नई दिल्ली, 21 मई 2025, बुधवार। भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव और फिर सीजफायर की खबरों ने राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी। ऑपरेशन सिंदूर की गूंज ने जहां देश में गर्व की लहर दौड़ा दी, वहीं विपक्ष इसे लेकर अपने ही सवालों के जाल में उलझता नजर आ रहा है। खासकर कांग्रेस नेता राहुल गांधी की अगुवाई में विपक्ष ने इस मुद्दे को लपकने की कोशिश की, लेकिन अब उनके ही दल के दिग्गज उनकी रणनीति को पलटते दिख रहे हैं।
ट्रंप की मध्यस्थता का दावा और विपक्ष का शोर
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत-पाकिस्तान के बीच सीजफायर को लेकर मध्यस्थता का दावा किया तो विपक्ष ने इसे तुरंत भुनाने की कोशिश की। राहुल गांधी ने विदेश मंत्री एस. जयशंकर के एक बयान को पकड़ लिया, जिसमें उन्होंने आतंक के खिलाफ कार्रवाई की सूचना पाकिस्तान के साथ साझा करने की बात कही थी। राहुल ने इसे “देशद्रोह” करार देते हुए सरकार पर हमला बोला। लेकिन यह दांव जल्द ही उल्टा पड़ गया।
विपक्ष के दिग्गजों ने बदला रुख
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद ने ऑपरेशन सिंदूर की सफलता और सरकार के कदम की तारीफ कर विपक्ष की रणनीति पर ही सवाल उठा दिए। खुर्शीद ने ट्रंप के मध्यस्थता के दावे को सिरे से खारिज करते हुए कहा, “कोई हस्तक्षेप या मध्यस्थता नहीं थी। जो हुआ, वह भारत और पाकिस्तान के बीच हुआ। पाकिस्तान के डीजीएमओ ने पहल की।” उन्होंने साफ किया कि देश के बाहर भारत का पक्ष रखना उनकी प्राथमिकता है, और घरेलू राजनीति को इससे अलग रखा जाना चाहिए। खुर्शीद का यह बयान राहुल गांधी के आक्रामक रुख को कमजोर करता है।
इसी तरह, समाजवादी पार्टी के सांसद राजीव राय ने कहा, “हम देश की तरफ से जा रहे हैं। देश रहेगा तो राजनीति रहेगी, पार्टी रहेगी।” विपक्षी सांसदों का यह स्पष्ट रुख दिखाता है कि ऑपरेशन सिंदूर के प्रति उनकी आस्था मजबूत है, और वे इसे वैश्विक मंच पर गर्व के साथ पेश करने को तैयार हैं।
सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल और टीएमसी की उलझन
ऑपरेशन सिंदूर की सच्चाई को दुनिया तक पहुंचाने के लिए भारत सरकार ने सात सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडलों का गठन किया है। मंगलवार को विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने इन सांसदों के साथ बैठक कर एजेंडे की विस्तृत जानकारी साझा की। इस प्रतिनिधिमंडल में सलमान खुर्शीद और शशि थरूर जैसे दिग्गज शामिल हैं। लेकिन कांग्रेस ने शुरू में थरूर को शामिल करने पर असंतोष जताया, क्योंकि थरूर बिना किसी हिचक के ऑपरेशन की तारीफ कर रहे हैं।
वहीं, टीएमसी ने इस मुद्दे पर उलझन भरा रुख अपनाया। पहले उन्होंने सांसद यूसुफ पठान को प्रतिनिधिमंडल से हटाया और फिर अभिषेक बनर्जी का नाम आगे बढ़ाया। टीएमसी के इस फैसले ने सवाल खड़े किए कि क्या यह पश्चिम बंगाल की राजनीति को ध्यान में रखकर लिया गया कदम है। शिवसेना यूबीटी ने तो इस प्रतिनिधिमंडल को “टूरिज्म” तक करार दे दिया।
पाकिस्तान का प्रपंच और भारत का जवाब
पाकिस्तान ऑपरेशन सिंदूर की सफलता को झूठे प्रचार से कमजोर करने की कोशिश कर रहा है। लेकिन भारत का सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल 32 देशों और यूरोपीय संघ के मुख्यालय में जाकर पाकिस्तान के झूठ को बेनकाब करने के लिए तैयार है। ऑपरेशन सिंदूर की सफलता ने न केवल आतंकवाद के खिलाफ भारत के मजबूत इरादों को दिखाया, बल्कि यह भी साबित किया कि देश की एकता और सेना का साहस किसी भी सियासी दांवपेच से ऊपर है।
आगे क्या?
विपक्ष की रणनीति अब उसी के सवालों में उलझती दिख रही है। राहुल गांधी और उनके सहयोगियों ने भले ही सरकार पर निशाना साधने की कोशिश की, लेकिन सलमान खुर्शीद और शशि थरूर जैसे नेताओं के बयानों ने उनकी चाल को कमजोर कर दिया। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि वैश्विक मंच पर भारत का पक्ष रखने के बाद विपक्ष की राजनीति को कितना सहारा मिल पाता है। ऑपरेशन सिंदूर ने न केवल भारत की ताकत दिखाई, बल्कि विपक्ष के लिए भी एक सबक छोड़ा—देश के सामने राजनीति छोटी पड़ जाती है।
विपक्ष का दांव फेल
ऑपरेशन सिंदूर सिर्फ एक सैन्य कार्रवाई नहीं, बल्कि भारत की आत्मा और एकता का प्रतीक है। विपक्ष भले ही सवाल उठाए, लेकिन उनके ही नेता इस ऑपरेशन की तारीफ कर रहे हैं। यह विडंबना ही है कि राहुल गांधी की आक्रामक रणनीति उनके अपने सहयोगियों के बयानों से कमजोर पड़ रही है। अब वैश्विक मंच पर भारत का पक्ष रखने की जिम्मेदारी उन सांसदों पर है, जो देश को पहले और पार्टी को बाद में रखते हैं।