहीं मिलता, जबकि गिलगित-बाल्टिस्तान में 18 घंटे तक की बिजली कटौती आम बात है। स्वास्थ्य सेवाएँ जर्जर, बुनियादी ढाँचा चरमराया हुआ और बेरोज़गारी सर्वव्यापी है। मुज़फ़्फ़राबाद और स्कार्दू जैसे कस्बों में सड़कें टूटी पड़ी हैं, और स्थानीय पर्यटन स्थलों को नष्ट कर प्राकृतिक संसाधनों जैसे माणिक और संगमरमर का दोहन किया जा रहा है, जिसमें स्थानीय समुदाय को कोई लाभ नहीं मिल रहा।

सीपीईसी का खोखला वादा

चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (सीपीईसी) के तहत बड़े-बड़े विकास के दावों के बावजूद, डायमर-भाषा बाँध जैसी परियोजनाओं से स्थानीय लोग विस्थापित हो रहे हैं। अपर्याप्त मुआवज़े के खिलाफ़ उनका विरोध अनसुना रहता है। इन परियोजनाओं का लाभ सेना और बाहरी हितधारकों तक सीमित रहा है, जबकि स्थानीय लोग बदहाली में जी रहे हैं।

राजनीतिक दमन और सांस्कृतिक संकट

पीओजेके में 2018 के अंतरिम संविधान संशोधन ने पाकिस्तान की आलोचना को अपराध घोषित कर नागरिक समाज को कुचल दिया है। जुलाई 2025 में कम वेतन और खराब कार्यस्थितियों के विरोध में हड़ताल करने वाले पुलिस और राजस्व कर्मचारियों को अनुशासनात्मक कार्रवाई की धमकी दी गई। संवैधानिक दर्जे के अभाव में निवासियों को न तो प्रतिनिधित्व मिलता है, न ही अधिकार। सांस्कृतिक पहचान भी खतरे में है, जहाँ बाल्टी और शिना जैसी स्थानीय भाषाएँ उर्दू के दबाव में हाशिए पर हैं।

जम्मू-कश्मीर की प्रगति

इसके विपरीत, जम्मू-कश्मीर में भारत सरकार ने शिक्षा, खेल, स्टार्टअप और आपदा-रोधी बुनियादी ढाँचे में निवेश कर क्षेत्र को प्रगति के पथ पर ले जाया है। कारगिल, जो कभी युद्ध का मैदान था, अब नवीनीकरण और विकास का प्रतीक है। यहाँ के युवा वैश्विक मंच पर अपनी पहचान बना रहे हैं।

मानव विकास बनाम सैन्यीकरण

पीओजेके और पीओजीबी में अवसरों की कमी के कारण युवा कट्टरपंथ और प्रचार का शिकार हो रहे हैं। बाल्टिस्तान विश्वविद्यालय जैसे संस्थानों में बुनियादी ढाँचे का अभाव है, और हाल के वर्षों में इन क्षेत्रों से कोई उल्लेखनीय राष्ट्रीय उपलब्धि सामने नहीं आई। दूसरी ओर, जम्मू-कश्मीर में शिक्षा और रोज़गार के अवसरों ने युवाओं को सशक्त बनाया है।

2005 के भूकंप में पीओजेके में पाकिस्तानी सेना ने नागरिकों की अनदेखी कर अपने जवानों को प्राथमिकता दी, जिसके परिणामस्वरूप कई लोग मलबे में दबकर मर गए। वहीं, भारत ने जम्मू-कश्मीर में आपदा प्रबंधन और पुनर्वास पर लगातार ध्यान दिया है।

दो मॉडल, दो दिशाएँ

जम्मू-कश्मीर जहाँ अपने लोगों को सशक्त बनाने और शहीदों के बलिदान को सम्मान देने की दिशा में बढ़ रहा है, वहीं पीओजेके और पीओजीबी को पाकिस्तान केवल सैन्य और भूराजनीतिक हितों के लिए इस्तेमाल कर रहा है। स्कार्दू की घाटियाँ निराशा और भूले हुए वादों से गूंजती हैं, जबकि कारगिल की चोटियाँ प्रगति की गवाही देती हैं।

नियंत्रण रेखा का अंतर

कारगिल युद्ध की जीत केवल ज़मीन पर नहीं, बल्कि लोगों के दिलों और दिमागों में भी थी। यह दो मॉडलों की कहानी है – एक जो अपने लोगों को सशक्त बनाता है, और दूसरा जो उनका शोषण करता है। नियंत्रण रेखा सिर्फ़ ज़मीन को ही नहीं, बल्कि सपनों, आकांक्षाओं और भविष्य को भी बाँटती है।

Advertisement

spot_img

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

2,300FansLike
9,694FollowersFollow
19,500SubscribersSubscribe

Advertisement Section

- Advertisement -spot_imgspot_imgspot_img

Latest Articles

Translate »