वाराणसी, 11 जनवरी 2025, शनिवार। संगम नगरी प्रयागराज में महाकुंभ का शुभारंभ हुआ है, जिसमें देश-विदेश से संत, महामंडलेश्वर और अघोरी साधु हिस्सा ले रहे हैं। अघोरी साधु, जो शिव और शक्ति काली के उपासक होते हैं, अपनी रहस्यमयी दुनिया के साथ महाकुंभ में शामिल हुए हैं। अघोरी साधु मुख्य रूप से कापालिक परंपरा का पालन करते हैं और मानव खोपड़ी, चिता की राख और रुद्राक्ष धारण करते हैं। वे एकांत में रहते हैं और श्मशान घाट या दुर्गम स्थानों पर साधना करते हैं जहाँ आम लोगों का जाना मुश्किल होता है।
अघोरी परंपरा की स्थापना 18वीं शताब्दी में बाबा किनाराम ने की थी, जिनकी साधना काशी में शुरू हुई और वहीं से यह परंपरा अन्य स्थानों पर फैल गई। अघोरी साधुओं के लिए मृत्यु से जुड़ी गतिविधियाँ, जैसे शव के साथ रहना और चिता से मांस खाना, आध्यात्मिक प्रक्रिया का हिस्सा माना जाता है।
प्रमुख अघोरी स्थलों में काशी, तारापीठ, कालीमठ और चित्रकूट शामिल हैं, जहाँ अघोरी साधु अपनी साधना करते हैं। अघोरी का जीवन रहस्यपूर्ण और साधना पर केंद्रित होता है। वे तंत्र और मंत्र का प्रयोग आत्म-साक्षात्कार के लिए करते हैं, दूसरों के लिए नहीं।
महाकुंभ में अघोरी साधुओं की उपस्थिति एक अनोखा अनुभव प्रदान करती है। उनकी रहस्यमयी दुनिया और आध्यात्मिक प्रक्रियाएं लोगों को आकर्षित करती हैं। अघोरी साधुओं के साथ बातचीत करना और उनकी दुनिया को समझना एक अद्वितीय अनुभव हो सकता है।