लखनऊ, 21 नवंबर 2024, गुरुवार। उत्तर प्रदेश में सियासी बाजी पलटने के बाद अब अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी के लिए चुनौतियां बढ़ गई हैं। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ मिलकर ‘पीडीए’ फार्मूले से बीजेपी को बड़ा झटका देने के बाद अब उपचुनाव में मायावती की खामोशी से बसपा मुख्य लड़ाई से गायब होती दिख रही है। इस वजह से दलित मतदाता कई सीटों पर बंटे हुए दिखाई दे रहे हैं, जिससे दलित केमिस्ट्री के बिगड़ने का खतरा साफ नजर आ रहा है। 9 सीटों पर हुए उपचुनाव में सपा के हाथों से कई सीटें खिसकती हुई नजर आ रही हैं। अब देखना होगा कि अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी इन चुनौतियों का सामना कैसे करती है और उत्तर प्रदेश की सियासी बाजी में अपनी स्थिति को मजबूत बनाए रखती है या नहीं।
उत्तर प्रदेश के उपचुनाव में सभी प्रमुख दलों ने अपनी किस्मत आजमाई है, जिनमें समाजवादी पार्टी, भारतीय जनता पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, चंद्रशेखर आजाद की पार्टी और असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी शामिल हैं। हालांकि बसपा ने चुनाव में भाग लिया, लेकिन मायावती और उनकी पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने चुनाव से दूरी बनाए रखी। वोटिंग के दिन काफी गहमा गहमी रही, लेकिन मायावती पूरी तरह से खामोशी अख्तियार किए हुए रहीं। यह उपचुनाव 2027 के विधानसभा चुनावों के लिए एक सेमीफाइल माना जा रहा है, जिसका मतलब है कि इसके परिणाम भविष्य की सियासत पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालेंगे।
उत्तर प्रदेश के उपचुनाव में समाजवादी पार्टी (सपा) ने मतदान में गड़बड़ी के आरोप लगाए हैं, लेकिन बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने कोई शिकायत नहीं की है। सपा के मुखिया अखिलेश यादव ने बीजेपी और यूपी प्रशासन पर मिलीभगत के आरोप लगाए और कहा कि लोगों को वोट डालने से रोका जा रहा है। इसके बाद चुनाव आयोग ने एक्शन लेते हुए इंस्पेक्टर सहित सात पुलिस वालों को निलंबित कर दिया। मुजफ्फरनगर के ककरौली के थानाध्यक्ष का महिला मतदाताओं की ओर रिवाल्वर तानते हुए वीडियो वायरल होने से भी सवाल खड़े हुए हैं। वहीं, इन घटनाओं पर बसपा की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं दिखी, जबकि सपा ने पूरे दिन सड़क से सोशल मीडिया तक मोर्चा खोल रखा था।
बसपा ने उत्तर प्रदेश के उपचुनाव में अपने अस्तित्व को बचाए रखने के लिए मजबूती के साथ चुनाव लड़ा। मायावती ने पहले ही कहा था कि बसपा उपचुनाव में अपने लोगों को एकजुट रखने का प्रयास करेगी। हालांकि, बसपा के बड़े नेताओं ने चुनाव प्रचार में हिस्सा नहीं लिया। बसपा ने सभी नौ सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे थे, लेकिन अधिकतर बड़े चेहरे नजर नहीं आए। बसपा सुप्रीमो मायावती और नेशनल कोआर्डिनेटर आकाश आनंद ने भी किसी भी सीट पर पार्टी प्रत्याशी के समर्थन में जनसभा को संबोधित नहीं किया। मझवां, कटेहरी, मीरापुर जैसी विधानसभा सीटों पर बसपा का अपना सियासी दबदबा रहा है। मझवां सीट पर बसपा 5 बार जीतने में कामयाब रही है जबकि सपा अभी तक खाता नहीं खोल सकी।
उत्तर प्रदेश के उपचुनाव में दलित वोटों की महत्वपूर्ण भूमिका है, लेकिन मायावती की खामोशी ने दलित वोटरों को कश्मकश में डाल दिया है। सीएम योगी ने ‘बटोगे तो कटोगे’ के जरिए हिंदू वोटों को जोड़ने की कोशिश की, जबकि सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने पीडीए फार्मूले को एकजुट करने की कवायद की। इसके बावजूद, सपा का सियासी समीकरण गड़बड़ा गया है। मझवां, खैर, मीरापुर, कटेहरी, और फूलपुर सीटों पर दलित वोटर निर्णायक भूमिका में हैं, लेकिन बसपा प्रत्याशियों की अनुपस्थिति ने सपा की सियासी बिगाड़ दी है। कटेहरी सीट पर बसपा प्रत्याशी अमित वर्मा ने अपने सजातीय मतों में सेंधमारी कर सपा की साइकिल का संतुलन बिगाड़ सकता है। करहल में बसपा के अविनाश शाक्य ने अपने जाति के शाक्य समुदाय से ज्यादा दलित वोटों को लामबंद करते दिखे।
कुंदरकी और मीरापुर में दलित-मुस्लिम समीकरण बनाने की कवायद मायावती ने की, लेकिन जमीनी स्तर पर उसे अमलीजामा नहीं पहना सके। बसपा प्रत्याशी किसी भी बूथ पर संघर्ष करते या फिर शिकायत करते नजर नहीं आए, जबकि सपा प्रत्याशी की पुलिस के साथ नोकझोंक दिखी। इसके अलावा, दलित बहुल बूथों पर वोटिंग को लेकर किसी तरह की कोई शिकायत सुनाई नहीं दी, जहां पर भी आरोप लगे, वो ज्यादातर मुस्लिम इलाकों में ही आरोप लगे।
उत्तर प्रदेश के उपचुनाव में मुस्लिम बहुल गांवों में वोटरों का बंटवारा देखा गया। ककरौली, सीकरी, मीरापुर, जटवाड़ा, जौली जैसे गांवों में मुस्लिम मतदाता सपा, बसपा और आजाद समाज पार्टी के बीच बंटे दिखे। ककरौली में पथराव के बाद मुस्लिम मतों की लामबंदी सपा प्रत्याशी के समर्थन में अधिक दिखी, लेकिन मीरापुर में दलित मतों में बिखराव नजर आया। कुंदरकी सीट पर दलित बहुल क्षेत्र वाले बूथ पर बसपा का बस्ता नजर नहीं आया, जो सपा के लिए चिंता का विषय हो सकता है। सीसामऊ विधानसभा सीट के दलित बहुल गांव में भी सपा प्रत्याशी को लेकर नाराजगी दिखी, और बीजेपी के पक्ष में लामबंद रहे। फूलपुर सीट पर सपा ने ठाकुर प्रत्याशी उतारा था, लेकिन बीजेपी के वोटबैंक में सेंधमारी करने में बहुत ज्यादा कामयाब नहीं हो सके।
इन सबके बीच सवाल उठता है कि मायावती का सरेंडर ने क्या सपा के सियासी समीकरण को बिगाड़ दिया है? क्या बसपा की खामोशी ने दलित वोटों को प्रभावित किया है? यह सवाल इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि बसपा की खामोशी ने सपा के लिए मुश्किलें बढ़ा दी हैं।