नई दिल्ली, 4 जून 2025, बुधवार। बिहार की सियासत में इन दिनों एक नया रंग देखने को मिल रहा है, जहां भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सहयोगी दलों के नेताओं का पूरा परिवार सत्ता के शिखर पर चमक रहा है। परिवारवाद पर हमेशा तीखे तंज कसने वाली भाजपा की सहयोगी पार्टियों—लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) और हिंदुस्तान आवाम मोर्चा (हम)—के नेताओं चिराग पासवान और जीतन राम मांझी के परिवारों को सियासी उपहारों से नवाजा जा रहा है। यह नजारा बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले चर्चा का विषय बन गया है।
चिराग का परिवार: सब सेट, कोई नहीं छूटा
चिराग पासवान का परिवार सियासी मंच पर पूरी तरह स्थापित हो चुका है। चिराग खुद लोकसभा सांसद और केंद्रीय मंत्री हैं। उनके बहनोई अरुण भारती भी लोकसभा में सांसद बन चुके हैं। इतना ही नहीं, भाजपा ने चिराग के पिता स्वर्गीय रामविलास पासवान की पहली पत्नी के दामाद मृणाल पासवान को बिहार अनुसूचित जाति आयोग का अध्यक्ष नियुक्त कर दिया। अब सवाल यह है कि अगर चिराग विधानसभा चुनाव लड़ते हैं और जीतते हैं, तो उनकी लोकसभा सीट पर कौन काबिज होगा? क्या उनकी मां मैदान में उतरेंगी, या कोई और पासवान परिवार का सदस्य इस मौके को भुनाएगा?
मांझी का कुनबा: हर सदस्य को सियासी तोहफा
जीतन राम मांझी का परिवार भी सत्ता के इस खेल में पीछे नहीं है। मांझी खुद लोकसभा सांसद और केंद्रीय मंत्री हैं। उनके बेटे संतोष सुमन न केवल विधायक हैं, बल्कि बिहार सरकार में मंत्री भी हैं। मांझी की बहू दीपा मांझी विधायक हैं, और उनकी समधन भी उनकी पार्टी से विधानसभा में काबिज हैं। हाल ही में उनके दामाद देवेंद्र मांझी को बिहार अनुसूचित जाति आयोग का उपाध्यक्ष बनाया गया है। चर्चा है कि आगामी विधानसभा चुनाव में मांझी अपने दूसरे बेटे को भी सियासी मैदान में उतार सकते हैं।
भाजपा का दोहरा चेहरा?
परिवारवाद को लेकर हमेशा विपक्ष पर निशाना साधने वाली भाजपा अब अपने सहयोगियों के इस खेल पर क्या रुख अपनाएगी? मुलायम सिंह यादव, शरद पवार और करुणानिधि जैसे नेताओं के परिवारों पर परिवारवाद का आरोप लगाने वाली भाजपा अब अपने सहयोगियों के इस सियासी कुनबे पर चुप्पी क्यों साधे हुए है? बिहार में यह नया सियासी समीकरण न केवल विपक्ष के लिए चर्चा का विषय है, बल्कि खुद भाजपा के लिए भी सवाल खड़े कर रहा है।
मोदी का परिवारवाद पर रुख
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हमेशा परिवारवाद को लोकतंत्र के लिए खतरा बताया है। लेकिन अब जब उनके सहयोगी दल इस राह पर चल पड़े हैं, तो सवाल उठता है कि क्या वे इस मुद्दे पर पहले की तरह मुखर होंगे? और अगर होंगे, तो चिराग और मांझी जैसे नेताओं की ओर उनका नजरिया कैसा होगा? बिहार की जनता भी इस सियासी ड्रामे को बड़े गौर से देख रही है, क्योंकि यह न केवल सत्ता का खेल है, बल्कि सियासी सिद्धांतों की भी परीक्षा है।
बिहार में भाजपा की छत्रछाया में चिराग और मांझी के परिवारों का सियासी सितारा चमक रहा है। लेकिन यह चमक सवालों के घेरे में भी है। क्या यह परिवारवाद का नया चेहरा है, या गठबंधन की मजबूरी? विधानसभा चुनाव नजदीक हैं, और बिहार की जनता का फैसला इस सियासी नाटक के अगले अध्याय को तय करेगा।