नई दिल्ली, 16 अप्रैल 2025, बुधवार। पश्चिम बंगाल की सियासी जमीन पर ममता बनर्जी एक बार फिर अपनी ताकत दिखाने को तैयार हैं। 2026 के विधानसभा चुनाव की बिसात बिछ चुकी है, और इस बार ममता का सबसे बड़ा हथियार है उनका मुस्लिम वोटबैंक पर अटूट फोकस। वक्फ कानून के मुद्दे पर ममता ने केंद्र की मोदी सरकार को सीधे चुनौती दी है, मुस्लिम समुदाय के साथ खुलकर खड़ी होकर। लेकिन सवाल यह है कि क्या ममता का यह मुस्लिम प्रेम टीएमसी को सत्ता की चौथी पारी दिलाएगा, या फिर यह दांव उल्टा पड़ जाएगा?
वक्फ कानून पर ममता का फ्रंटफुट खेल
ममता बनर्जी ने वक्फ कानून को पश्चिम बंगाल में लागू न करने का ऐलान कर मुस्लिम समुदाय का दिल जीतने की कोशिश की है। हाल ही में इमामों, मोअज्जिनों और मुस्लिम नेताओं के साथ मुलाकात में उन्होंने साफ कहा, “जब तक मैं हूं, वक्फ कानून बंगाल में लागू नहीं होगा।” ममता ने बीजेपी पर संविधान से खिलवाड़ का आरोप लगाते हुए हिंसा के लिए भी उसे जिम्मेदार ठहराया। साथ ही, मुस्लिमों से शांति बनाए रखने की अपील की, ताकि बीजेपी को कोई सियासी मौका न मिले।
ममता की यह रणनीति साफ है—वक्फ कानून के खिलाफ खड़े होकर वे मुस्लिम वोटबैंक को अपने पाले में मजबूत करना चाहती हैं। पश्चिम बंगाल में करीब 30% मुस्लिम आबादी है, जो 100-120 विधानसभा सीटों पर निर्णायक भूमिका निभाती है। खासकर मुर्शिदाबाद (70% मुस्लिम वोटर) और मालदा (57% मुस्लिम वोटर) जैसे इलाकों में टीएमसी की जीत का रास्ता मुस्लिम मतदाताओं से होकर गुजरता है।
डबल गेम की सियासी चाल
ममता का यह मुस्लिम प्रेम सिर्फ बीजेपी को निशाना बनाने तक सीमित नहीं है। वे इंडिया गठबंधन को एकजुट करने की बात कर कांग्रेस और लेफ्ट को भी कटघरे में खड़ा कर रही हैं। मुर्शिदाबाद हिंसा पर लेफ्ट और कांग्रेस के सवालों के बीच ममता ने मुस्लिमों के साथ खड़े होकर यह संदेश दे दिया है कि बंगाल में मुस्लिम वोटबैंक पर सिर्फ उनका हक है। 2011 से पहले मुस्लिम वोटर कांग्रेस और लेफ्ट के साथ थे, लेकिन ममता ने इसे पूरी तरह टीएमसी की ताकत बना लिया। अब वक्फ कानून के बहाने वे इस वोटबैंक को और पक्का करना चाहती हैं।
बीजेपी का हिंदुत्व कार्ड
लेकिन ममता का यह दांव जोखिमों से खाली नहीं है। बीजेपी मुस्लिम तुष्टीकरण का आरोप लगाकर ममता को घेरने की कोशिश में है। उत्तर प्रदेश और दिल्ली में बीजेपी ने इसी फॉर्मूले से विपक्ष को हिंदू-विरोधी ठहराकर जीत हासिल की है। बंगाल में भी बीजेपी यही रणनीति आजमा रही है। मुर्शिदाबाद हिंसा को हथियार बनाकर वह हिंदू वोटरों को लामबंद करने में जुटी है। अगर ममता का मुस्लिम प्रेम हिंदू वोटरों को उनसे दूर करता है, तो टीएमसी के लिए 2026 में मुश्किलें बढ़ सकती हैं।
2026 का सियासी गणित
पश्चिम बंगाल में मुस्लिम वोटर प्रीमियम की तरह हैं। ममता यह अच्छे से जानती हैं कि बिना उनके समर्थन के सत्ता का ताज हासिल करना नामुमकिन है। लेकिन बीजेपी की हिंदुत्व की लहर और कांग्रेस-लेफ्ट की सियासी चालें ममता के लिए चुनौती खड़ी कर रही हैं। अगर ममता मुस्लिम वोटबैंक को पूरी तरह अपने साथ रख पाईं, तो 2026 में टीएमसी की जीत की राह आसान हो सकती है। लेकिन अगर हिंदू वोटरों का ध्रुवीकरण बीजेपी के पक्ष में हुआ, तो ममता का यह मुस्लिम प्रेम महंगा पड़ सकता है।
ममता बनर्जी का वक्फ कानून के खिलाफ खड़ा होना और मुस्लिम समुदाय के साथ उनकी एकजुटता 2026 के लिए एक सोची-समझी रणनीति है। लेकिन सियासत का खेल अनिश्चितताओं से भरा है। क्या ममता का यह दांव उन्हें सत्ता का ताज दिलाएगा, या बीजेपी की हिंदुत्व की चाल उनकी राह में रोड़ा बनेगी? यह तो वक्त ही बताएगा।