माघ मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या (मौनी अमावस्या) मंगलवार को परंपरागत रूप से आस्था व श्रद्धा के साथ मनाई जाएगी। श्रद्धालु इस दिन राप्ती सहित आसपास की पवित्र नदियों में आस्था की डुबकी लगाकर दान-पुण्य करेंगे।
हृषीकेश पंचांग के अनुसान, इस बार मौनी अमावस्या पर सिद्धि एवं साध्य नामक योग बन रहे हैं जो श्रद्धालुओं के लिए अत्यंत फलदायी होंगे। इस दिन सूर्योदय छह बजकर 34 मिनट पर और अमावस्या तिथि का मान दिन में 11 बजकर 16 मिनट तक रहेगा। हालांकि, अमावस्या तिथि एक दिन पूर्व सोमवार को दोहपर एक बजे 15 मिनट से प्रारंभ हो जाएगी। ऐसे में अमावस्या सोमवार और मंगलवार दोनो दिन है। श्राद्धादि क्रिया के लिए सोमवार एवं स्नान-दान-पुण्य की अमावस्या मंगलवार को प्रशस्त है।
पंडित शरद चंद्र मिश्र के अनुसार, प्रत्येक अमावस्या को सूर्य और चंद्रमा का सम्मिलन होता है। सूर्य आत्मा का प्रतीक और चंद्रमा मन का कारक है। इस तिथि के स्वामी पितर गण है। इस तिथि पर दान-स्नान से देवताओं की कृपा के साथ पितरों की भी कृपा प्राप्त होती है। इस दिन मनु ऋषि का जन्म भी माना जाता है। इसलिए इस दिन को मनु अमावस्या भी कहते हैं। इस दिन मौन व्रत धारण करके ही स्नान करना चाहिए। यह वाणी को नियंत्रित करने के लिए शुभ दिन है। इस दिन गंगा स्नान करने से अश्वमेध यज्ञ के समान फल की प्राप्ति होती है। तिल और गुड़ का दान करने से शनि और सूर्य की पीड़ा समाप्त हो जाती है। पीपल में सभी देवताओं का निवास माना जाता है। इसलिए पीपल की पूजा करें।
ज्योतिर्विद पंडित नरेंद्र उपाध्याय के अनुसार, मौनी अमावस्या के दिन मौन व्रत का संकल्प लेकर संगम या पवित्र नदी में स्नान करें। भगवान विष्णु की प्रतिमा का पीले फूल, केसर, चंदन, घी के दीपक और प्रसाद के साथ पूजन करें। भगवान का ध्यान करने के बाद विष्णु चालीसा या विष्णु सहस्त्र नाम का जप करें। भगवान विष्णु के भक्तों एवं ब्राह्मणों को दान अवश्य करें। गुड़, तिल के लड्डू, कंबल, चावल, खिचड़ी, सतंजा, गाय, ऊनी वस्त्र आदि के दान का विशेष महत्व है। मंदिर या नदी तट पर दीपदान करना न भूलें। सायंकाल भी धूप से आरती करें। पीले मीठे पकवान का भोग लगाएं। गौ को खिलाने के बाद व्रत का पारण करें।
ज्योतिषाचार्य मनीष मोहन के अनुसार, धर्मशास्त्र में अमावस्या को पितृकर्म और देवकर्म दोनों के लिए प्रशस्त दिन माना गया है। इस महीने में सूर्य मकर राशिगत होने से (उत्तरायण का प्रारंभिक होने के कारण) देवगणों के लिए यह अत्यंत हर्ष का समय रहता है, इसलिए देवी-देवता और सभी तीर्थों के अधिपति पृथ्वी पर आ जाते हैं। ये नदियों के संगम पर स्नान करते हैं। अत: संगम पर स्नान से इनका सानिध्य और आशीर्वाद प्राप्त होता है। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार, इस दिन प्रयाग या नदियों के संगम पर अथवा पवित्र नदी में स्नान करने से व्यक्ति की सात पीढ़ियां पवित्र हो जाती हैं।