ऊर्जा की बढ़ती मांग और कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन कम करने के लिए राष्ट्रीय हाइड्रोजन मिशन पर काम शुरू हुआ है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने देश को वैश्विक अक्षय हाइड्रोजन का हब बनाने के लिए हाइड्रोजन वैली बनाने का फैसला लिया है, जिसे देश के तीन अलग-अलग हिस्सों में बनाया जाएगा।
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय (डीएसटी) की ओर से हाइड्रोजन वैली बनाने के लिए सरकारी और निजी क्षेत्र से प्रस्ताव मांगे गए हैं। डीएसटी के अनुसार, हाइड्रोजन वैली का मतलब एक हाइड्रोजन घाटी से है, जहां हाइड्रोजन का उत्पादन एक से अधिक क्षेत्रों में किया जाएगा। अभी तक जगहों का चयन नहीं हुआ है लेकिन उत्तर, दक्षिण और पूर्वोत्तर क्षेत्र में इनका निर्माण किया जाएगा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अगस्त 2021 में राष्ट्रीय हाइड्रोजन मिशन की घोषणा की थी। इसके ठीक एक साल बाद केंद्र सरकार ने मिशन इनोवेशन के तहत हाइड्रोजन वैली शुरू करने का फैसला लिया है। इसके लिए तीन अलग-अलग चरणों में काम किया जाएगा जो 2050 तक चलेगा। मिशन के तहत डीएसटी हाइड्रोजन उत्पादन के लिए वैली स्थापित करेगा और पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय हाइड्रोजन नीतियों व योजनाओं की निगरानी करेगा।
दरअसल, हरित हाइड्रोजन पर सबसे अधिक ध्यान दिया जा रहा है। जब पानी से बिजली गुजरती है तो हाइड्रोजन पैदा होती है। इस हाइड्रोजन का इस्तेमाल ऊर्जा के तौर पर किया जाता है। अगर हाइड्रोजन बनाने में इस्तेमाल होने वाली बिजली किसी रिन्यूएबल सोर्स से आती है, मतलब ऐसे स्रोत से आती है, जिसमें बिजली बनाने में प्रदूषण नहीं होता है तो इस तरह बनी हाइड्रोजन को ग्रीन हाइड्रोजन कहा जाता है।
पहला चरण 2023-2027 : विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अनुसार, 90 करोड़ की लागत से वैली में हाइड्रोजन उत्पादन के लिए प्लांट तैयार किए जाएंगे
दूसरा चरण 2028-2033 : वैली में भंडार कक्ष तैयार होंगे। सुरक्षा के मददेनजर भी इंतजाम किए जाएंगे, ताकि आगजनी जैसी घटनाओं से बचा जा सके।
तीसरा चरण 2034-2050 : वैली में वितरण को लेकर क्षेत्र बनाए जाएंगे। सीमेंट-स्टील उद्योग के लिए भी हाइड्रोजन उत्पादन के लिए अलग से क्षेत्र बनाया जाएगा।
2027 तक मिलने लगेगी 500 मीट्रिक टन हाइड्रोजन
डीएसटी के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक ने बताया, मिशन इनोवेशन के तहत हाइड्रोजन वैली का निर्माण किया जाएगा। पहले चरण की शुरुआत हो चुकी है और यह 2027 तक चलेगा। तब तक देश में प्रति वर्ष 500 मीट्रिक टन हाइड्रोजन का उत्पादन होने लगेगा। पहले चरण के लिए 90 करोड़ रुपये का बजट तय किया है जो हाइड्रोजन वैली बनाने पर खर्च किया जाएगा।
इस बजट में और भी बढ़ोतरी की जा सकती है। इसके बाद दूसरा चरण 2028-33 और तीसरा चरण 2034 से 2050 तक चलेगा।
बनेगा इंटर कनेक्टेड इकोसिस्टम
मौजूदा समय में हाइड्रोजन उत्पादन को लेकर देश के चार शहर दिल्ली, मुंबई, बेंगलूरू और चेन्नई में अनुसंधान एवं विकास की गतिविधियां चल रही हैं। डीएसटी के मुताबिक, हाइड्रोजन की संपूर्ण मूल्य शृंखला (उत्पादन, भंडारण और परिवहन) को एक ही स्थान पर लाया जाएगा जो हाइड्रोजन वैली में होगा। यहीं से पूरे देश में हाइड्रोजन की आपूर्ति होगी और इंटर कनेक्टेड इकोसिस्टम बनाया जाएगा।
2023 अप्रैल तक हाइड्रोजन वैली बनाने वाली एजेंसियों का चयन
2070 तक ग्रीन ऊर्जा की मांग पूरी करने का लक्ष्य रखा गया है।
इन क्षेत्रों में किया जाएगा उपयोग
कार/ट्रेन/विमान/जहाज
बिजली उत्पादन
पोर्टेबल ईंधन सेल
सरकारी और निजी एजेंसियों के साथ मिलकर हाइड्रोजन वैली बनाएगी सरकार।
30 दिसंबर तक प्रस्ताव लेने के बाद शुरू होगा वैली बनाने के लिए जगह का चयन।
समय से पहले हासिल होगा लक्ष्य
डीएसटी ने दावा किया है कि हाइड्रोजन उत्पादन का लक्ष्य समय से पहले हासिल कर लिया जाएगा। राष्ट्रीय हाइड्रोजन मिशन के तहत नवीकरणीय ऊर्जा के रूप में 2030 तक 10 लाख टन हाइड्रोजन उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है।
उर्वरक संयंत्रों और तेल रिफाइनरियों को हाइड्रोजन का उपयोग करने के लिए क्रमशः 5% और 10% की आपूर्ति 2023-2024 तक होगी। इसके बाद, 2030 तक इस आपूर्ति को बढ़ाकर क्रमशः 20% और 25% तक लेकर जाएंगें।
साल 2000 से अब तक भारत ने जीवाश्म ईंधन के आयात पर अपनी निर्भरता बढ़ाई है। कोयला, तेल और गैस आयात की मांग में यह बढ़ोतरी क्रमशः 25%, 75% और 50% से अधिक है।