नई दिल्ली, 30 अप्रैल 2025, बुधवार। पहलगाम हमले के बाद पाकिस्तान कभी गीदड़ भभकी तो कभी सफ़ाई देता नज़र आ रहा है। यहाँ तक पाकिस्तान अपने बचाव में अब यूएन की शरण में जा चुका है और प्रधानमंत्री शहबाज़ ख़ान अस्पताल की राह देख रहे हैं। लेकिन जिस तरह से पाकिस्तान के सूचना और प्रसारण मंत्री और पूर्व प्रधानमंत्री इमरान ख़ान का बयान आया है वो साफ़ बता रहा है कि पाकिस्तान ख़ौफ़ में है। पाकिस्तान के सूचनामंत्री ही नहीं कई नेता बार-बार ये ने बयान दे रहे हैं की उन्हें गमले का सर सता रहा गई।
आतंकवाद और पाकिस्तान एक सिक्के के दो पहलू है ये पूरी दुनिया जानती है। यही वजह है कि पाकिस्तान हर दरवाजे पर मदद की भीख मांग रहा है मगर दुनिया का हर दरवाजा पाकिस्तान के लिए बंद है। आतंकवाद को प्रायोजित करने, उसे पनाह देने और निर्यात करने में पाकिस्तान का ट्रैक रिकॉर्ड दुनिया की सबसे खतरनाक और अस्थिर करने वाली ताकतों में से एक है। दशकों से, पाकिस्तान की धरती का इस्तेमाल सीमा पार आतंकवाद, उग्रवाद और चरमपंथी विचारधारा के लिए लॉन्चपैड के रूप में काम कर रहा है।
अभी हाल ही कुछ आतंकी वारदातों को देखें तो आतंकवाद के एपिसेंटर के रूप में पाकिस्तान पूरी तरह से एक्सपोज़ हो चुका है। साल 2018 में पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने सुझाव दिया कि पाकिस्तान सरकार ने 2008 के मुंबई हमलों में भूमिका निभाई थी। उन्होंने ये भी कहा था कि मुंबई हमले को अंजाम पाकिस्तान स्थित इस्लामी आतंकवादी समूह लश्कर-ए-तैयबा ने दिया था।
पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री और पूर्व सेना प्रमुख परवेज मुशर्रफ ने भी ये स्वीकार किया था कि उनकी सेना कश्मीर में भारत से लड़ने के लिए आतंकवादी समूहों को प्रशिक्षण देती रहती है। उन्होंने ये भी माना था कि उनकी सरकार ने इस पर आंखें मूंद लीं थी क्योंकि उस वक्त पाकिस्तान की सरकार उस समय भारत को बातचीत में शामिल होने के लिए मजबूर करना चाहती थी, साथ ही आतंक का सहारा लेकर भारत को अस्थिर कर के इस मुद्दे को पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उठाना चाहती थी।
अभी पहलगाम हमले के कुछ दिन बाद ही एक अंतरराष्ट्रीय टीवी चैनल पर बात करते हुए पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा मुहम्मद आसिफ ने स्वीकार किया था कि पाकिस्तान तीन दशकों से अधिक समय से आतंकवादी समूहों का समर्थन देने का काम किया है। उन्होंने इसे अमेरिका के नेतृत्व वाली विदेश नीति के निर्णयों से जुड़ी गलती माना। पाकिस्तान वैश्विक स्तर पर आतंकवाद का निर्यात करता है उसे विश्व के कुछ देशों की अस्थिरता और पाकिस्तान की भूमिका से समझा जा सकता है।
बेहाल अफगानिस्तान और तालिबान और हक्कानी नेटवर्क
तालिबान और हक्कानी नेटवर्क की मदद से पाकिस्तान की ISI (इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस) को अफगान तालिबान और हक्कानी नेटवर्क का समर्थन करने, उन्हें धन, प्रशिक्षण और सुरक्षित पनाह देने में पाकिस्तान की अहम भूमिका देखा गया है। ये समूह अफगान नागरिकों, सरकारी ठिकानों और अंतर्राष्ट्रीय बलों पर कई घातक हमलों के लिए जिम्मेदार हैं , ये सबूत तथ्यों के साथ सामने आ चुका है । जिनमें 2008 में काबुल में भारतीय दूतावास पर बमबारी और 2011 में काबुल में अमेरिकी दूतावास पर हमला प्रमुखता के साथ शामिल है।
