नई दिल्ली, 18 जुलाई 2025: पाकिस्तान में जन्मे मोहम्मद आरिफ आजाग्या ने हाल ही में सनातन धर्म अपनाने की अपनी व्यक्तिगत यात्रा साझा की, जिसने सोशल मीडिया और समाज में एक गंभीर चर्चा को जन्म दिया है। आरिफ, जिनके माता-पिता भारत में पैदा हुए थे, ने बताया कि उन्होंने भगवद् गीता का अध्ययन करने के बाद हिंदू धर्म को अपनाने का फैसला किया। उनकी इस यात्रा ने न केवल उनकी आध्यात्मिक खोज को उजागर किया, बल्कि धर्म, पहचान और सामाजिक स्वीकार्यता जैसे गहरे मुद्दों पर भी सवाल उठाए।
आध्यात्मिक यात्रा और सनातन धर्म की ओर कदम
मोहम्मद आरिफ ने अपनी कहानी में बताया कि वह एक मुस्लिम परिवार में पैदा हुए, लेकिन गीता के दर्शन और सनातन धर्म की शिक्षाओं ने उन्हें गहराई से प्रभावित किया। उन्होंने कहा, “मैंने गीता पढ़ी और उसमें जीवन का सार पाया। यह मेरे लिए एक आध्यात्मिक जागृति थी।” उनकी यह पसंद व्यक्तिगत विश्वास और आत्म-खोज का परिणाम थी, न कि किसी बाहरी दबाव का।
नाम बदलने का सवाल: सामाजिक दबाव या व्यक्तिगत पसंद?
आरिफ के हिंदू धर्म अपनाने के बाद, समाज का एक वर्ग उनसे सवाल कर रहा है कि क्या वह अपना नाम बदलेंगे। उनके अनुसार, लोग अक्सर पूछते हैं, “मोहम्मद आरिफ, आप हिंदू कैसे हो सकते हैं? पहले अपना नाम बदलें।” इस सवाल ने एक महत्वपूर्ण बहस को जन्म दिया: क्या धर्म परिवर्तन के साथ नाम बदलना अनिवार्य है?
हिंदू धर्म के विद्वानों और सामाजिक टिप्पणीकारों का कहना है कि सनातन धर्म में नाम बदलने की कोई अनिवार्य शर्त नहीं है। दिल्ली विश्वविद्यालय में संस्कृत और दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर डॉ. श्याम सुंदर शर्मा के अनुसार, “हिंदू धर्म आत्मा की शुद्धता और कर्म पर आधारित है, न कि किसी नाम या बाहरी पहचान पर। कोई भी व्यक्ति अपनी आस्था और विश्वास के आधार पर सनातन धर्म का हिस्सा बन सकता है।”
सामाजिक प्रतिक्रियाएँ और चुनौतियाँ
सोशल मीडिया पर आरिफ की कहानी को लेकर मिली-जुली प्रतिक्रियाएँ देखने को मिली हैं। कुछ लोगों ने उनकी आध्यात्मिक खोज की सराहना की, तो कुछ ने उनके नाम को लेकर सवाल उठाए। एक एक्स पोस्ट में यूजर @SanatanSeeker ने लिखा, “धर्म आत्मा का विषय है, नाम का नहीं। मोहम्मद आरिफ का सनातन धर्म अपनाना एक प्रेरणा है।” वहीं, कुछ अन्य पोस्ट्स में उनके नाम को लेकर तंज कसे गए।
कानूनी और सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य
भारत में धर्म परिवर्तन एक व्यक्तिगत अधिकार है, जिसे संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत संरक्षित किया गया है। यह अनुच्छेद प्रत्येक व्यक्ति को अपनी पसंद का धर्म अपनाने, अभ्यास करने और प्रचार करने की स्वतंत्रता देता है। नाम परिवर्तन के लिए कोई कानूनी बाध्यता नहीं है, जब तक कि व्यक्ति स्वेच्छा से ऐसा न करना चाहे।
पाकिस्तान में, जहाँ धार्मिक पहचान एक संवेदनशील मुद्दा हो सकता है, आरिफ का यह कदम और भी साहसिक माना जा रहा है। उनकी कहानी उन लोगों के लिए एक उदाहरण है जो अपनी आध्यात्मिक यात्रा में बाहरी दबावों से ऊपर उठकर अपने विश्वास का पालन करना चाहते हैं।