नई दिल्ली, 01 जुलाई 2025: जम्मू-कश्मीर के राज्य दर्जे की बहाली में हो रही देरी पर देश की पांच प्रमुख हस्तियों ने कड़ा रुख अपनाते हुए भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) बी.आर. गवई को खुला पत्र लिखकर सुप्रीम कोर्ट से स्वत: संज्ञान लेने और विशेष पीठ गठित करने की मांग की है। इनका कहना है कि जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांटना संविधान के खिलाफ है और इसे तत्काल बहाल किया जाना चाहिए।
पत्र पर हस्ताक्षर करने वालों में पूर्व केंद्रीय गृह सचिव गोपाल पिल्लई, जम्मू-कश्मीर वार्ताकार समूह की पूर्व सदस्य राधा कुमार, सेवानिवृत्त मेजर जनरल अशोक के मेहता, सेवानिवृत्त एयर वाइस मार्शल कपिल काक और अंतर-राज्यीय परिषद के पूर्व सचिव अमिताभ पांडे शामिल हैं।
संविधान के खिलाफ फैसला, तत्काल बहाली जरूरी
पत्र में कहा गया, “जम्मू-कश्मीर का राज्य दर्जा छीनकर उसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में बदलना संवैधानिक सिद्धांतों का उल्लंघन है। भारत एक संघीय लोकतंत्र है, जहां राज्यों के अधिकारों की रक्षा सर्वोपरि है।” याचिकाकर्ताओं ने CJI से अनुरोध किया कि वे इस मुद्दे पर स्वत: संज्ञान लें और सुनवाई के लिए विशेष पीठ गठित करें ताकि राज्य का दर्जा बहाल हो और भविष्य में किसी भी राज्य के साथ ऐसा न हो।
सरकार के वादे अधूरे, जनता का भरोसा डगमगाया
पत्र में केंद्र सरकार पर वादाखिलाफी का आरोप लगाते हुए कहा गया कि नवंबर 2019 में गृह मंत्री ने संसद में राज्य दर्जा बहाल करने का वादा किया था, जो छह साल बाद भी अधूरा है। दिसंबर 2023 में सुप्रीम कोर्ट में सॉलिसिटर जनरल ने भी चरणबद्ध बहाली की बात कही थी, लेकिन कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया, “अगर यह कदम असंवैधानिक था, तो बहाली में देरी क्यों?”
पहलगाम हमला बहाना नहीं, जनता की मांग स्पष्ट
पत्र में अप्रैल 2024 के पहलगाम आतंकी हमले का जिक्र करते हुए चेतावनी दी गई कि सरकार इसे बहाली में देरी का बहाना बना सकती है। लेकिन, याचिकाकर्ताओं का कहना है कि अक्टूबर 2024 के विधानसभा चुनाव में भारी मतदान और नेशनल कॉन्फ्रेंस को मिला स्पष्ट बहुमत दर्शाता है कि जनता ने चुनी हुई सरकार को पूर्ण समर्थन दिया है। नवनिर्वाचित विधानसभा ने भी पहली बैठक में राज्य दर्जा बहाली का प्रस्ताव पारित किया, जो राष्ट्रपति को भेजा गया, लेकिन आठ महीने बाद भी कोई कार्रवाई नहीं हुई।
मानवाधिकार उल्लंघन और प्रशासनिक मनमानी पर सवाल
पहलगाम हमले के बाद कश्मीरियों के खिलाफ की गई कार्रवाइयों पर चिंता जताते हुए पत्र में कहा गया कि सैकड़ों लोगों को हिरासत में लिया गया और उनके घरों को गैरकानूनी ढंग से गिराया गया, जबकि जांच में हमले में स्थानीय संलिप्तता नहीं पाई गई। याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया कि चुनी हुई सरकार को सुरक्षा बैठकों और प्रशासनिक नियुक्तियों से दूर रखा जा रहा है, जो सुप्रीम कोर्ट के दिल्ली सरकार मामले में दिए गए फैसले का उल्लंघन है।
मानवाधिकार आयोग की अनुपस्थिति चिंताजनक
पत्र में यह भी बताया गया कि जम्मू-कश्मीर में मानवाधिकार आयोग निष्क्रिय है, जिसके चलते पीड़ितों को न तो विधायकों और न ही मंति्रयों से मदद मिल पा रही है। याचिकाकर्ताओं ने कहा कि पहलगाम हमले के बाद शांति बहाली का माहौल था, लेकिन प्रशासन की एकतरफा कार्रवाइयों ने जनाक्रोश को बढ़ाया है।
संसद में उठेगा मुद्दा
याचिकाकर्ताओं ने CJI से विशेष पीठ गठित करने और समयसीमा निर्धारित करने की मांग की है। साथ ही, उन्होंने भविष्य में किसी भी राज्य के दर्जे को एकतरफा रद्द करने से रोकने के लिए कानूनी सुरक्षा की वकालत की। उन्होंने ऐलान किया कि वे मॉनसून सत्र से पहले सभी दलों के सांसदों से संपर्क कर इस मुद्दे को संसद में उठाएंगे।
शांति के लिए राज्य दर्जा जरूरी
पत्र में जोर देकर कहा गया कि जम्मू-कश्मीर में शांति और स्थिरता के लिए नागरिक और राजनीतिक अधिकारों की बहाली के साथ पूर्ण राज्य दर्जा सबसे प्रभावी कदम है। यह पत्र न केवल केंद्र सरकार के रवैये पर सवाल उठाता है, बल्कि सुप्रीम कोर्ट से इस ऐतिहासिक अन्याय को सुधारने की गुहार भी लगाता है।