सीतापुर (उत्तर प्रदेश), 12 जून 2025, गुरुवार: सनातन संस्कृति की पवित्र तपोभूमि नैमिषारण्य चक्र तीर्थ उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले के समीप गोमती नदी के बाएं तट पर अवस्थित एक ऐसा आध्यात्मिक स्थल है, जहां जनश्रुतियों के अनुसार कलयुग का प्रभाव अभी तक नहीं पहुंचा। यह स्थान आज भी ऋषि-मुनियों की तपस्या और ईश्वरीय सान्निध्य का प्रतीक माना जाता है।
मार्कण्डेय पुराण और वराह पुराण में नैमिषारण्य का उल्लेख एक पवित्र तीर्थ के रूप में किया गया है। पुराणों के अनुसार, यह वही स्थान है जहां प्राचीन काल में 88,000 ऋषियों ने तपस्या की थी। कहा जाता है कि भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र ने इस स्थान को तीर्थ के रूप में स्थापित किया, जिसके कारण इसे चक्र तीर्थ भी कहा जाता है।
नैमिषारण्य का धार्मिक महत्व केवल इसके तपोभूमि होने तक सीमित नहीं है। यह 51 पितृस्थानों में से एक प्रमुख स्थान है, जहां पितरों की शांति के लिए श्राद्ध और तर्पण किए जाते हैं। प्रत्येक वर्ष सोमवती अमावस्या के अवसर पर यहां विशाल मेला लगता है, जिसमें देश भर से श्रद्धालु पहुंचते हैं। इस मेले में स्नान, दान और पूजा-अर्चना का विशेष महत्व माना जाता है।
स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, नैमिषारण्य में आज भी देवताओं और ऋषियों का आध्यात्मिक वास है। गोमती नदी का पवित्र जल और इस क्षेत्र की शांत वनस्थली श्रद्धालुओं को आत्मिक शांति प्रदान करती है। यहां स्थित ललिता देवी मंदिर, व्यास गद्दी और हनुमान गढ़ी जैसे स्थल भी भक्तों के लिए आकर्षण का केंद्र हैं।
पुरातत्व और इतिहास के जानकारों का मानना है कि नैमिषारण्य का इतिहास हजारों वर्ष पुराना है। यह स्थान न केवल धार्मिक, बल्कि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। यह वही भूमि है, जहां सूत जी ने पुराणों की कथाएं सुनाई थीं और जहां वेदव्यास ने पुराणों का संकलन किया था।
आधुनिक युग में भी नैमिषारण्य का आध्यात्मिक महत्व कम नहीं हुआ है। हर साल लाखों श्रद्धालु यहां दर्शन के लिए आते हैं। स्थानीय प्रशासन भी इस तीर्थ के रखरखाव और श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए प्रयासरत है।
नैमिषारण्य चक्र तीर्थ न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि यह सनातन संस्कृति की उस जीवंत परंपरा का प्रतीक है, जो आज भी लोगों के हृदय में ईश्वर के प्रति श्रद्धा और विश्वास को जीवित रखती है।