नई दिल्ली, 5 मार्च 2025, बुधवार। केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) ने अमेरिका को एक न्यायिक अनुरोध भेजा है, जिसमें निजी जांचकर्ता माइकल हर्शमैन से जानकारी मांगी गई है। हर्शमैन ने 1980 के दशक के 64 करोड़ रुपये के बोफोर्स रिश्वत कांड के बारे में महत्वपूर्ण विवरण भारतीय एजेंसियों के साथ साझा करने की इच्छा व्यक्त की थी। हर्शमैन ने आरोप लगाया था कि तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने घोटाले की जांच को पटरी से उतार दिया था। उन्होंने यह भी कहा था कि वह सीबीआई के साथ विवरण साझा करने के लिए तैयार हैं।
सीबीआई ने वित्त मंत्रालय से भी संपर्क किया है और हर्शमैन की नियुक्ति से संबंधित दस्तावेज मांगे हैं। एजेंसी ने कई साक्षात्कारों में हर्शमैन के दावों पर ध्यान दिया है और 2017 में घोषणा की थी कि मामले की उचित प्रक्रिया के अनुसार जांच की जाएगी। ‘फेयरफैक्स ग्रुप’ के प्रमुख हर्शमैन 2017 में निजी जासूसों के एक सम्मेलन में भाग लेने के लिए भारत आए थे।
‘लेटर रोगेटरी’ की आवश्यकता इसलिए पड़ी क्योंकि आठ नवंबर, 2023, 21 दिसंबर, 2023, 13 मई, 2024 और 14 अगस्त, 2024 को अमेरिकी प्राधिकारियों को भेजे गए पत्रों और स्मरणपत्रों से कोई जानकारी नहीं मिली। ‘लेटर रोगेटरी’ एक लिखित अनुरोध है जो एक देश की अदालत द्वारा किसी आपराधिक मामले की जांच या अभियोजन में सहायता प्राप्त करने के लिए दूसरे देश की अदालत को भेजा जाता है। इंटरपोल से किये गए अनुरोध का भी कोई परिणाम नहीं निकला।
बोफोर्स घोटाला भारत के इतिहास में एक बड़ा और विवादास्पद मामला है, जिसने राजीव गांधी सरकार के लिए बड़ी परेशानी खड़ी कर दी थी। यह घोटाला स्वीडिश कंपनी बोफोर्स के साथ चार सौ 155 मिमी फील्ड हॉवित्जर तोपों की आपूर्ति के लिए 1,437 करोड़ रुपये के सौदे में 64 करोड़ रुपये की रिश्वत के आरोपों से संबंधित था। यह मामला तब सामने आया जब स्वीडन के एक रेडियो चैनल ने आरोप लगाया कि बोफोर्स सौदे को हासिल करने के लिए भारत के राजनीतिक नेताओं और रक्षा अधिकारियों को रिश्वत दी गई थी। इसके तीन साल बाद, सीबीआई ने 1990 में मामला दर्ज किया था।
इस मामले ने राजीव गांधी सरकार के लिए बड़ी परेशानी खड़ी कर दी थी और प्रतिद्वंद्वी दलों ने कांग्रेस पर निशाना साधने के लिए इसका इस्तेमाल किया था। सीबीआई ने 1999 और 2000 में आरोपपत्र दाखिल किए थे और दिल्ली उच्च न्यायालय ने 2004 में राजीव गांधी को आरोप मुक्त कर दिया था। यह तोपें करगिल युद्ध के दौरान भारत की जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थीं। इस मामले में अभी भी जांच जारी है और सीबीआई ने अमेरिका के निजी जांचकर्ता माइकल हर्शमैन से जानकारी मांगी है।
बता दें, दिल्ली उच्च न्यायालय ने 2005 में शेष आरोपियों के खिलाफ सभी आरोपों को खारिज कर दिया और कहा कि सीबीआई यह साबित करने में विफल रही कि बोफोर्स से इतालवी व्यापारी ओतावियो क्वात्रोची को मिला धन भारत में लोक सेवकों को रिश्वत के रूप में दिया जाना था। सीबीआई ने 2005 के फैसले के खिलाफ 2018 में उच्चतम न्यायालय में अपील दायर की थी लेकिन देरी के आधार पर इसे खारिज कर दिया गया था। हालांकि, शीर्ष अदालत ने 2005 में अधिवक्ता अजय अग्रवाल द्वारा दायर अपील में सभी बिंदुओं को उठाने की अनुमति दी थी।