हसमुख उवाच _
अपने देश में जुगाड़ के पथ को अपनाने वाले अनेक पथिक हैं, यही पथ उन्नति की कुंजी और सफलता का मूलमंत्र है, इसकी विशेषता इतनी है कि कोई वर्णन नहीं कर सकता, हर काम में, हर सफलता में कही न कही जुगाड़ महाराज अवश्य विराजमान रहते हैं, कही यह द्रशय रूप में रहते हैं तो कही अद्रशय रूप मे,कही साकार तो कही निराकार!
यह जुगाड़ का पथ ऐसा पथ है कि योग्य हो, अयोग्य हो सभी इस पर चल कर अपने ध्येय को प्राप्त कर सकते हैं। वैसे भी जुगाड़ में कोई योग्यता हो यह अनिवार्य नहीं, बस यह अवश्य लगना चाहिए कि बन्दे ने जुगाड़ पर पूरी श्रद्धा रखी है!
एक साहब थे जिनकी शादी नही होतीं थी, कयी जगह बात हुई मगर बात टूट गयी, वो साहब कही लड़की को पसंद नहीं आए तो कही लड़की के पिता को नहीं भाए, यदि लड़की या लड़की के पिता को पसंद आ गये तो उनके खिलाफ लड़की का भाई हो गया, उन साहब ने बहुत जतन किये अपनी शादी के लिये, परंतु सभी जतन निष्फल हुए, वो निराशा के सागर में डूब गए, उस समय उनकी अचानक मुलाकात एक करीबी मित्र से हुई, वह मित्रों जुगाड़ की कला के विशेषज्ञ थे, जुगाड़ विशेषज्ञ ने निराशा में डूबे उन साहब को अपना मैरिज ब्यूरो खोलने की सलाह दी,मैरिज ब्यूरो खुला, उसमे लड़के के लिए और लड़की के लिए अनेक प्रसताव आए और इस बहती गंगा में उन साहब का भी काम बन गया!
जुगाड़ की महिमा अपार है, इस जुगाड़ के महत्व का वर्णन करना भी कठिन है, देखा ही गया है कि हमारे नेता वोटों के जुगाड़ के लिए क्या क्या नही करते इस जुगाड़ के लिए जाति समीकरण ,मजहबी समीकरण, क्षेत्र वाद, भाषा वाद, प्रांत वाद अनेक विवाद खड़े करते है, दो पार्टियों या कयी पार्टियों का तालमेल भी जुगाड़ का ही एक पथ है ऐसे नेता जो जुगाड़ पथ के निष्ठावान पथिक हैं उनका लक्ष्य सत्ता को पाना है, सत्ता को प्राप्त कर लेना भी आज कल सत्ता के जुगाड़ का ही पर्यायवाची है!
कुछ चालाक लोग यदि जुगाड़ की कला में प्रवीण हैं तो वो कभी भूखे नहीं मर सकते, यदि उनके पास पैसे न हों तो भी वह अपने खाने का जुगाड़ किसी भी बारात में बिन बुलाए बाराती बन कर लेते हैं, ऐसा देखा गया है।
साहित्य के क्षेत्र में भी जो कथित साहित्यकार हैं वो अपने लिए
पुरस्कार का जुगाड़ कर लेते हैं, ‘डाक्टर ‘की उपाधियां अनेक कथित साहितकारों ने प्राप्त कर दिखाईं हैं, ऐसे साहित्य कारों को यह भी मालूम नहीं होता कि गजानन माधव मुक्ति बोध एक ही कवि का नाम है!
कविता के क्षेत्र में भी, विशेषकर कवि सम्मेलनों में तो जुगाड़ के कवियों की भरमार हो गई हैं, ऐसे कवि भले ही सिद्ध कवि न हों पाए हो परंतु उनका नाम प्रसिद्द कवियों में अवश्य है! सुंदर कवियत्रियों की तो कवि सम्मेलनों में खूब वल्ले वलले है, अपने गीत और गजलें देने वाले ऐसे कयी कवि, गीतकार ,और शायर बड़ी खुशी से इन कवियित्रियों अपनी रचना देने में गर्व महसूस करते है, ऐसे जुगाड़ों ने मौलिकता को हाशिए पर डाल दिया है, इससे अधिक जुगाड़ की महिमा क्या हो सकती है! जुगाड़ की ऐसी ही कवियित्रियों के लिए किसी ने लिखा है कि _
“ऐ शहन्शाए तरन्नुम तेरी धुन के सदके,लोग आवाज के झटकों से ही हिल जाते हैं, तू दुआ मांग सलामत रहे आवाज तेरी,
गीत की क्या है, ये मांगे से मिल जाते हैं “