श्रीनगर, 29 जून 2025: हर सुबह, जब सूरज की पहली किरणें डल झील की शांत सतह पर पड़ती हैं, एक छोटी सी नाव चुपके से पानी को चीरती हुई आगे बढ़ती है। इस नाव को चलाने वाली हैं 69 वर्षीय एलिस हुबर्टिना स्पैंडरमैन, जो नीदरलैंड्स से हैं, लेकिन अब कश्मीर की हो चुकी हैं। चौड़ी टोपी और अटूट संकल्प के साथ वह झील से प्लास्टिक का कचरा निकाल रही हैं, और इस तरह वह न सिर्फ डल झील, बल्कि पूरे कश्मीर के लिए प्रेरणा बन गई हैं।
25 साल पहले शुरू हुआ था कश्मीर से रिश्ता
25 साल पहले एलिस एक पर्यटक के तौर पर कश्मीर आई थीं। यहाँ की वादियों, संस्कृति और लोगों की गर्मजोशी ने उन्हें ऐसा बांधा कि वह यहीं की होकर रह गईं। आज वह डल झील को बचाने की मुहिम में जुटी हैं। बातचीत में उन्होंने बताया, “लोग डल की खूबसूरती और शिकारों की सैर देखते हैं, लेकिन इसके नीचे छिपा प्लास्टिक कचरा, बोतलें और थैलियां किसी को नहीं दिखतीं।” बिना किसी सरकारी मदद या प्रचार के, एलिस अपनी लकड़ी की नाव को एक तैरती सफाई यूनिट में बदल चुकी हैं।
हर दिन निकालती हैं किलो भर कचरा
एलिस के पास कोई आधुनिक उपकरण नहीं, सिर्फ उनके हाथ और जज्बा है। हर हफ्ते वह झील से कई किलो प्लास्टिक कचरा निकालती हैं। कभी बच्चे उनकी इस मेहनत को देखकर हैरान होते हैं, तो कभी पर्यटक उन्हें गाइड समझ लेते हैं। लेकिन एलिस का यह काम न शौक है, न पर्यटन—यह पर्यावरण को बचाने की उनकी जिद है। वह कहती हैं, “जब मैं पहली बार आई थी, तब झील का पानी साफ था। अब इसे फिर से वैसा करना है।”
डल झील: कश्मीर की धड़कन, पर संकट में
डल झील सिर्फ एक जलस्रोत नहीं, बल्कि श्रीनगर की आर्थिक और सांस्कृतिक धड़कन है। यहाँ के हज़ारों लोगों की आजीविका और पर्यटन का आधार यही झील है। लेकिन शहरीकरण, अनियंत्रित निर्माण और कचरा प्रबंधन की कमी ने इसे प्रदूषण की चपेट में ला दिया है। सरकारी सफाई अभियान और ड्रेजिंग के बावजूद हालात सुधर नहीं रहे। ऐसे में एलिस जैसे लोग अपनी नन्हीं कोशिशों से बड़ा बदलाव ला रहे हैं।
प्रेरणा बन रही हैं एलिस
एलिस की कहानी इसलिए खास है क्योंकि वह एक विदेशी होकर भी डल झील को अपनी जिम्मेदारी मानती हैं। वह स्थानीय लोगों, खासकर युवाओं के लिए मिसाल बन गई हैं। उनकी तरह ही जन्नत तारिक जैसी युवा कार्यकर्ता, जिन्होंने पांच साल की उम्र से “मिशन डल लेक” शुरू किया, और नदीम कादरी का “जम्मू एंड कश्मीर ईको वॉच” अभियान भी पर्यावरण संरक्षण की दिशा में काम कर रहे हैं।
एलिस की यह छोटी-सी कोशिश हमें सिखाती है कि बदलाव के लिए बड़े संसाधनों की नहीं, बल्कि एक इंसान के जज्बे की जरूरत होती है। वह कहती हैं, “प्लास्टिक प्रदूषण की कोई सीमा नहीं, और न ही इसे रोकने की जिम्मेदारी किसी एक की है।” डल झील की यह मसीहा आज हर उस शख्स के लिए प्रेरणा है, जो अपने आसपास बदलाव लाना चाहता है।