यहाँ तक कि ब्रिटिश वरिष्ठ पत्रकार कार्लोटा गैल ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि, “दूतावास पर बमबारी कोई दुष्ट ISI एजेंटों द्वारा किया गया कोई ऑपरेशन नहीं था बल्कि इसे पाकिस्तानी खुफिया विभाग के सबसे वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा मंजूरी दी गई थी और उनके निगरानी में किया गया था ।
पाकिस्तान की भूमिका रूस को अस्थिर करने में भी साक्ष्यों के साथ देखी गई है ।
सबसे पहले साल 2024 रूस के मॉस्को कॉन्सर्ट हॉल हमला की करते हैं । अप्रैल 2025 में, मॉस्को आतंकी हमले की जांच में पाकिस्तान से जुड़े होने की बात सामने आई थी । रूसी अधिकारियों ने मास्टरमाइंड की पहचान ताजिक नागरिक के रूप में की और वे पाकिस्तान से संबंधों की जांच कर रहे हैं। जो रिपोर्ट बता रहीं हैं कि हमलावरों को पाकिस्तानी नेटवर्क से रसद या वैचारिक समर्थन मिल रहा था ।
ईरान और जैश उल-अदल हमले
पाकिस्तान स्थित सुन्नी चरमपंथी समूह जैश उल-अदल ने सिस्तान और बलूचिस्तान प्रांत में ईरानी सुरक्षा बलों पर बार-बार हमला किया है। जवाब में, ईरान ने 16 जनवरी 2024 को पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत के अंदर मिसाइल और ड्रोन हमले किए, जिसमें जैश उल-अदल के ठिकानों को निशाना बनाया गया।ईरान ने हमेशा पाकिस्तान पर सीमा पार हमले करने वाले सुन्नी आतंकवादियों को पनाह देने और उनके खिलाफ कार्रवाई करने में विफल रहने का आरोप लगाया है।
यूनाइटेड किंगडम का 2005 का लंदन विस्फोट
7 जुलाई 2005 को लंदन में हुए बम विस्फोट, जिन्हें चार ब्रिटिश इस्लामिस्ट आतंकवादियों ने अंजाम दिया था उन्हें पाकिस्तान के चरमपंथी विचारधारा से जुड़ा हुआ पाया गया था और उनकी प्रशिक्षण भी पाकिस्तान में हुई थी । हमलावरों में से तीन-मोहम्मद सिद्दीक खान, शहजाद तनवीर और जर्मेन लिंडसे- ने 2003 और 2005 के बीच पाकिस्तान में समय बिताया था ।
अमेरिका का 9/11 हमला और पाकिस्तान के एबटाबाद में ओसामा बिन लादेन का पनाहगाह
2011 में पाकिस्तान के एबटाबाद में अल-कायदा नेता ओसामा बिन लादेन को मारने वाले अमेरिकी छापे ने पाकिस्तान के आतंकवाद विरोधी प्रयासों में प्रणालीगत विफलताओं को उजागर किया। बिन लादेन पाकिस्तान की सैन्य अकादमी के पास एक परिसर में वर्षों तक बिना किसी पहचान के रहा था, जिससे आईएसआई की मिलीभगत का संदेह पैदा हुआ।
जमात-उल-मुजाहिदीन बांग्लादेश (JMB) संचालन
पाकिस्तान की ISI पर जमात-उल-मुजाहिदीन बांग्लादेश (JMB) को वित्तपोषित करने और प्रशिक्षण देने का आरोप है, जो एक प्रतिबंधित इस्लामी समूह है जो 2016 में ढाका के गुलशन कैफ़े हमले में बंधकों की हत्या के लिए ज़िम्मेदार है। 2015 में, बांग्लादेशी अधिकारियों ने पाकिस्तानी राजनयिकों को JMB के गुर्गों को धन हस्तांतरित करते रंगे हाथों पकड़ने के बाद निष्कासित कर दिया था।
