वाराणसी, 16 मई 2025, शुक्रवार: गंगा के पावन तट पर बसे श्रीविद्यामठ में ज्योतिष्पीठाधीश्वर शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ‘1008’ ने मनुस्मृति पर अपने व्याख्यान से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। उनके शब्दों ने न केवल सनातन धर्म के गहन दर्शन को उजागर किया, बल्कि बाबा साहेब अंबेडकर के विचारों को भी एक नए दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया।
मनुस्मृति और बाबा साहेब: मिथक और सत्य
शंकराचार्य जी ने स्पष्ट किया कि यह एक भ्रांति है कि बाबा साहेब अंबेडकर ने मनुस्मृति को जलाया था। उन्होंने बताया, “बाबा साहेब ने मनुस्मृति नहीं जलाई; यह कार्य एक ब्राह्मण गंगाधर सहस्रबुद्धे ने किया था। उस समय बाबा साहेब वहां मौजूद थे, इसलिए उनका नाम इस घटना से जोड़ दिया गया।” उन्होंने यह भी उजागर किया कि बाबा साहेब वास्तव में संविधान को जलाना चाहते थे, जिसे उन्होंने स्वयं बनाया था। इसका कारण पूछे जाने पर बाबा साहेब ने कहा था, “मैंने एक मंदिर बनाया, लेकिन यदि उसमें शैतान आकर रहने लगे, तो मुझे क्या करना चाहिए?” यह बयान उनके संविधान के दुरुपयोग और उससे बढ़ती असंतुष्टि को दर्शाता है।
मनुस्मृति: वेदों का सार, बिना भेदभाव का धर्म
शंकराचार्य जी ने मनुस्मृति को वेदों का सार बताते हुए कहा कि चार वेदों में कुल 4524 पुस्तकें हैं और वेदांगों की करीब 3000 पुस्तकें। इन 7524 पुस्तकों को पढ़ने में एक जीवन भी कम पड़ सकता है। इसलिए, वेदों का सार मनुस्मृति के रूप में सामने आता है, जो बिना भेदभाव के सभी के लिए धर्म का मार्ग प्रशस्त करती है। उन्होंने कहा, “मनुस्मृति में सबके लिए समान धर्म बताया गया है। सनातन धर्म में यदि बेटा भी गलत करता है, तो उसे भी वही सजा मिलती है, जो किसी और को।”
सनातन धर्म की विशिष्टता
शंकराचार्य जी ने सनातन धर्म की विशिष्टता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यह एकमात्र धर्म है, जो कर्म और धर्म को सर्वोपरि मानता है। उन्होंने उदाहरण दिया, “बुद्ध ब्राह्मण कुल में पैदा हुए, फिर भी हम उनकी पूजा नहीं करते। वहीं, राम और कृष्ण क्षत्रिय कुल में जन्मे, लेकिन उनके कर्मों के कारण हम उन्हें पूजते हैं।” उन्होंने जोर देकर कहा कि धर्म का पालन करते हुए यदि मृत्यु भी आ जाए, तो वह कल्याणकारी है। धर्म से ही प्रतिष्ठा मिलती है, जो इस लोक और परलोक दोनों में सम्मान दिलाती है।
बाबा साहेब के अनुयायियों के लिए संदेश
शंकराचार्य जी ने अम्बेडकरवादियों से बाबा साहेब के सच्चे उद्देश्यों को समझने और उन्हें पूरा करने का आह्वान किया। उन्होंने कहा, “बाबा साहेब का सपना एक ऐसे समाज का था, जहां समता और न्याय हो। मनुस्मृति और सनातन धर्म के सिद्धांत इस सपने को साकार करने में सहायक हो सकते हैं।” उन्होंने यह भी बताया कि भारत का संविधान मनुस्मृति को पूरा सम्मान देता है, जो सभी के लिए समानता और धर्म का आधार प्रदान करती है।
धर्म और कर्म का महत्व
शंकराचार्य जी ने श्रुति और स्मृति के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि श्रुति का स्थान सर्वोच्च है, लेकिन मनुस्मृति स्मृति के रूप में वेदों का सार प्रस्तुत करती है। उन्होंने यह भी कहा कि पशु धार्मिक नहीं होता, इसलिए उसके लिए कोई धर्मशास्त्र नहीं है। लेकिन मानव के लिए धर्म और कर्म ही उसकी प्रतिभा और कल्याण का आधार हैं।