वाराणसी, 29 मार्च 2025, शनिवार। शिव की नगरी काशी सिर्फ एक शहर नहीं, बल्कि एक जीवंत सांस्कृतिक गुलदस्ता है, जहां विभिन्न रंगों और खुशबुओं वाले फूल एक साथ खिलते हैं। इसे मिनी भारत यूं ही नहीं कहा जाता। यहां बसी हर संस्कृति अपने साथ शौर्य, बलिदान, कला और विद्वता की अनमोल गाथाएं लाई, फिर काशी की मिट्टी में समरस होकर इसकी शोभा को और निखारा। इनमें एक खास रंग है मराठा समाज का, जिसने गंगा के किनारे अपनी गहरी छाप छोड़ी है। क्या आप जानते हैं कि गंगा के 50 प्रतिशत से अधिक घाट पेशवाओं के योगदान से बने हैं? यही नहीं, मराठा समाज अब गुड़ी पड़वा की तैयारियों में जुट गया है, जो 30 मार्च को धूमधाम से मनाया जाएगा। संयोग से इसी दिन चैत्र नवरात्रि की शुरुआत भी होगी।
गुड़ी पड़वा: मराठा समाज का गर्व और उत्सव
काशी के ब्रह्मा घाट, बीवी हटिया, पंचगंगा घाट और दुर्गा घाट जैसे इलाकों में बसे मराठा समाज के लिए गुड़ी पड़वा सिर्फ एक त्योहार नहीं, बल्कि नए साल की शुरुआत का प्रतीक है। इन दिनों काशी के इन कोनों में मिनी महाराष्ट्र की झलक देखने को मिलेगी। घरों की साफ-सफाई, रंगोली की सजावट, नए पारंपरिक कपड़े और स्वादिष्ट व्यंजनों की महक से माहौल उत्सवमय हो उठता है। यह पर्व मराठा समाज में खुशहाली और समृद्धि का संदेश लेकर आता है।
पूजा का विधान: भगवान विष्णु और ब्रह्मा का आशीर्वाद
गुड़ी पड़वा के दिन भगवान विष्णु और ब्रह्मा जी की पूजा का विशेष महत्व है। शास्त्रों में कहा गया है कि विधि-विधान से पूजन करने और कुछ नियमों का पालन करने से साल भर सुख, स्वास्थ्य और मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। मराठा समाज से जुड़ी शिखा मालू बताती हैं कि इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर उबटन लगाने के बाद स्नान किया जाता है। सबसे पहले गणेश जी की पूजा होती है, फिर भगवान विष्णु और ब्रह्मा की आराधना की जाती है। “ॐ ब्रह्मणे नमः” मंत्र का 108 बार जाप, मां दुर्गा का ध्यान और घर में गंगाजल का छिड़काव इस दिन के खास अनुष्ठान हैं। शिखा आगे बताती हैं कि नीम के पत्तों का चूर्ण, जिसमें नमक, हींग, जीरा, काली मिर्च, अजवाइन और मिश्री मिलाई जाती है, खाना शुभ माना जाता है। व्यापारियों के लिए दुकान के मुख्य द्वार पर हरिद्रा (हल्दी) के दाने डालना और गुड़ी नामक ध्वजा फहराना भी परंपरा का हिस्सा है।
क्या करें और क्या न करें?
इस पर्व को लेकर मराठा समाज की सागरिका कुछ सावधानियां साझा करती हैं। गुड़ी पड़वा के दिन नाखून, बाल या दाढ़ी-मूंछ काटने की मनाही है। पूजा में किसी भी तरह की गलती से बचना चाहिए। दिन में सोना, मांसाहार या शराब का सेवन भी वर्जित है। ये नियम न सिर्फ परंपरा को बनाए रखते हैं, बल्कि आत्मिक शुद्धि का भी संदेश देते हैं।
काशी में मराठा समाज की अनूठी पहचान
गुड़ी पड़वा के जरिए काशी का मराठा समाज अपनी सांस्कृतिक जड़ों को सहेजते हुए इस पवित्र नगरी की शोभा बढ़ा रहा है। यह त्योहार केवल उत्सव नहीं, बल्कि एकता, परंपरा और आध्यात्मिकता का संगम है। जैसे ही 30 मार्च नजदीक आ रहा है, काशी के घाटों पर मराठी संस्कृति की यह चमक देखते ही बनती है। तो आइए, इस मिनी भारत के एक और रंग को महसूस करें और गुड़ी पड़वा की शुभकामनाओं में शामिल हों!