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Monday, June 23, 2025

अब गया नहीं… गया जी: पितरों की मुक्ति का पावन द्वार और गयासुर की अमर कथा

नई दिल्ली, 18 मई 2025, रविवार। बिहार की पावन धरती पर बसी गया नगरी अब एक नए, सम्मानजनक नाम ‘गया जी’ के साथ विश्वभर में अपनी पहचान और गौरव बढ़ा रही है। बीते शुक्रवार को बिहार सरकार ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अध्यक्षता में ऐतिहासिक निर्णय लेते हुए गया का नाम बदलकर ‘गया जी’ कर दिया। इस फैसले ने न केवल गया वासियों, बल्कि देशभर के उन लाखों श्रद्धालुओं के दिलों में खुशी की लहर दौड़ा दी, जो पितृपक्ष में पिंडदान और श्राद्ध कर्म के लिए इस पवित्र नगरी का रुख करते हैं। स्थानीय संतों, गयावाल पंडितों और जनप्रतिनिधियों की लंबे समय से चली आ रही मांग थी कि ‘गया’ नाम अधूरा-सा प्रतीत होता है। ‘गया जी’ नाम ने इस तीर्थ को पूर्णता और सम्मान का वह आलोक प्रदान किया, जिसका यह हकदार था।

गया जी: मोक्ष का स्वर्णिम मार्ग

हिंदू धर्म में गया जी का स्थान अनन्य है। यह वह पवित्र भूमि है, जहां पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। पितृपक्ष के दौरान विश्व के कोने-कोने से श्रद्धालु यहां पिंडदान करने आते हैं। मान्यता है कि गया जी में किया गया पिंडदान पितरों की आत्मा को स्वर्गलोक तक पहुंचाता है। शास्त्रों और पुराणों में गया जी को मोक्ष नगरी के रूप में वर्णित किया गया है। गरुण पुराण के अनुसार, पृथ्वी पर चार धाम मानव मुक्ति के लिए विशेष हैं: ब्रह्म ज्ञान, गया में श्राद्ध, कुरुक्षेत्र में निवास और गौशाला में मृत्यु। गया जी का विष्णुपद मंदिर, जहां स्वयं भगवान विष्णु पितृदेवता के रूप में विराजमान हैं, इस नगरी को और भी पवित्र बनाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह पवित्र तीर्थ कैसे अस्तित्व में आया? इसके पीछे की कथा उतनी ही रोचक है, जितनी आध्यात्मिक।

गयासुर की तपस्या और मोक्ष नगरी का उदय

गया जी की पौराणिक कथा एक असुर से शुरू होती है, जिसका नाम था गयासुर। असुर कुल में जन्म लेने के कारण लोग उसे तिरस्कार की नजरों से देखते थे, लेकिन गयासुर भगवान विष्णु का अनन्य भक्त था। उसने अपनी कठोर तपस्या से भगवान विष्णु को प्रसन्न किया और उनसे एक अनोखा वरदान मांगा। गयासुर ने कहा, “प्रभु, मुझे इतना पवित्र बना दें कि जो कोई मेरा दर्शन करे, उसे मोक्ष की प्राप्ति हो जाए।” भगवान विष्णु ने उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर यह वरदान दे दिया।

वरदान के प्रभाव से गयासुर का दर्शन करने वाला प्रत्येक व्यक्ति मोक्ष प्राप्त करने लगा। अधर्मी, पापी, राक्षस—सभी गयासुर के पास पहुंचने लगे और मोक्ष पाने लगे। इससे स्वर्ग की व्यवस्था में अव्यवस्था फैलने लगी। चिंतित देवताओं ने भगवान विष्णु से मदद मांगी। तब विष्णु जी ने गयासुर से कहा कि वह अपने शरीर को यज्ञ के लिए समर्पित कर दे। भक्त गयासुर ने अपने आराध्य की आज्ञा सहर्ष स्वीकार की। यज्ञ के बाद भगवान विष्णु ने गयासुर को मोक्ष का वचन दिया और आशीर्वाद दिया कि उसका शरीर जहां-जहां फैलेगा, वह स्थान अत्यंत पवित्र हो जाएगा। वहां पिंडदान करने वाले पितरों को मोक्ष मिलेगा। गयासुर का शरीर पत्थर बनकर गया नगरी में फैल गया, और इस तरह यह स्थान ‘गया’ कहलाया, जो कालांतर में मोक्ष नगरी के रूप में विख्यात हुआ।

गया जी का आध्यात्मिक महत्व

आज गया जी न केवल एक तीर्थ स्थल है, बल्कि यह विश्वास और श्रद्धा का प्रतीक है। यहां का विष्णुपद मंदिर, फल्गु नदी का तट और पवित्र स्थल जैसे प्रेतशिला और रामशिला, इस नगरी को और भी दिव्य बनाते हैं। पितृपक्ष में यहां का माहौल भक्ति और श्रद्धा से सराबोर हो जाता है। गया जी का नया नाम इसे और भी गौरव प्रदान करता है, जो इसकी पवित्रता और महिमा को हर दिल तक पहुंचाएगा।

गया जी की यह पावन धरती हमें सिखाती है कि सच्ची भक्ति और समर्पण किसी भी आत्मा को पवित्र बना सकता है, चाहे वह असुर ही क्यों न हो। यह नगरी हर उस श्रद्धालु को बुलाती है, जो अपने पितरों के लिए मोक्ष की कामना करता है।

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