नई दिल्ली, 16 मई 2025, शुक्रवार। 22 अप्रैल, 2025 की सुबह जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में तबाही मच गई। पाकिस्तान समर्थित लश्कर-ए-तैयबा की शाखा, द रेजिस्टेंस फ्रंट (TRF), ने 26 भारतीय नागरिकों, ज्यादातर हिंदू पर्यटकों, की निर्मम हत्या कर दी। यह हमला भारत के लिए एक और घाव नहीं था—यह एक चुनौती थी, जिसका जवाब देने का समय आ चुका था।
पहले के दशकों में भारत ने धैर्य और कूटनीति का रास्ता चुना था। लेकिन इस बार, भारत ने इंतजार नहीं किया। इसने युद्धक विमान उतारे। 7 मई को शुरू हुआ ऑपरेशन सिंदूर, एक ऐसा सैन्य अभियान, जिसने न केवल भारत की ताकत का प्रदर्शन किया, बल्कि एक नए राष्ट्रीय सुरक्षा सिद्धांत की नींव रखी। यह प्रतिशोध की कहानी नहीं थी—यह एक रणनीतिक मास्टरस्ट्रोक की गाथा थी।
तेज, सटीक और निर्णायक: ऑपरेशन का खाका
ऑपरेशन सिंदूर केवल चार दिनों में इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया। भारतीय वायु सेना ने पाकिस्तानी धरती पर नौ आतंकी ठिकानों—जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा के प्रशिक्षण शिविरों और मुख्यालयों—को नेस्तनाबूद कर दिया। बहावलपुर, मुरीदके और मुजफ्फराबाद के आतंकी ढांचे मलबे में तब्दील हो गए।
पाकिस्तान ने 8 मई को ड्रोन हमलों से जवाबी कार्रवाई की कोशिश की, लेकिन भारत के स्वदेशी और इजरायल-रूसी तकनीक से लैस वायु रक्षा नेटवर्क ने इसे नाकाम कर दिया। 9 मई को भारत ने छह पाकिस्तानी सैन्य एयरबेस और ड्रोन समन्वय केंद्रों पर और हमले किए। 10 मई को भारत ने गोलीबारी रोक दी—लेकिन इसे युद्धविराम नहीं कहा। सेना ने इसे “गोलीबारी बंद करना” करार दिया, एक ऐसा शब्द जो भारत के रणनीतिक नियंत्रण को दर्शाता था।
मोदी का सिद्धांत: आतंक का अंत, बातचीत की शुरुआत
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऑपरेशन के पीछे के सिद्धांत को स्पष्ट किया: “आतंक और बातचीत एक साथ नहीं चल सकते। पानी और खून एक साथ नहीं बह सकते।” यह केवल शब्द नहीं थे। यह एक नया नियम था—पाकिस्तानी धरती से होने वाले आतंकी हमलों को अब युद्ध का कृत्य माना जाएगा।
मोदी ने परमाणु ब्लैकमेल को खारिज करते हुए कहा, “भारत किसी भी परमाणु धमकी को बर्दाश्त नहीं करेगा।” यह सिद्धांत ऑपरेशन सिंदूर का आधार बना। भारत ने न केवल आतंकी ढांचे को नष्ट किया, बल्कि अपनी सैन्य श्रेष्ठता, रणनीतिक संयम और स्वतंत्र निर्णय लेने की क्षमता का प्रदर्शन किया।
रणनीतिक जीत के चार स्तंभ
नई लाल रेखा: पाकिस्तानी धरती से आतंकी हमलों का जवाब अब सैन्य कार्रवाई होगी। यह धमकी नहीं, एक मिसाल है।
सैन्य श्रेष्ठता: भारत ने आतंकी ठिकानों से लेकर सैन्य एयरबेस तक, हर लक्ष्य पर सटीक हमले किए, जबकि पाकिस्तान भारत की सीमा में घुसपैठ तक नहीं कर सका। यह बराबरी नहीं—यह वर्चस्व था।
निवारण की बहाली: भारत ने नियंत्रित वृद्धि के साथ जवाब दिया, पूर्ण युद्ध से पहले रुककर एक स्पष्ट संदेश दिया—भारत जवाब देगा, और वह गति तय करेगा।
रणनीतिक स्वतंत्रता: भारत ने अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता की प्रतीक्षा किए बिना, अपनी शर्तों पर कार्रवाई की।
संयम और शक्ति का संतुलन
ऑपरेशन सिंदूर का लक्ष्य कब्जा या शासन परिवर्तन नहीं था। यह सीमित युद्ध था, जिसने सटीक उद्देश्यों को हासिल किया—आतंकी ढांचे का खात्मा, सैन्य श्रेष्ठता का प्रदर्शन और निवारण की स्थापना। आलोचकों का कहना है कि भारत को और आगे जाना चाहिए था, लेकिन यह रणनीति की गलत समझ है। सच्ची जीत विनाश की मात्रा में नहीं, बल्कि राजनीतिक और रणनीतिक प्रभाव में होती है।
भारत का संयम उसकी कमजोरी नहीं, परिपक्वता थी। इसने न केवल हमले का जवाब दिया, बल्कि दक्षिण एशिया के रणनीतिक समीकरण को बदल दिया।
आधुनिक युद्ध का एक मॉडल
ऑपरेशन सिंदूर आधुनिक युद्ध का एक दुर्लभ उदाहरण है। यह परमाणु छाया, वैश्विक निगरानी और सीमित उद्देश्यों के बीच लड़ा गया। भारत ने स्पष्ट लक्ष्य निर्धारित किए, सटीक तरीकों का उपयोग किया और अप्रत्याशित चुनौतियों के बावजूद उन्हें हासिल किया।
2008 का भारत हमलों को सहता था। 2025 का भारत तुरंत, सटीक और स्पष्टता के साथ जवाब देता है। मोदी का सिद्धांत, भारत का उन्नत रक्षा उद्योग और सशस्त्र बलों की व्यावसायिकता दिखाती है कि देश अब अगले युद्ध की तैयारी कर रहा है।
विराम, अंत नहीं
ऑपरेशन सिंदूर अभी खत्म नहीं हुआ है। यह एक रणनीतिक विराम है। भारत ने पहल अपने हाथ में रखी है। अगर फिर उकसाया गया, तो वह फिर हमला करेगा। यह निवारण की बहाली है। यह एक नए युग की शुरुआत है।
ऑपरेशन सिंदूर सिर्फ एक सैन्य जीत नहीं है। यह एक सिद्धांत है, एक मिसाल है, और दुनिया भर के देशों के लिए एक सबक है जो राज्य प्रायोजित आतंकवाद से जूझ रहे हैं। भारत ने न केवल युद्ध जीता—उसने भविष्य की रूपरेखा तैयार की।