हसमुख उवाच
सचमुच बच्चे हास्य के अवतार होते हैं, इसीलिए मन के सच्चे होते हैं। खुलकर वही हसंता है जो मन का साफ होता है। और बच्चे खुलकर हसंते भी है और हसांते भी हैँ, बिना किसी संवाद के या बिना किसी अभिनय के, अपनी सहजता से किसी को भी हसांने में बच्चे सफल होते हैं। केवल हसांना ही नहीं, वरन रोने में भी बच्चे दूसरे बच्चों को पूरा सहयोग देते है। बड़ों में भले ही यह विशेषता हो या न हो ,उदाहरण के लिए कोई बच्चा यदि रो रहा हो और तभी उस बच्चे के सामने दूसरा बच्चा भी रोने लगे तो पहले रोने वाला बच्चा चुप हो जाएगा और दूसरे बच्चे को रोने का पूरा अवसर देगा, जब कि देश की संसद में देखो तो कोई सांसद बोल रहा होता है तो विपक्षी उसे टोकता ही रहता है, अब यह विचारणीय है कि सांसद या विधायक अच्छे है या बच्चे अच्छे हैं!
गोदी के बच्चों में संतोष का धन पर्याप्त मात्रा में होता है। चाहें इन्हें नीला कच्छा पहना दो या पीला कच्छा, या लाल, हरा किसी भी रंग का कच्छा इनके लिए सब कच्छे अच्छे हैं, जब कि बड़े और समझदार लोग अपने ‘गेट अप ‘या ‘मेक ओवर ‘ के मामले में बड़े चूजी और सेन्सटिव देखे जाते हैं!
बच्चे अपनी सहजता और संतोष के गुण के कारण वी आइ पी की श्रेणी में आते हैं, किसी बस में या रेलगाड़ी में इनका शुल्क नहीं लगता, इन्हें पूरी आजादी है कि ये कहीं भी सू-सू कर दें, जब कि बड़ों के लिए बस रुकवानी पड़ती है। या रेल में टायलेट की व्यवस्था करनी पड़ती है। इसी लिए बच्चों को दुनिया के देशों की सरकारें देश की धरोहर समझती हैं हवाई जहाज में उड़ान के दौरान यदि कोई हवाई जहाज अमेरिका के ऊपर से होकर गुजरे और किसी महिला के उस समय बालक का जन्म हो जाये तो अमेरिकी सरकार ऐसे बच्चे के पालन पोषण, शिक्षा दीक्षा का दायित्व स्वयं लेती है। ये होता है बच्चो का रुतबा, जिसका सुपर पावर अमेरिका भी सम्मान करता है!
अपने अधिकारों के प्रति भी बच्चे पूर्ण सजग होते हैं। यदि किसी मांग पर अड़ गए तो पूरै क्रान्ति कारी बन जाते हैं, ऐसे बच्चों के पापा चाहें कितने आक्रामक थानेदार हों उनके सामने उन्हें घुटने टेकने ही पड़ते हैं और मुस्कराना भी पड़ता है। क्योंकि बच्चा कैसा भी हो हास्य की प्रतिमा और हास्य का अवतार होता है।
बड़े लोग अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर जाने क्या क्या उपद्रव करने लगते हैं जब कि बच्चे इस स्वतंत्रता का दुरुपयोग नही करते बल्कि समय आने पर इसका सदुपयोग करते है, जैसे _ एक बार किसी पत्रकार ने बच्चों का इंटरव्यू लेते हुए पूछा ‘बच्चों! क्या तुम्हें अपने माता पिता से कोई शिकायत है? इस सवाल के जवाब में बच्चे ने कहा ‘ हां,है ‘ पत्रकार ने पूछा ‘क्या शिकायत है? बच्चे ने कहा ‘हमारे घर में जब कोई भी आता है तो मम्मी पापा उन्हें नमकीन,समोसे मिठाई पोटेटो चिप्स न जाने क्या क्या पेश करते है और हमसे कहने लगते हैं कि ‘ अंदर जाओ,अंदर जाओ’ इसके बावजूद बच्चे मस्ती के पर्यायवाची है, इन्हें दुनिया के छल, कपट, षडयंत्र नहीं आते, न ही इनमें कोई ‘ईगो प्राब्लम ‘ होती है कोई जन्म दिन पार्टी हों, कोई त्योहार हो, या विवाह हो, बच्चे सभी में जितना एंजाय करते है उतना कोई नहीं कर पाता, ये बात खास है कि बच्चों से जो कहा जाता है वह नहीं करते, लेकिन जो बड़े करते है उसकी पूरी कापी करते है! अर्थात, किसी की कथनी को नही वरन करनी या आचरण को महत्व देते है।
‘ बच्चों की देखभाल कैसे करें?’ इस शीर्षक की किताब एक बच्चा पढ़ रहा था, उसके पिता ने पूछा ‘ बेटा! यह क्या पढ़ रहे हो? ‘बच्चे ने कहा यह किताब है जिसमे माता पिता को बताया जा रहा है कि बच्चों की देखभाल कैसे करें ‘
पिता ने कहा ‘लेकिन बेटा,यह किताब तो माता पिता के मतलब की है। तुम्हारा इससे क्या मतलब?
बच्चे ने कहा ‘इस किताब के जरिए मैं पता लगा रहा हूं कि आप मेरी देखभाल ठीक से कर रहे हैँ या नहीं!
यह सुन कर बच्चे के पिता को लग गया कि आजकल के बच्चे वाकयी समझ दार हैं! सच तो यह हैं कि हर आदमी के भीतर एक बच्चा होता है। इसी लिए बच्चे हर किसी को आकर्षित करते है, बच्चों को देखकर सभी को अपना बचपन याद आता है, इस विषय में किसी ने ठीक ही लिखा है कि -‘ ये दौलत भी ले लो,ये शोहरत भी ले लो, भले छीन लो मुझ से मेरी जवानी, मगर मुझको लौटा दो मेरा प्यारा बचपन, वो कागज की कशती वो बारिश का पानी ।