नई दिल्ली, 17 जुलाई 2025: राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) ने कक्षा 8 की सामाजिक विज्ञान की नई पाठ्यपुस्तक ‘एक्सप्लोरिंग सोसाइटी: इंडिया एंड बियॉन्ड’ में मुगल शासकों के इतिहास को नए दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया है। इस बदलाव ने शिक्षा और इतिहासकारों के बीच एक नई बहस को जन्म दे दिया है। किताब में बाबर को ‘क्रूर और निर्दयी विजेता’, अकबर को ‘क्रूरता और सहिष्णुता का मिश्रण’ और औरंगजेब को ‘मंदिर व गुरुद्वारे तोड़ने वाला शासक’ बताया गया है।

नई पाठ्यपुस्तक, जो शैक्षणिक सत्र 2025-26 के लिए तैयार की गई है, दिल्ली सल्तनत और मुगल काल के इतिहास को 13वीं से 17वीं शताब्दी तक के राजनीतिक और सामाजिक परिवेश के साथ जोड़ती है। किताब के अध्याय ‘रिशेपिंग इंडियाज पॉलिटिकल मैप’ में सल्तनत काल को राजनीतिक अस्थिरता और सैन्य अभियानों से भरा बताया गया है, जिसमें गांवों, शहरों की लूट और मंदिरों व शैक्षिक केंद्रों के विनाश का उल्लेख है।
बाबर: क्रूर विजेता की छवि
नई किताब में बाबर को एक ऐसे शासक के रूप में चित्रित किया गया है, जिसने शहरों की आबादी का कत्लेआम किया और ‘खोपड़ियों के टावर’ बनवाकर गर्व महसूस किया। उसकी आत्मकथा बाबरनामा के हवाले से बताया गया है कि वह कविता और वास्तुकला के प्रेमी होने के बावजूद क्रूर रणनीतियों के लिए कुख्यात था।
अकबर: सहिष्णुता और क्रूरता का मिश्रण
अकबर के शासन को किताब में एक जटिल चरित्र के रूप में दर्शाया गया है। चित्तौड़गढ़ किले की घेराबंदी (1568) के दौरान उनके द्वारा 30,000 नागरिकों के नरसंहार और महिलाओं-बच्चों को गुलाम बनाने के आदेश का उल्लेख है। हालांकि, बाद में उसके शासन में शांति और सहिष्णुता की नीतियों को भी रेखांकित किया गया है।
औरंगजेब: धार्मिक असहिष्णुता का प्रतीक
औरंगजेब को किताब में मंदिरों और गुरुद्वारों को नष्ट करने वाले शासक के रूप में प्रस्तुत किया गया है। काशी विश्वनाथ मंदिर, मथुरा और सोमनाथ जैसे मंदिरों के साथ-साथ सिख गुरुद्वारों के विनाश और गैर-मुस्लिमों पर जजिया कर लगाने का जिक्र है। किताब यह भी उल्लेख करती है कि कुछ विद्वान उसके फैसलों को राजनीतिक मानते हैं, पर धार्मिक असहिष्णुता उसके शासन का हिस्सा थी।
मराठा और सिख प्रतिरोध को मिला स्थान
नई पाठ्यपुस्तक में मुगलों के खिलाफ मराठा, सिख, जाट, अहोम और अन्य समुदायों के प्रतिरोध को प्रमुखता दी गई है। छत्रपति शिवाजी द्वारा मंदिरों के पुनर्निर्माण और भारतीय संस्कृति के संरक्षण को रेखांकित किया गया है। साथ ही, गोंड रानी दुर्गावती और मेवाड़ के राणा प्रताप जैसे नायकों की कहानियों को भी शामिल किया गया है।
एनसीईआरटी का स्पष्टीकरण और विवाद
एनसीईआरटी ने कहा है कि ये बदलाव राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 और राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा (एनसीएफ-एसई) 2023 के अनुरूप हैं। संस्था का दावा है कि नया पाठ्यक्रम साक्ष्य-आधारित और संतुलित है, जिसका उद्देश्य छात्रों में विश्लेषणात्मक क्षमता विकसित करना है। किताब में एक विशेष नोट, ‘नोट ऑन सम डार्कर पीरियड्स इन हिस्ट्री’, शामिल किया गया है, जिसमें यह चेतावनी दी गई है कि अतीत की घटनाओं के लिए आज किसी को जिम्मेदार नहीं ठहराया जाना चाहिए।
हालांकि, इन बदलावों ने इतिहासकारों और शिक्षाविदों के बीच विवाद खड़ा कर दिया है। कुछ आलोचकों का मानना है कि मुगल काल को नकारात्मक रूप से प्रस्तुत कर इतिहास को हिंदू-मुस्लिम संघर्ष के चश्मे से दिखाया जा रहा है, जो सामाजिक सौहार्द पर असर डाल सकता है। दूसरी ओर, कई लोग इसे इतिहास की ‘सच्चाई’ को सामने लाने का कदम मान रहे हैं।
कक्षा 7 से कक्षा 8 में स्थानांतरण
पहले दिल्ली सल्तनत और मुगल इतिहास कक्षा 7 की किताब ‘आवर पास्ट्स-II’ में पढ़ाया जाता था, लेकिन अब इसे पूरी तरह कक्षा 8 में स्थानांतरित कर दिया गया है। एनसीईआरटी का कहना है कि यह बदलाव छात्रों को अधिक परिपक्व उम्र में जटिल ऐतिहासिक घटनाओं को समझने में मदद करेगा।
आगे क्या?
ये नई किताबें जुलाई 2025 से स्कूलों में उपलब्ध हैं, और इसका दूसरा भाग अक्टूबर में आएगा। हालांकि, एनसीईआरटी ने अभी तक इन बदलावों पर उठ रहे सवालों पर कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया है। इतिहास की यह नई व्याख्या न केवल शैक्षिक बल्कि सामाजिक और राजनीतिक चर्चाओं को भी प्रभावित कर सकती है।