नई दिल्ली, 5 मई 2025, सोमवार। भारत की मिट्टी में पल रहे कुछ ऐसे चेहरे हैं, जो बाहर से तो देशभक्त दिखते हैं, मगर उनके इरादे और कर्म पाकिस्तान की जहरीली साजिशों को हवा देते हैं। ये वही लोग हैं, जो आतंकियों के लिए सहानुभूति बटोरते हैं, उनके कुकर्मों को जायज ठहराते हैं और देश के युवाओं के दिमाग में जहर घोलने का काम करते हैं।
पाकिस्तानी आतंकी सरगना हाफिज सईद का नाम तो याद होगा, जिसके दुलार और तारीफों के पुल बांधने वाले पत्रकारों में बरखा दत्त का नाम एक बार उछला था। लेकिन यह महज संयोग नहीं, बल्कि एक गहरी साजिश का हिस्सा है। बरखा अकेली नहीं, ऐसे कई नाम हैं, जो भारतीय केंचुल में सांप की तरह छिपे हैं और देश को भीतर से खोखला करने में जुटे हैं।
याद कीजिए, जब भारतीय सेना ने कश्मीर में सैकड़ों लोगों की हत्या और बलात्कार जैसे जघन्य अपराधों के दोषी आतंकी बुरहान वानी को मार गिराया था। तब बरखा दत्त उसके घर पहुंचकर देश को यह समझाने में जुट गई थीं कि बुरहान तो एक मासूम स्कूल मास्टर का बेटा था। उधर, राजदीप सरदेसाई स्टूडियो में छाती पीटकर बुरहान को ‘प्रतिभाशाली क्रिकेटर’ बताते हुए यह जताने की कोशिश कर रहे थे कि उसे हालात ने बंदूक थमने को मजबूर किया। क्या यह देशभक्ति है या आतंक को महिमामंडन?

अब वही कहानी फिर दोहराई जा रही है। ‘आजतक’ का ही एक डिजिटल मंच ‘लल्लनटॉप’ अब आतंकी आदिल का वकील बनकर मैदान में उतर आया है। यह मंच देश को बता रहा है कि आदिल तो होनहार और होशियार था, लेकिन चूंकि उसके गांव में मोबाइल टॉवर नहीं था, इसलिए वह बंदूक लेकर पाकिस्तान चला गया, आतंकी बना और 22 हिंदुओं का कत्ल कर डाला। क्या यह कहानी आपको तर्कसंगत लगती है? क्या भारत में हर वह शख्स, जिसके गांव में मोबाइल टॉवर नहीं, आतंकी बनने पाकिस्तान भागता है?
‘लल्लनटॉप’ की यह करतूत सिर्फ सहानुभूति बटोरने तक सीमित नहीं। यह एक सुनियोजित साजिश है, जो युवाओं, खासकर मुस्लिम नौजवानों को भटकाने का काम कर रही है। यह उन्हें संदेश दे रही है कि अगर उनके गांव में मोबाइल टॉवर नहीं है, तो वे आदिल की तरह बंदूक उठाएं, पाकिस्तान जाएं और भारत में लौटकर हिंदुओं का नरसंहार करें। यह ‘गजवा-ए-हिंद’ के जहरीले मंसूबों को हवा देने की कोशिश नहीं तो और क्या है?

और हद तो तब हो गई, जब यह पता चला कि जिस आतंकी आदिल को ‘लल्लनटॉप’ गरीब और मजबूर बता रहा है, उसके परिवार का घर 2-3 करोड़ रुपये का है। अब आप ही बताइए, क्या इतनी मोटी कमाई वाला परिवार सिर्फ 15-20 हजार रुपये महीने की आय वाले मोबाइल टॉवर के न होने पर अपने बेटे को आतंकी बनने भेजेगा? यह कहानी नहीं, देश को गुमराह करने और आतंक को बढ़ावा देने का खतरनाक खेल है।
सवाल यह है कि ऐसे लोग, जो आतंकियों के लिए आंसू बहाते हैं और उनके कुकर्मों को जायज ठहराते हैं, आखिर भारत की मिट्टी में क्यों पल रहे हैं? यह वक्त है सतर्क होने का, इन सांपों की सच्चाई को पहचानने का और देश को इनके जहर से बचाने का। क्योंकि अगर हम अब नहीं जागे, तो ये भारतीय केंचुल में छिपे सांप हमें डसने से नहीं चूकेंगे।