2020 की एक खुफिया रिपोर्ट में JMB के ज़रिए बांग्लादेश के कॉक्स बाज़ार शिविरों में 40 रोहिंग्या शरणार्थियों को प्रशिक्षित करने में भी पाकिस्तान की संलिप्तता का खुलासा हुआ था । जिसका उद्देश्य उन्हें भारत में घुसपैठ कराना था। खाड़ी स्थित गैर सरकारी संगठनों और पाकिस्तानी बिचौलियों के ज़रिए वित्तपोषित JMB का नेटवर्क बांग्लादेश और भारत तक फैला हुआ है, जिसमें पश्चिम बंगाल और केरल जैसे राज्यों में स्लीपर सेल हैं। पाकिस्तान के खुफिया तंत्र के साथ समूह के संबंध क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्वियों को अस्थिर करने के लिए इस्लामाबाद द्वारा अंतरराष्ट्रीय प्रॉक्सी के रूप में भी सामने आया था ।
पूरी दुनिया में पाकिस्तान और आतंकवाद के सांठ -गाँठ को लेकर ये तथ्य भी सामने आ चुका है कि पाकिस्तान ने पूरी दुनिया में चरमपंथ और आतंक के स्कूल खोल रखे हैं। पाकिस्तान की सेना और खुफिया एजेंसी ने अपने ही सैनिकों को आतंकवादी चेहरा दे दिया है और जिहादी प्रशिक्षकों के रूप में बदल दिया है, जो पूरे दक्षिण एशिया में दशकों से आतंक को लगातार बढ़ावा दे रहे हैं।
पाकिस्तान पंजाब, खैबर पख्तूनख्वा , वजीरिस्तान और पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर PoK जैसे प्रांतों में आतंकी प्रशिक्षण शिविरों का घना नेटवर्क तैयार कर रखा है। लश्कर-ए-तैयबा (LeT), जैश-ए-मोहम्मद (JeM), हिजबुल मुजाहिदीन (HM) और ISIS-खोरासन जैसे अंतरराष्ट्रीय आतंकी संगठनों द्वारा संचालित ये शिविर कट्टरपंथ, हथियार प्रशिक्षण और आत्मघाती मिशन की तैयारी के लिए आतंक के एपिसेंटर के रूप में काम करते हैं। इन शिविरों में पूर्व पाकिस्तानी सेना के जवान और अफसर प्रशिक्षण में सहायता करते हैं।
आतंकवाद पर अमेरिकी विदेश विभाग की 2019 की रिपोर्ट ने पाकिस्तान को एक ऐसे देश के रूप में पेश किया है जो “क्षेत्रीय रूप से केंद्रित आतंकवादी समूहों के लिए एक सुरक्षित आश्रय के रूप में काम करता है। रिपोर्ट में पाकिस्तान सेना और आतंकवाद को एक अपवित्र गठबंधन कहा गया है । दक्षिण एशियाई अध्ययन के लिए यूरोपीय फाउंडेशन ने पाकिस्तान के सैन्य प्रतिष्ठान, इसकी खुफिया एजेंसी – आईएसआई – और कट्टरपंथी धार्मिक नेताओं के बीच एक गहरे संबंध को उजागर किया है। • सितंबर 2019 में, ब्रिगेडियर शाह ने पाकिस्तानी निजी समाचार चैनल हम न्यूज़ पर एक राष्ट्रीय टेलीविजन साक्षात्कार के दौरान एक चौंकाने वाला कबूलनामा भी किया था । पाकिस्तान के एक टेलीविजन टॉक शो के दौरान शाह ने कबूल किया था । यहाँ तक की एक साक्षात्कार में, मुशर्रफ ने स्वीकार किया कि कश्मीरियों को जम्मू और कश्मीर में भारतीय सेना के खिलाफ लड़ने के लिए मुजाहिदीन के रूप में “पाकिस्तान में प्रशिक्षित” किया गया था। उन्होंने आगे बढ़कर जिहादी आतंकवादियों को पाकिस्तान का “नायक” बताया और यहां तक कि वैश्विक आतंकवादियों ओसामा बिन लादेन, अयमान अल-जवाहिरी और जलालुद्दीन हक्कानी का नाम भी लिया, जिन्हें पाकिस्तान “नायक” मानता है।