हसमुख उवाच
इन दिनों इतनी शान्ति पूर्ण शादियां होने लगी है कि शान्ति प्रिय लोग शादियों में जाने से कतराने लगे हैं, पिस्तौल से हर्ष फायरिंग, गनीमत है कि अभी शादियों में तोपो को शामिल नहीं किया गया है। शराब पी कर बेहूदे डान्स, वो भी रेम्प पर उटपटांग गानो के साथ, ऐसा उत्पात कदाचित आदिवासियों की शादियों में भी नहीं होता होगा! गृहस्थ में प्रवेश की शुुरुआत जब इतने हंगामे, नशे तथा फायरिंग से होती है तब वर और वधू के भविष्य का अनुमान सहज ही हो जाता है कि दोनो एक दूसरे पर कितनी शब्दों की फायरिंग करेंगे और इनके बच्चे कितने होनहार और क्रान्ति कारी बनेंगे ,आगाज को देखकर अंजाम का पता चल ही जाता है!
आज की शादियों में शादी से पहले जेब टटोली जाती है, मतलब कि ‘इस्टीमेट ‘पूछा जाता है, फिर अनुमान लगाने में सुविधा हो जाती है कि कन्या वाला कितने करोड़ की गाड़ी दे सकेगा, इस काम में लड़का लड़की के बीच एक बिचौलिए को रखा जाने लगा है जो सबकुछ तय कर लेता है, लड़के के सारे अवगुणों को ढंक लेने में ऐसे बिचौलिए बड़े पारंगत होते हैं, शादी की बिचौलिया गिरि को अब ‘मैरिज ब्यूरो भी निभाने लगे हैं!
देखा जाय तो इस प्रगतिशील जमाने में शादी ब्याहों ने भी अच्छे खासे धंधे का रूप धारण कर लिया है, चाहे शादी से पहले और शादी के बाद कितनी ही शान्ति भंग हो या तलाक, मुकदमों का दौर चले! शादियों के मुहूर्त प्राय उनही दिनों निकलते हैं जब शहर के बैंकट हाल पूरी तैयारी में होते हैं, हलवाईयों और पंडितो की डिमांड बढ़ जाती है, दावत में खाने की वस्तुएं इतनी संख्या में बनती हैं कि भीड़ में कोई उन्हें गिन भी नहीं सकता खाना तो दूर की बात है। आजकल पहले लड़की वालों के रिशतेदार, मित्रमंडली खा लेती है, बाद में बरातियों को नसीब होता है। फिर खाने पीने का दौर, चारों तरफ शोर ही शोर ,बिखरी हुई जूठन, मानो दावत में भोजन की लूटपाट का अवशेष, अकाल-ग्रस्त क्षेत्र के मारे हुए लोगों की तरह खाने पर टूट पड़ने का दृश्य, धक्का मुक्की, रायते और सब्जियों का नये सूट पर गिरना, ये सब आजकल की शान्ति पूर्ण शादियों की लीला है,ऐसे विहंगम दृश्य बहुतों ने देखे ही होंगे!
बारात के आने पर समधी गण ऐसे मिलते देखे गए हैं जैसे राजा जनक और महाराज दशरथ गले मिल रहे हों, बाद में उनका व्यवहार परस्पर किसी प्रतिद्वंद्वी की तरह हो जाता है!
फिर नंबर आता है मुहूर्त के अनुसार फेरों का, फेरे आजकल तभी हुआ करते है जब भगवान सूर्य नारायण अनुपस्थित हों, पहले ‘बढ़ार’की परम्परा थी, बारात को कन्या पक्ष की ओर से रोका जाता था, परंतु आज शादियों में कन्या पक्ष यही सोचता है कि जितनी जल्दी हो बला टले, क्योंकि रात्रि के समय बरातियों के हुड़दंग से सभी के भीतर भय व्याप्त रहता है, वैसे भी जनमासे मे ठहरे बारातियो का मूल्य फेरों के बाद कुछ नहीं रहता है!
विवाह वास्तव में भारतीय संस्कृति के अनुसार एक धर्मानुष्ठान है, इसमे शालीनता है, सौहार्द है, परंतु आधुनिकता और अमीरी के स्वांग ने इस पवित्रम परम्परा को इतना दूषित कर दिया है कि परिवारों की नींवे हिलने लगी है, विवाह करके सुख शांति से रहने के बजाय ‘लिव इन’मे रहना गर्व माना जाने लगा है, ‘लिव इन’ में रहने वाले जीवन के सत्यानाश को ही प्रगतिशीलता और आधुनिकता मान लें तो यही कहा जाएगा कि इनकी बुद्धि तेल लेने गयी है!