वरिष्ठ पत्रकार अनिता चौधरी की हरिद्वार सांसद त्रिवेंद्र सिंह रावत से खास बातचीत
नई दिल्ली, 28 मार्च 2025, शुक्रवार। उत्तराखंड के हरिद्वार से बीजेपी सांसद त्रिवेंद्र सिंह रावत हाल ही में देश की जानी-मानी वरिष्ठ पत्रकार अनिता चौधरी के सवालों के घेरे में आए। यह बातचीत कोई साधारण मुलाकात नहीं थी, बल्कि उत्तराखंड के लिए एक ज्वलंत और संवेदनशील मुद्दे—खनन माफियाओं की बेलगाम मनमानी—पर गहरी चर्चा का मंच बनी। अनिता चौधरी ने बेबाकी से सवाल दागा, “सदन में आपने खनन माफियाओं का मुद्दा उठाया था। यह उत्तराखंड के लिए कितना बड़ा खतरा बनता जा रहा है और यह कैसे घातक साबित हो रहा है?”
सांसद रावत ने इस सवाल का जवाब देते हुए गहरी चिंता जताई। उन्होंने कहा, “यह बेहद संवेदनशील मसला है, क्योंकि यह सीधे पर्यावरण से जुड़ा है। पर्यावरण के साथ खिलवाड़ करने का हक किसी को नहीं है।” रावत ने पिछले कुछ सालों के अनुभव साझा करते हुए बताया कि खनन वाहनों की वजह से अनगिनत मौतें हुई हैं। उन्होंने हाल ही की एक दिल दहला देने वाली घटना का जिक्र किया, “चार दिन पहले ही एक घर के दो मुखिया खनन वाहनों की चपेट में आकर मारे गए। ये वो लोग थे, जो अपने परिवार की रोजी-रोटी का इकलौता सहारा थे।”
रावत ने एक और दुखद घटना का उल्लेख किया। हरिद्वार में खनन के लिए खोदे गए गड्ढे में बारिश का पानी भर गया, जिसमें एक 15 साल के इकलौते बेटे की डूबकर मौत हो गई। यह हादसा इतना दर्दनाक था कि लड़के के माता-पिता ने हरिद्वार में अपना घर-कारोबार सब छोड़ दिया और चले गए। रावत ने कहा, “ऐसी घटनाएं बार-बार हो रही हैं। गंगा और उसकी सहायक नदियों में अवैध खनन की वजह से हालात बेकाबू हो रहे हैं। खनन माफिया बेखौफ होकर प्रकृति और लोगों की जिंदगी से खिलवाड़ कर रहे हैं। इसी वजह से मैंने सदन में जनता की आवाज उठाई।”
किसानों की जमीन पर माफियाओं की नजर
सांसद रावत ने किसानों की पीड़ा को भी सामने रखा। उन्होंने बताया कि किसानों ने उनसे व्यक्तिगत शिकायत की है कि खनन माफिया उनकी निजी और सामुदायिक जमीन को बिना अनुमति के खोद ले जा रहे हैं। रावत ने कहा, “किसानों का सवाल है कि जब हैंडपंप में पानी नहीं आ रहा, खेतों को माफिया खोद डालेंगे, तो वे खेती कहां करेंगे?” इस मुद्दे को लेकर रावत ने सदन में पुरजोर तरीके से खनन माफियाओं के खिलाफ आवाज बुलंद की।
प्रशासन का दावा और सांसद का जवाब
अनिता चौधरी ने सांसद से एक तीखा सवाल पूछा, “आप सदन में खनन माफियाओं के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं, लेकिन स्थानीय प्रशासन का कहना है कि ऐसी कोई बात नहीं है। खनन नियमों और प्रक्रियाओं के तहत ही हो रहा है। इस विरोधाभास पर आप क्या कहेंगे?” रावत ने हंसते हुए जवाब दिया, “अधिकारियों के लिए मुझे कुछ कहना ही नहीं है।” लेकिन जब अनिता ने कुरेदते हुए पूछा कि क्या अधिकारियों की मिलीभगत से यह सब हो रहा है, तो रावत ने साफ कहा, “निश्चित रूप से, अधिकारियों की मिलीभगत के बिना खनन माफिया इतने बेखौफ नहीं हो सकते।”
मुख्यमंत्री से बात, लेकिन नतीजा अधूरा
रावत ने खुलासा किया कि उन्होंने इस मुद्दे पर मुख्यमंत्री से बात की थी। मुख्यमंत्री ने आश्वासन दिया था कि अवैध खनन पर रोक लगेगी, लेकिन रावत के मुताबिक, जितनी सख्ती से कार्रवाई होनी चाहिए, वैसा नहीं हुआ। उन्होंने कहा, “कुछ हद तक रोक जरूर लगी है, लेकिन यह काफी नहीं है। मैं एक बार फिर मुख्यमंत्री से इस पर गंभीरता से बात करूंगा।”
यह बातचीत न सिर्फ खनन माफियाओं की मनमानी को उजागर करती है, बल्कि पर्यावरण, किसानों और आम लोगों की जिंदगी पर पड़ रहे इसके खतरनाक असर को भी सामने लाती है। सवाल यह है कि क्या सांसद रावत की आवाज व्यवस्था को झकझोर पाएगी, या यह मुद्दा सिर्फ चर्चाओं तक ही सीमित रह जाएगा?