केंद्र सरकार द्वारा तीनों कृषि कानूनों को वापस लिए जाने के बाद ‘किसान आंदोलन’ को लेकर कई तरह के सवाल उठने लगे हैं। जैसे कि अब यह आंदोलन आगे बढ़ेगा या यहीं पर खत्म हो जाएगा। अगर आगे बढ़ेगा तो उसकी रणनीति क्या होगी। रास्ता क्या होगा, यानी राजमार्ग बंद होंगे या सामान्य जन को परेशान करने वाला कोई दूसरा सख्त कदम उठेगा।
पंजाब के किसान संगठन, आंदोलन को यहीं विराम देना चाहते हैं। बहुत से किसान नेता सड़क से ‘विधानसभा’ में जाने के इच्छुक बताए जा रहे हैं। ‘संयुक्त किसान मोर्चा’ के दो वरिष्ठ पदाधिकारियों से हुई बातचीत के बाद जो कुछ निकलकर सामने आया है, उससे दो बातें स्पष्ट हो गई हैं।
एक, किसान आंदोलन में दोबारा से राकेश टिकैत के आंसू गिरें, अभी वैसी नौबत नहीं आई है। दूसरा, सरकार पर दबाव है तो इधर किसानों के बीच ‘संघर्ष’ की स्थिति बनी है। इन सबके बीच चार दिसंबर को संयुक्त किसान मोर्चा ‘एसकेएम’ अंतिम फैसला लेगा। ये भी तय है कि अंतिम फैसले में जो भी नई रणनीति या फोरम बदलने जैसा कुछ देखने को मिलेगा, उसमें सामान्य लोगों की नाराजगी का पूरा ध्यान रखा जाएगा।
‘संयुक्त किसान मोर्चा’ के वरिष्ठ सदस्य एवं जय किसान आंदोलन के राष्ट्रीय अध्यक्ष अविक साहा कहते हैं, आंदोलन पूरी तरह लोकतांत्रिक रहा है। सभी को अपनी बात कहने का अधिकार है। संगठन के पदाधिकारी बोल रहे हैं। अगर कोई आंदोलन आगे ले जाना चाहता है तो वह अपने सुझाव दे रहा है। जिसे राजनीति में शामिल होना है, वह भी अपनी बात रख रहा है। सरकार, जो शुरू से ही आंदोलन में फूट डालकर इसे खत्म कराने का प्रयास करती आई है, वह आज भी अपनी उसी शरारत पर कायम है।
कुछ लोग सरकार के बहकावे में आकर गलत रास्ते पर चल पड़ते हैं। वे नहीं जानते हैं कि सरकार तो प्रयोग कर रही है। मतलब, आंदोलन को तोड़ने के लिए जितना भी छलावा किया जा सकता है, सरकार उतना कर रही है।
पिछले साल लाल किला की घटना के बाद जब आंदोलन सिमटने की बात हो रही थी, तो राकेश टिकैत ‘रो’ पड़े थे। नतीजा, किसान दोबारा से जुड़ गए। इस बार वैसी नौबत नहीं आई है। सब एक साथ लड़ने आए थे और लड़ रहे हैं।
केंद्र को सच की रोशनी में किसानों की बात माननी होगी। इतना तय है कि चार दिसंबर को एसकेएम की बैठक में जो फैसला होगा, वह सामूहिक होगा। उसमें यह नहीं देखा जाएगा कि पंजाब के किसान संगठन क्या चाहते हैं और यूपी के किसान नेताओं की क्या राय है।
ऑल इंडिया किसान खेत मजदूर संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष सत्यवान का कहना है, किसान संगठनों के कुछ नेता, कभीकभार चर्चा के दौरान बहक जाते हैं। ऐसा भी नहीं है कि वे आंदोलन से दूर हैं। सरकार, आंदोलन को तोड़ने के लिए तैयार बैठी है। पंजाब के कई किसान नेता राजनीति में हाथ आजमाने का समर्थन कर रहे हैं। टिकैत या कोई दूसरा नेता, अभी एसकेएम से बाहर नहीं गए हैं। सरकार अपने लंबे-चौड़े प्रचार तंत्र से झूठ फैला रही है। अभी तो किसानों की बहुत सी मांगें बाकी हैं।
एमएसपी, किसानों पर दर्ज केस वापस कराना और शहीदों के परिजनों को मदद, ऐसी कई मांगों पर संघर्ष जारी रहेगा। कोई संगठन, इधर-उधर हो सकता है, लेकिन एसकेएम, मैदान में है और आगे भी होगा। ये बात सही है कि किसान संगठनों के बीच एक ‘संघर्ष’ की स्थिति बनी हुई है।
बतौर सत्यवान, कोई भी आंदोलन सदैव एक जैसा नहीं रहता। उसके चरणों में बदलाव आता रहता है। तीनों कृषि कानून रद्द होने के बाद अब आंदोलन का एक चरण पूरा हो गया है। एसकेएम, इसी आधार पर आगे की राह तय करेगा।
लंबे समय से लोग इस आंदोलन से जुड़े हैं। सामान्य लोगों ने भी आंदोलन के चलते दिक्कतें उठाई हैं। अगर पहले की तरह आंदोलन चलता रहा तो लोगों से दूरी बढ़ जाएगाी और उनकी नाराजगी भी बढ़ सकती है। इन सब बातों को ध्यान में रखकर अंतिम फैसला होगा। सरकार भी दबाव में है, तो दूसरी ओर किसान संगठन भी दबाव में हैं। संयुक्त किसान मोर्चो की बैठक में इस तरह का फैसला लिया जाएगा, जिससे किसान आंदोलन और ज्यादा मजबूत होगा, भले ही उसका स्वरूप बदल सकता है।