नई दिल्ली, 7 जून 2025, शनिवार: सोशल मीडिया पर लाइक्स की ललक में एक युवक ने ऐसा खेल खेला कि अब सलाखों के पीछे की हवा खा रहा है! जी हां, राजस्थान के झुंझुनूं में एक वीडियो ने बवाल मचा दिया, जब पूर्व केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी के एनजीओ People for Animals की नजर उस पर पड़ी। फिर क्या, सीधे CMO में हड़कंप मच गया, और पुलिस-वन विभाग की टीमें दौड़ पड़ीं कार्रवाई के लिए!
पिट बुल vs गोहरा: वायरल वीडियो बना गले की फांस
झुंझुनूं के धींधवा बिचला गांव का कर्मवीर नामक शख्स अपने पिट बुल के साथ ‘हीरो’ बनने की फिराक में था। उसने अपने कुत्ते को एक जंगली गोहरे (मॉनिटर लिजार्ड) पर हमला करने दिया और खुद? बस मोबाइल निकाला और वीडियो शूट करने लगा! ये ‘महान’ कारनामा सोशल मीडिया पर डाला गया, ताकि लाइक्स और व्यूज की बरसात हो। लेकिन ये वीडियो बन गया उसकी जिंदगी का सबसे महंगा स्टंट!
मेनका गांधी की ‘पावरफुल’ चिट्ठी
जब ये वीडियो मेनका गांधी के एनजीओ की नजर में आया, तो मामला गंभीर हो गया। एनजीओ ने इसे वन्यजीवों पर क्रूरता का खुला प्रदर्शन माना और तुरंत राजस्थान के चीफ मिनिस्टर ऑफिस को पत्र लिखकर सख्त कार्रवाई की मांग की। बस फिर क्या, CMO ने तुरंत वन विभाग और पुलिस को अलर्ट कर दिया।
पुलिस-वन विभाग की रेड, कर्मवीर की ‘Game Over’
CMO के आदेश मिलते ही वन विभाग और पुलिस की संयुक्त टीम ने धींधवा बिचला गांव में धावा बोला। कर्मवीर को दबोच लिया गया, और वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के तहत उसके खिलाफ कोर्ट में परिवाद दाखिल किया गया। हालांकि, उसे बाद में जमानत मिल गई, लेकिन इस ‘सोशल मीडिया स्टार’ को शायद सपने में भी नहीं पता था कि एक वीडियो उसे कोर्ट-कचहरी के चक्कर में डाल देगा!
क्रूरता की हद: बचाने की बजाय बनाया वीडियो
जांच में सामने आया कि कर्मवीर का इरादा गोहरे को बचाने का था ही नहीं। जब उसका पिट बुल गोहरे पर टूट पड़ा, वह तमाशबीन बनकर वीडियो शूट करता रहा। उप वन संरक्षक उदाराम सियोल ने साफ कहा, “युवक की मंशा जानवर को बचाने की नहीं, बल्कि क्रूरता को रिकॉर्ड करने की थी।” वन विभाग ने इसे गंभीर अपराध मानते हुए कार्रवाई को अंजाम दिया।
सोशल मीडिया का ‘शौक’ बना जेल का रास्ता
कर्मवीर को शायद लगा था कि उसका वीडियो उसे ‘इंटरनेट का हीरो’ बना देगा, लेकिन हुआ उल्टा। अब वह न सिर्फ कानूनी पचड़े में फंसा है, बल्कि यह मामला पशु अधिकारों की राष्ट्रीय बहस का हिस्सा बन गया है। लोग अब सवाल उठा रहे हैं—क्या सोशल मीडिया की चमक-धमक के चक्कर में हमारी संवेदनाएं मर रही हैं? या ये सिर्फ ‘वायरल कंटेंट’ की भूख है?