वाराणसी, 25 फरवरी 2025, मंगलवार। शिवरात्रि को शिव की रात कहा जाता है। यह पर्व भगवान शिव के प्रति श्रद्धा और भक्ति प्रकट करने का दिन है। शिवरात्रि को मनाने के कई कारण हैं। शिवरात्रि की रात को अंधकार की रात भी कहा जाता है। शिव को अस्तित्व के आधार रूप में देखा जाता है। इस रात को योग में एक खास साधना की जाती है। इस दिन शरीर में ऊर्जा कुदरती रूप से ऊपर की ओर चढ़ती है। इस दिन शिवलिंग की पूजा करने से व्यक्ति की समस्त इच्छाएं पूर्ण होती हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस दिन भगवान शिव और देवी पार्वती का विवाह हुआ था। इस दिन भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग में प्रकट हुए थे।
वर्ष में तीन रात्रि बहुत महत्वपूर्ण होती है कालरात्रि, मोहरात्रि और महारात्रि। कालरात्रि दुर्गा सप्तमी की रात्रि होती है, मोहरात्रि दीपावली की अमावस्या की रात्रि होती है, महारात्रि महाशिवरात्रि को होती है। महाशिवरात्रि पर रात्रि का खास महत्व होता है। इस दिन काशी विश्वनाथ मंदिर में बाबा विश्वनाथ की महानिशा काल (मध्यरात्रि) में चार प्रहर की आरती बेहद महत्वपूर्ण है। बाबा विश्वनाथ के अर्द्धनारिश्वर स्वरुप के चार प्रहर की महाआरती विश्व कल्याण को समर्पित रहती है। महानिशा काल में चार प्रहर की आरती चार युगों, चार पुरुषार्थ और सभी देवी देवताओं द्वारा मिलकर की जाती है। महाशिवरात्रि पर रात्रि 9.30 बजे शंख बजने के साथ ही पूजा की तैयारी शुरू होती है।
प्रथम प्रहर- रात्रि 9:30 बजे शंख बजेगा एवं पूजा की तैयारी होगी तथा झांकी दर्शन निरंतर चलता रहेगा। रात्रि 10:00 बजे से आरती प्रारम्भ होकर रात्रि 12:30 बजे समाप्त होगी। इस महानिशा काल में ही भगवान शिव का माता पार्वती से विवाह हुआ था। ये महाशिवरात्रि की सबसे प्रमुख आरती है। इस रात्रि में तीनों आदि शक्तियां, अष्ट भैरव, छप्पन विनायक सहित समस्त देवी देवता भूतनाथ की आरती करते हैं।
द्वितीय प्रहर- रात्रि 01:30 बजे से आरती प्रारम्भ होकर रात्रि 02:30 बजे समाप्त होगी तथा झांकी दर्शन निरंतर चलता रहेगा। दूसरी प्रहर की आरती भी महारात्रि का ही विस्तृत स्वरुप है।
तृतीय प्रहर- प्रातः 03:30 बजे से आरती प्रारम्भ होकर प्रातः 04:30 बजे समाप्त होगी तथा झांकी दर्शन निरंतर चलता रहेगा। ब्रह्माण्ड की त्रिशक्ति ये आरती करती हैं। इस समय विवाह अपने समापन की ओर होता है।
चतुर्थ प्रहर- प्रातः 05:00 बजे से आरती प्रारम्भ होकर प्रातः 06:15 बजे समाप्त होगी तथा झाँकी दर्शन निरंतर चलता रहेगा। ये आरती विवाह के बाद माता पार्वती का विदाई का सूचक है। इसमें ब्रह्म जी भगवान की आरती करते हैं। शिव विवाह के बाद गौरा को विदा कर ले जाते हैं।