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Tuesday, March 25, 2025

दिल्ली हाईकोर्ट जज के घर बोरियों में अधजले नोट का रहस्य: साजिश या सच?

नई दिल्ली, 23 मार्च 2025, रविवार। भारत की न्यायिक व्यवस्था में पिछले कुछ दिनों से एक ऐसा मामला चर्चा का केंद्र बना हुआ है, जो किसी थ्रिलर फिल्म की स्क्रिप्ट से कम नहीं लगता। दिल्ली हाई कोर्ट के जज जस्टिस यशवंत वर्मा के सरकारी आवास से बोरियों में अधजले नोट मिलने की खबर ने न सिर्फ न्यायिक हलकों में हलचल मचा दी, बल्कि आम लोगों के बीच भी सवालों की बौछार शुरू कर दी। क्या यह सचमुच एक घोटाला है या इसके पीछे कोई बड़ी साजिश छिपी है? जस्टिस वर्मा की सफाई के बाद यह मामला और भी रोचक हो गया है। आइए, इस कहानी के हर पहलू को करीब से देखते हैं।

आग से शुरू हुई कहानी

14 और 15 मार्च 2025 की मध्यरात्रि को जस्टिस यशवंत वर्मा के दिल्ली स्थित सरकारी बंगले में एक अनहोनी हुई। उनके स्टाफ क्वार्टर के पास बने स्टोर रूम में अचानक आग लग गई। उस वक्त जस्टिस वर्मा अपनी पत्नी के साथ भोपाल में थे, जबकि उनकी बेटी और वृद्ध मां घर पर मौजूद थीं। आग की सूचना मिलते ही उनकी बेटी और निजी सचिव ने तुरंत दमकल विभाग को फोन किया। दमकल कर्मियों ने मौके पर पहुंचकर आग पर काबू पाया, लेकिन इसके बाद जो हुआ, वह इस घटना को सुर्खियों में ले आया।

खबरें फैलीं कि आग बुझाने के दौरान स्टोर रूम से भारी मात्रा में नकदी बरामद हुई—कहा गया कि यह राशि 50 करोड़ रुपये से भी ज्यादा थी। यह खबर जंगल की आग की तरह फैल गई और सवाल उठने लगे कि एक हाई कोर्ट जज के घर इतनी बड़ी रकम कहां से आई? क्या यह काला धन था? या फिर न्यायपालिका में भ्रष्टाचार की कोई गहरी परत उजागर होने वाली थी?

जस्टिस वर्मा का जवाब: “यह मेरा पैसा नहीं”

इस विवाद के बीच जस्टिस यशवंत वर्मा ने अपनी चुप्पी तोड़ी और एक विस्तृत सफाई पेश की। उनका कहना है कि यह पूरा मामला उनके खिलाफ एक साजिश हो सकता है। उन्होंने बताया कि जिस स्टोर रूम में आग लगी, वह उनके मुख्य आवास से अलग था और इसे पुराने फर्नीचर, बोतलें, क्रॉकरी, गद्दे, बागवानी उपकरण और सीपीडब्ल्यूडी की सामग्री रखने के लिए इस्तेमाल किया जाता था। यह कमरा हमेशा खुला रहता था और स्टाफ क्वार्टर के पिछले दरवाजे से भी इसकी पहुंच संभव थी।

जस्टिस वर्मा ने साफ कहा, “न मैंने, न मेरे परिवार के किसी सदस्य ने कभी उस स्टोर रूम में कोई नकदी रखी। यह राशि मेरी नहीं है।” उन्होंने आगे बताया कि घटना के वक्त वह और उनकी पत्नी दिल्ली में नहीं थे। आग बुझाने के बाद जब उनके स्टाफ और परिवार के लोग वहां गए, तो उन्हें कोई नकदी नहीं दिखी। जस्टिस वर्मा ने यह भी सवाल उठाया कि अगर इतनी बड़ी राशि वहां थी, तो वह सुबह तक कहां गायब हो गई? उनका इशारा किसी सुनियोजित साजिश की ओर था, जिसका मकसद उनकी छवि को धूमिल करना हो सकता है।

सुप्रीम कोर्ट का कदम और जांच का दौर

इस मामले ने इतना तूल पकड़ा कि सुप्रीम कोर्ट को भी दखल देना पड़ा। सुप्रीम कोर्ट ने इस घटना की जांच शुरू की और दिल्ली हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस से रिपोर्ट मांगी। इसके साथ ही, जस्टिस वर्मा को उनके मूल कोर्ट, इलाहाबाद हाई कोर्ट में ट्रांसफर करने का फैसला लिया गया। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि यह ट्रांसफर जांच से जुड़ा नहीं है, बल्कि यह एक स्वतंत्र निर्णय है।

दिल्ली पुलिस और दमकल विभाग के बयानों ने भी मामले को और उलझा दिया। जहां कुछ रिपोर्ट्स में कहा गया कि आग बुझाने के दौरान जले हुए नोटों के ढेर मिले, वहीं दिल्ली फायर सर्विस के प्रमुख अतुल गर्ग ने दावा किया कि उनके कर्मियों को कोई नकदी नहीं दिखी। दूसरी ओर, सोशल मीडिया पर वायरल हुए वीडियो में जले हुए नोटों की तस्वीरें दिखाई दीं, जिसने इस रहस्य को और गहरा कर दिया।

सवालों का जाल और जनता की नजर

यह घटना कई सवाल खड़े करती है। अगर नकदी थी, तो वह कहां से आई? अगर यह जस्टिस वर्मा की नहीं थी, तो क्या कोई उन्हें फंसाने की कोशिश कर रहा था? स्टोर रूम से नकदी गायब होने की बात सच है, तो उसे किसने हटाया? और सबसे बड़ा सवाल—क्या यह मामला न्यायपालिका की साख पर सवाल उठाने वाला है या यह महज एक व्यक्तिगत हमला है?

जस्टिस वर्मा के ट्रांसफर और सुप्रीम कोर्ट की जांच के बाद भी लोगों के मन में संदेह बना हुआ है। इलाहाबाद हाई कोर्ट बार एसोसिएशन ने उनके ट्रांसफर का विरोध करते हुए कहा कि उनका कोर्ट “कचरे का डिब्बा” नहीं है। वहीं, कांग्रेस समेत कई विपक्षी दलों ने इस मामले को भ्रष्टाचार से जोड़कर सरकार और न्यायिक व्यवस्था पर निशाना साधा है।

क्या है आगे की राह?

फिलहाल, यह मामला सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में है। जांच के नतीजे ही बताएंगे कि यह नकदी का ढेर सचमुच था या महज अफवाह। जस्टिस वर्मा की साजिश की थ्योरी सही साबित होती है या नहीं, यह भी आने वाला वक्त बताएगा। लेकिन एक बात तय है—यह घटना लंबे समय तक चर्चा में रहेगी और न्यायपालिका में पारदर्शिता और जवाबदेही के सवालों को फिर से जिंदा करेगी।

क्या यह प्यार, सत्ता और पैसे की कहानी है, या फिर सच को दबाने की कोशिश? जवाब का इंतजार हर किसी को है। तब तक, यह रहस्यमयी आग और उससे निकला धुआं सबके जेहन में सवाल बनकर तैरता रहेगा।

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