मिर्जापुर, 16 जुलाई 2025: मिर्जापुर का विंध्याचल मंदिर, जहां हर साल लाखों श्रद्धालु मां विंध्यवासिनी के दर्शन के लिए उमड़ते हैं, अब एक बड़े बदलाव की दहलीज पर है। विंध्य विकास परिषद ने एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए तीर्थ पुरोहितों और पारीवालों के लिए पहचान पत्र अनिवार्य करने का फैसला किया है। इस नए नियम के तहत, बिना पहचान पत्र के किसी भी पंडे या पारीवाल को मंदिर परिसर में प्रवेश नहीं मिलेगा। यह पहली बार है जब परिषद स्वयं पहचान पत्र जारी करेगी, जो पहले श्री विंध्य पंडा समाज द्वारा किया जाता था। आइए, इस नई व्यवस्था की खासियतों और इसके पीछे की वजहों को समझते हैं।
पहचान पत्र: मंदिर की व्यवस्था को बनाएंगे पारदर्शी
विंध्य विकास परिषद की ओर से जल्द ही तीर्थ पुरोहितों और पारीवालों को विशेष पहचान पत्र जारी किए जाएंगे। ये पहचान पत्र 1982 की नियमावली के आधार पर तैयार होंगे, जिसमें तीर्थ पुरोहितों के लिए पीले और पारीवालों के लिए नारंगी रंग के कार्ड होंगे। इन कार्ड्स पर बारकोड होगा, जिसे स्कैन कर श्रद्धालु संबंधित व्यक्ति की जानकारी आसानी से प्राप्त कर सकेंगे। हर छह महीने में एक निर्धारित शुल्क के साथ इनका नवीनीकरण कराना होगा।
इस पहल का मुख्य उद्देश्य मंदिर में होने वाले फर्जीवाड़े और विवादों को रोकना है। प्रशासन का मानना है कि पहचान पत्र से न केवल व्यवस्था पारदर्शी होगी, बल्कि श्रद्धालुओं का विश्वास भी बढ़ेगा। बिना पहचान पत्र के तीर्थ पुरोहित और पारीवाल केवल सामान्य श्रद्धालुओं की तरह ही मंदिर में प्रवेश कर सकेंगे, जिससे अनधिकृत गतिविधियों पर लगाम लगेगी।
चुनाव में वोटिंग का अधिकार केवल पहचान पत्र धारकों को
पहचान पत्र का महत्व सिर्फ मंदिर प्रवेश तक सीमित नहीं है। ये कार्ड पंडा समाज के चुनाव में भी अहम भूमिका निभाएंगे। केवल पहचान पत्र धारक ही साधारण सभा के सदस्य बन सकेंगे और वोट डालने के हकदार होंगे। इस प्रक्रिया को और सख्त करने के लिए, पहचान पत्र बनवाने वालों को एक शपथ पत्र जमा करना होगा, जिसमें यह घोषित करना होगा कि उनके खिलाफ कोई आपराधिक मुकदमा दर्ज नहीं है। यदि किसी पर मुकदमा है, तो उसे पहचान पत्र नहीं मिलेगा और वह साधारण सभा का हिस्सा नहीं बन सकेगा।
जिलाधिकारी प्रियंका निरंजन ने इस प्रक्रिया को 15 दिनों में पूरा करने और जल्द से जल्द चुनाव कराने के निर्देश दिए हैं। इसके लिए जिला प्रशासन ने फॉर्म भरवाने की प्रक्रिया शुरू कर दी है और जल्द ही एक बैठक बुलाई जाएगी। पंडा समाज लंबे समय से चुनाव की मांग कर रहा था, और अब इस नई व्यवस्था से उनकी मांग पूरी होने की उम्मीद है।
कैसे काम करेगी यह व्यवस्था?
पहचान पत्र बनाने की प्रक्रिया में तीर्थ पुरोहितों और पारीवालों का पूरा विवरण ऑनलाइन डेटाबेस में दर्ज किया जाएगा। पहचान पत्र की जांच की जिम्मेदारी पंडा समाज को सौंपी गई है, लेकिन किसी भी विवाद की स्थिति में सिटी मजिस्ट्रेट फैसला लेंगे। पहले दिन ही 43 फॉर्म बांटे गए, जो एक घंटे में खत्म हो गए, जिससे इस प्रक्रिया के प्रति उत्साह साफ झलकता है।
विंध्य पंडा समाज के अध्यक्ष पंकज द्विवेदी ने बताया कि पहले समाज द्वारा पहचान पत्र जारी किए जाते थे, जिन पर सिटी मजिस्ट्रेट के हस्ताक्षर होते थे। लेकिन अब परिषद के तहत यह पहली बार होगा। उन्होंने बताया कि 1982 की सूची के अनुसार, करीब 700 लोग पहचान पत्र धारक थे, जबकि वर्तमान में लगभग 1200 तीर्थ पुरोहित और 60-65 पारीवाल हैं।
जिलाधिकारी का बयान: पुरानी व्यवस्था को और मजबूत करेंगे
जिलाधिकारी प्रियंका निरंजन ने स्पष्ट किया कि यह कोई नई व्यवस्था नहीं है, बल्कि 1982 की नियमावली को और प्रभावी ढंग से लागू किया जा रहा है। उन्होंने कहा, “पहचान पत्रों की रंग कोडिंग होगी, और इसके आधार पर वोटिंग होगी। हमारा लक्ष्य 15 दिनों में प्रक्रिया पूरी कर चुनाव कराना है।”
क्या होगा असर?
इस नई व्यवस्था से मंदिर की व्यवस्था में सुधार की उम्मीद है। पहचान पत्र से न केवल अनधिकृत लोगों पर नियंत्रण होगा, बल्कि श्रद्धालुओं को भी विश्वसनीय सेवाएं मिलेंगी। बारकोड सिस्टम से पारदर्शिता बढ़ेगी, और फर्जीवाड़े की शिकायतें कम होंगी। साथ ही, पंडा समाज के चुनाव में केवल योग्य व्यक्तियों की भागीदारी सुनिश्चित होगी, जिससे संगठन और मजबूत होगा।
विंध्याचल मंदिर में लागू होने वाली यह नई व्यवस्था न केवल मंदिर की गरिमा को बनाए रखेगी, बल्कि श्रद्धालुओं और तीर्थ पुरोहितों के बीच विश्वास का एक नया सेतु भी बनाएगी। पहचान पत्र की अनिवार्यता और डिजिटल डेटाबेस जैसे कदम आधुनिकता और परंपरा के बीच संतुलन का प्रतीक हैं। अब देखना यह है कि यह व्यवस्था कितनी जल्दी और प्रभावी ढंग से लागू होती है, और क्या यह वाकई मंदिर की व्यवस्था को नई ऊंचाइयों तक ले जाएगी।