लोकसभा चुनाव 2024 में जनता ने करीब 20 साल बाद गठबंधन के पक्ष में फैसला दिया है। अपने दम पर लगातार तीसरी बार सरकार बनाने में जुटी भाजपा को इस चुनाव में अपेक्षित जीत नहीं मिली। जानकारों का कहना है कि मोदी सरकार-2 ने देश में जबर्दस्त विकास किया। भव्य राम मंदिर का निर्माण किया, देश की सीमाओं को सुरक्षित किया, गरीबों के उत्थान की कई कामयाब योजनाएं चलाईं, लेकिन विपक्ष को कमजोर करने और उसके नेताओं के प्रति भद्दी भाषा के इस्तेमाल, ईडी, सीबीआई के दुरुपयोग के समेत कई बातें ऐसी रहीं, जिनका जनता के मन पर विपरीत असर पड़ा, जिसने भाजपा के चढ़ते ग्राफ को गिरा दिया।
विपक्ष ने भाजपा और एनडीए का मुकाबला करने के लिए इस बार इंडिया गठबंधन बनाया और बड़ी कामयाबी भी हासिल की, लेकिन भाजपा और उसके शीर्ष नेताओं ने इस पर अनुचित ढंग से लगातार प्रहार किए। इसे घमंडिया गठबंधन तक करार दिया गया। इसी तरह ममता बनर्जी, अरविंद केजरीवाल, राहुल गांधी, शरद पवार जैसे नेताओं को लेकर भी अप्रिय बोल वचन कहे गए। मंगल सूत्र, एक्स-रे, बाबरी ताला जैसे भ्रमित करने वाले बयान देकर जनता को गुमराह करने और डराने वाली बातें कही गईं।
जनता ने किसी एक दल को बहुमत नहीं दिया है। भाजपा सबसे बड़ी पार्टी के रूप में जरूर उभरी है, लेकिन उसे जेडीयू के नीतीश बाबू और टीडीपी के चंद्राबाबू की बैसाखी की जरूरत पड़ेगी।
अब तक आए रुझानों और नतीजों से लगता है कि इनके बगैर वह सरकार नहीं बना और चला सकेगी। भाजपा के कमजोर प्रदर्शन के पीछे उसके प्रमुख साथियों का बिदकना भी रहा है। इसमें मुख्य रूप से शिरोमणि अकाली दल, शिवसेना उद्धव ठाकरे गुट, यूपी के क्षेत्रीय दल प्रमुख हैं।
दरअसल, भाजपा भी अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारने लगी थी। माना जा रहा है महाराष्ट्र में शिवसेना और एनसीपी का विभाजन भी उसके हित में नहीं रहा। एनसीपी के अजित पवार गुट से जनता व भाजपा के नेता तक बहुत खुश नहीं थे, इसके बाद भी उन्हें महाराष्ट्र की सरकार में शामिल किया गया। इससे पार्टी के मूलभूत व मजबूत कैडर को झटका लगा।
भाजपा के कमजोर प्रदर्शन की एक और वजह इस चुनाव में संघ की कमजोर सक्रियता भी मानी जा रही है। हमेशा की तरह संघ ने भाजपा के पक्ष में पर्याप्त मदद नहीं की, शायद उसने पार्टी के तेजी से कांग्रेसीकरण पर आपत्ति लेते हुए परोक्ष रूप से सबक सिखाने के लिए ऐसा किया?
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